चौक से टेलीविजन के सफरनामा में यमुनाघाटी के लोक गायक

|| चौक से टेलीविजन के सफरनामा में यमुनाघाटी के लोक गायक|| 




वैसे तो उत्तराखंड में लोक गायक और लोक नर्तक एक खास प्रकार के लोग हुआ करते थे। जो गीत की रचना और प्रस्तुति देने में पारंगत होते थे। राजसत्ता के दौरान और आजादी के कुछ अर्से बाद तक लोक कलाकार ''बादी विरादरी'' के ही लोग हुआ करते थे। जैसे की यमुनाघाटी में सुनाली गांव के ''गीरधारी बादी का परिवार और मुंगरा गांव के हरिभगत'' जैसे बिरले बादीयों की यमुनाघाटी में अपनी जागीर हुआ करती थी। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ तो संस्कृतिकर्मी बनने की की होड़ लोगो में पनपने लगी। गांव समाज में संस्कृतिकर्म ने विस्तार लेना आरम्भ किया तो गांव-गांव में लोक गायक व लोक नर्तको की एक फेहरिस्त बनने लगी। इसी का परिणाम है कि आज हरेक गांव में लोक कलाकार हैं।


यमुनाघाटी के रश्म-रिवाज में कुछ अनूठा है। यहां किसी भी शुभ समारोह में तांदी, हारूल, छोपुती, रासौ, सरंग, पैंसर, जुड़का, तलवार, आदि नृत्य की पंरम्परा है लेकिन कुछ चर्चित चेहरो के सम्मलित होने पर समारोह में चार चांद लग जाना लाजमी ही था। उदाहरण के तौर पर ''तियां गांव के सीताराम, पालुका गांव के गुलाब सिंह राणा, कफनौल गांव के माल सिंह चैहान, बिंगसी गांव के मण्डल सिंह चैहान, नौगांव के भरत सिंह रावत, किमी गांव के केदार सिंह'', जब किसी गांव में पंहुच जाते थे तो वहां का माहौल ही मेले में तब्दील हो जाता था। क्योंकि ये शख्श ऐसे नृत्य और गीत का प्रवाह करते थे कि सभी ग्रामीणो में उत्साह भरना इनकी फितरत ही हुआ करती थी। इस तरह समय और समाजो ने भी करबट लेनी आरम्भ की और संस्कृतिकर्म चैक से उठकर स्टेज, रेडियो आॅडियो-विडियो तक पंहुच गया।


यमुनाघाटी में संस्कृतिकर्म को आजादी के बाद यानि 1952 में सकलचन्द रावत ने नया आयाम दिया है। घनश्याम सैलानी, गुणानन्द पथिक के साथ रहे यमुनाघाटी के पौल गांव के पातीराम जगूड़ी ने 1966 में आकाशवाणी में पर्दापर्ण किया। अर्थात आकाशवाणी के पहले कलाकार के रूप में पातीराम जगूड़ी ने रेडियो एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमो में ''कन्या विक्रय'' के खिलाफ वृहद गीत गाये। 40 वर्षो तक लगातार रेडियो के वरिष्ठ कलाकार रहे पातीराम जगूड़ी ने नवम्बर 2006 में दुनियां को अलविदा कह दिया। पौल गांव के ही जगदीश जगूड़ी ने भी 60 के दशक से अब तक रामलीला, स्टेज शो व नाटको में दमदार संगीत का प्रस्तुतिकरण किया है।


अस्सी के दशक तक कुणी गांव के अतर सिंह डोटियाल ने रामा कम्पनी दिल्ली से ''शीला घस्यारी'' नाम से आडियो कैसट् बाजार में लायी। जिसे यमुनाघाटी की पहली आडियो कैसट् का श्रेय जाता है। इस कैसट् में खान्सी गांव की सुलोचना ने स्वर दिया था। बताया जता है कि कुछ समय पश्चात सुलोचना को किसी अज्ञात ने जहर देकर मार डाला था। लेकिन इस कैसट् में जो आवाज का जादू तत्काल दिवंगत सुलोचना ने भरा वह आज भी एक बारगी सुनने पर लोगो की सांसे रोक देता है।


1985 में रमेश लाल और सुलोचना ने एक मामूली टेपर्रिकार्ड में ही एक आडियो कैसट् रिकार्डिगं करवाई। इस कैसट् ने भी खूब धूम मचायी है। इन्ही दिनो सुनारा गांव के लक्ष्मण सिंह रमाोला और उनके साथियों ने ''भारत माता'' नाम से इन्दीरागांधी को श्रद्धाजलीं बावत आडियो कैसट् बाजार में प्रस्तुत की है। नब्बे के दशक में लक्ष्मण सिंह रमोला ने पुनः ''औन्दी काईना बेटी'' और ढकाड़ा गांव के महेन्द्र सिंह चैहान ने ''चिट्ठी आई चिट्ठी'' व गुंदियाट गांव के राधेश्याम नौटियाल ने 1994 में ''घुंघर्याली लटुली'' नाम से आडियो कैसट् बाजार में उतारी। तब यमुनाघाटी में यातायात, विधुत, सड़क की माकूल व्यवस्था नहीं थी और आडियो कैसट् सुनने के संयत्र भी अतिसीमित थे। यही वजह है कि इन दिनो ऐसी आॅडियो कैसट् को कोई खास प्रचार-प्रसार नहीं मिल पाया। 1994 तक ढकाड़ा गांव के महेन्द्र सिंह चैहान की स्वरचित ''चिट्ठी आई चिट्ठी, बामदेवा, लालुरी, भगतू मामा'' चार भाग आ चुके थे। इसके बाद तो महेन्द्र सिंह चैहान का गीत गाने की धारा प्रवाह अबिरल चलती रही और अब तक उनके आडियो के 32 भाग बाजार में उपलब्ध है। जिनमे एक दर्जन विडिया फिल्म (चलचित्र गीत) भी हैं।


1997 के बाद यमुनाघाटी में रगंकर्म के क्षेत्र में एक और विस्तार हुआ। 2004 में बद्री प्रसाद बिजल्वाण के निर्देशन में रंवाल्टी भाष में ''मिस्टर रतन्या'' नाम की टेली फिल्म का निर्माण किया गया। इस फिल्म में भी स्थानीय कलाकारो ने बखूबी हिस्सा लिया है। मुरारी गांव के मोहन ऊर्फ मौनी एवं पोरागांव की ममता ऊर्फ पिंकी ने फिल्म में नायक व नायिका के रूप में शशक्त अभिनय किया है। 2004 तक अनिल बेसारी, सुनिल बेसारी ने ''जवानी की उमंग, बांद भग्यानी और 2011 में ''लाली बौ'' जैसी आडियो कैसट् बाजार में ही नहीं अपितु इनके गीत सीधे लोगो के मोबाईल तक पंहुच गये। वर्तमान मेें सुनिल और अनिल आकाशवाणी व दूरदर्शन के कलाकार भी हैं।


इनके अलावा राज सावन, रणूभाई, बृजमोहन पंवार, सुमन शाह, जितेन्द्र राणा, जमुना प्रसाद बहुगुणा, देव प्रसाद बहुगुणा, सुनिल सेट्ठी, चुन्नीलाल, सुन्दर प्रेमी, सुरेश धीमान, त्रिलोक चन्द, नवीन भारती, गोविन्द नेगी, निधि राणा, सुरेश भारती, दीपा, नीशा, उमा भारती, विजय नेगी, संदीप जागरया सरिके कलाकार लोक गायक के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। हालांकि इन कलाकारो की दो-दो आडियो विडियो कैसट् बाजार में भी उपलब्ध है।