धुन के पक्के बलूनी बन्धु

||धुन के पक्के बलूनी बन्धु||


बलूनी क्लासेज व पब्लिक स्कूल उत्तराखंड में तेजी से उभरता हुआ एक ब्रांड बन गया है। इंजीनियरिंग व मेडिकल में जाने वालों के लिए बलूनी क्लासेस सफलता की गारंटी सा बनता जा रहा है।


आज बलूनी क्लासेस के संस्थानों में हजारों छात्र कोचिंग लेकर सफलता की मंजिलें तय कर रहे हैं। बलूनी ग्रुप आॅफ एजुकेशनल इंन्स्टीट्यूट्स के अन्तर्गत 5 कोचिंग संस्थान एवं करीब आधा दर्जन पब्लिक स्कूल सफलता पूर्वक चल रहे हैं।


आगरा से एम.बी.बी.एस. व एम.डी. की डिग्री उत्कृष्ट श्रेणी से पास करने वाले डा.नवीन बलूनी को कुछ और ही करना था, उन्होंने आगरा में साढे़ तीन हजार रूपये के मासिक किराये पर एक ट्यूशन प्र्वाइंट खोला। जहां दो बच्चे आने लगे और नवीन बलूनी उन्हें बायलाॅजी पढ़ाने लगे। लोगों ने जब नवीन को ट्यूशन पढ़ाते देखा तो उस पर व्यंग्य दागने लगे 'एम.डी. साहब दो बच्चों को ट्यूशन पढा रहे हैं, अगर ट्यूशन ही पढाना 
था तो डाॅक्टर बनने में मां बाप के लाखों रूपये क्यों फूकें, कहीं मास्टरी कर लेते....!


पर अपने धुन के पक्के नवीन अपने रास्ते से डिगे नहीं उनका मानना था कि बच्चों को संवारने वाले शिक्षक को सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा होना चाहिए। इसलिए वे अपना काम ज्यादा तत्परता से करने लगे ' नवीन के पढ़ाने के तरीके  की चर्चा होने लगी और ट्यूशन के बच्चों की संख्या बढ़ने लगी ।
आगरा में कोचिंग सेंटर चल निकला तो डा. बलूनी ने इसे उतराखण्ड में स्थापित करने की योजना बनाई, और देहरादून में 2006 में बलूनी क्लासेज की स्थापना की। उसमें 30 बच्चों ने दाखिला लिया। तब यहां कई मंहगे व नामचीन संस्थान थे।


उसके बावजूद बलूनी क्लासेस में मेडिकल की तैयारी करने वाले 30 छात्रांे मंे से 28 छात्रों ने एम.बी.बी.एस.,बी.एम.एस.,बी.एच.एस.,बी.एच.एम.एस. व पंतनगर विवि में पशुचिकित्सक की परीक्षा पास की।


इस अभूतपूर्व सफलता ने बलूनी क्लासेज को रातों-रात प्रसिद्धि दिलवा दी। संस्थान के निदेशक विपिन बलूनी के अनुसार संस्थान से निकले 28 छात्र व उनके अविभावक अपने आप ही संस्थान के ब्रांड एम्बेस्डर बन गये और अगली बार तीन सौ छात्रों ने कोचिंग क्लासेस में प्रवेश लिया। उसके बाद छात्रों की संख्या में दाखिले के लिए प्रतियोगिता सी शुरू हो गई और वर्तमान समय में देहरादून के बलूनी क्लासेस में ही 1500 छात्र डाॅक्टरी और इंजीनियरिंग की कोंचिग ले रहे हैं।


अनोखी शिक्षा पद्धति-
बलूनी बंधुओं ने आगरा सहित उत्तराखंड के करीब आधा दर्जन पब्लिक स्कूलों में एक अनोखी शिक्षा पद्धति शुरू की है। उसमें बच्चे को नर्सरी में प्रवेश के वक्त दो लाख रूपये जमा करने होते हैं, उसके बाद छात्र की पढ़ाई शुरू हो जाती हैं, जब वह छात्र 12 वीं पास करेगा तो उसके एक लाख अस्सी हजार रूपये भी वापस मिल जायेंगे जिससे वह अपनी हायर स्टडी या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकेगा।
यह अनोखी शिक्षा नीति अविभावकों को रास आ रही है, बलूनी पब्लिक स्कूलों में तेजी से दाखिले हो रहे हैं इनके स्कूल अंत्तर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर चल रहे हैं, जहां स्वीमिंग पूल से लेकर घुड़सवारी तक की बहुमुखी शिक्षा दी जा रही है।


देश में सबसे बड़ा भेड़-बकरी संस्थान खोलने की योजना 
सुनने वालों को भला यह अटपटा लगे कि बलूनी गु्रप आॅफ एजुकेशन संस्थान अब भेड़ बकरी पालन की ओर कदम बढ़ा रहा है। पर यह बिल्कुल सही है, बलूनी बंधु देश का सबसे बडा़ अत्याधुनिक भेड़-बकरी शोध संस्थान खोल रहे हैं जो मथुरा में करीब सौ एकड़ क्षेत्र में फैला होगा। इसके लिए अत्तर्राष्ट्रीय भेड़ बकरी विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। इसका एक बड़ा केन्द्र कोटद्वार तथा कई पहाड़ी क्षेत्रों में उपकेन्द्र होंगे।
संस्थान पहाड़ी क्षेत्रों में भेड़ व बकरी पालकों की सहकारी समितियां बनाकर उन्हें उनसे सम्बध रोजगार से जोडे़गा।


संस्थान उन्हें उन्नत किस्म की भेड़ बकरियां देगा तथा उनकी प्रबन्धन की व्यवस्था संस्थान करेगा। संस्थान की यह पहल बढ़ते पलायन को रोकने में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
कभी खुद ट्यूशन न पढ़ पाने वाले भाई विपिन और नवीन आज पहाड़ से आये कई गरीब बच्चों को निःशुल्क कोंचिग करवा रहे हैं। उनका प्रयास है, पहाड़ का कोई प्रतिभावान बच्चा गरीबी के कारण पीछे ना छूट जाए।
कभी सिर्फ पाव भर दूध आ पाता था घर में


वर्ष 1987 में पिता के फौज से रिटायर होने के बाद उन पर चार संतानों का लालन पालन व पढ़ाई का बोझ भी पड़ने लगा था। घर की हालत खराब होने लगी थी, 6 लोगों का परिवार रूड़की के एक कमरे में रहते थे ।
बच्चांे की पढ़ाई व रोटी चावल के बाद घर में मात्र 250 ग्राम दूध ही आ पाता था जिसकी दो बार चाय ही बन पाती थी।


बड़े भाई विपिन इस इम्पायर के लिए अपने छोटे भाई डाॅ.नवीन को पूरा श्रेय देते हैं, उनका कहना है, कि नवीन बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल था। वह घर के सामने दुकानदार से उसका अखबार उस समय मंागता था जब वह दोपहर में दो घंटे के लिए भोजन के लिए दुकान बंद करके अपने घर जाता था, जैसे वह वापस आता था नवीन उसका अखबार लौटा आता था। इस दौरान वह पूरा अखबार पढ़ लेता था। घर में वह अपने से बड़ी क्लास वाली दोनों बहिनों को पढ़ाता था।


1991 में नवीन ने वेटनरी चिकित्सक की परीक्षा पास की, उन्होंने पंतनगर में एडमिशन भी लिया, पर वह सी.पी.एम.टी पास कर डाॅक्टर बनना चाहता था। पिता से बोला एक मौका दो अगले साल वह सी.पी.एम.टी में पास होकर दिखा देगा। नवीन होशियार था इसलिए पिता ने घर की माली हालत खराब होने के बावजूद उसकी शर्त मान ली और अगले ही वर्ष नवीन ने सी.पी.एम.टी परीक्षा अच्छी रैंक से पास कर ली।
परिवार रूड़की में रहता था और नवीन ने आगरा मेडिकल कालेज में अपनी पढ़ाई शुरू कर दी।
पिता ने परिवार के पालन-पोषण के लिए लोन लेकर एक मिनी ट्रक खरीद लिया था और उसे चलाकर परिवार की गाड़ी आगे बढ़ाने लगे। उनका बड़ा बेटा विपिन भी साथ देने लगा और धीरे-धीरे ट्रकों की संख्या बढ़ने लगी और कुछ ही वर्षों में वे पांच ट्रकों के ट्रास्पोर्टर बन गये।


आगरा में मेडिकल की पढ़ाई के साथ-साथ डाॅ.नवीन ने ट्यूशन का काम भी शुरू कर दिया था और वह भी तेजी से चल निकला।


बाद में बड़े भाई विपिन ने भी ट्रांसपोर्ट का धंधा बंद कर वह भी भाई का हाथ बटाने में जुट गये और अब पूरे संस्थान का प्रशासन उनके हाथ में है। 


आंघी तूफान में भी अनवरत चलता है संस्थान 
बलूनी क्लासेस सप्ताह में सातों दिन और साल में पूरे 365 दिन चलता है। वे यहां आने वाले बच्चों को अनुशासन में रखते हैं, बच्चा संस्थान के अंदर कब दाखिल होता है और कब बाहर निकलता है, एक कार्ड मशीन में डालते ही उसका एस.एम.एस. छात्र के अविभावक को हो जाता है। खुद विपिन अपने आफिस में सीसीटीवी के माध्यम से हर क्लास रूम पर नजर रखते हैं, केदारनाथ आपदा में उनका संस्थान राहत पहुंचाने वालों में पहली कतार में था। पहाड़ से पलायन कैसे रूके इस पर दोनों भाई घटांे विचार विमर्श करते हैं, और उसके लिए अपने स्तर पर रूपरेखा बनाते हैं। उसी मंथन से निकला भेड़ बकरी पालन का देश का सबसे बड़ा संस्थान। यह मंथन अनवरत जारी है।