एक ग्वाला जब जज बन गया

||एक ग्वाला जब जज बन गया||


आठवीं की पढ़ाई छोड़कर ब्रहा्रखाल (उत्तरकाशी) स्थित अपने गांव के जंगलों में अपनी गाय व बकरियों को चराने में मशगूल बालक जयदेव अपनी ही धुन में मस्त था। स्कूल छोड़े व किताबों से नाता तोडे़ उसे पूरे सात साल हो गये थे।


अनूसूचित जाति के परिवार में जन्में परिवार के इकलौते बेटे जयदेव को पिता ने आठवीं की परीक्षा पास करने के बाद कह दिया था कि घर में उस अकेले के लिए खेतीबाड़ी व पशु काफी हैं, इसलिए वे घर में अपना कामकाज संभाल ले। अब उसे चिट्ठी-पत्री पढ़नी तो आ गयी है, ज्यादा उन्हें क्या चाहिए ?


जयदेव ने भी बालमन में बिना सोचे-समझे पिता की बात मान ली और स्कूल छोड़ दिया। स्कूल छोड़े सात-आठ साल कब बीत गए उसे पता ही नहीं चला। एक दिन उसकी बुआ उनके घर आई। जयदेव ने बुआ से पूछा भाई (बुआ का बेटा) कैसा है? यह भाई कभी जयदेव के साथ ही ब्रहा्रखाल स्कूल में साथ-साथ पढ़ता था।


बुआ बोली मेरा बेटा तो बड़कोट में बीटीसी कर रहा है। जल्दी ही वह मास्टर (अध्यापक) बनकर बच्चों को पढ़ाएगा और उसे अच्छा वेतन मिलगा।...... तू भी पढ़ता तो वैसे ही मास्टर बन जाता।  बुआ की बातों ने बालक जयदेव को अन्दर तक झकझोर दिया और मौन होकर कुछ सोचने लगा। कुछ बोला नहीं, रात को यों ही सोचता व करवटें लेता रहा....उसे लग गया था कि उसने कुछ बड़ी भूल कर दी है।


सुबह जयदेव ने पिता से कहा कि वह चिन्यालीसौड़ से 10वीं कक्षा का प्राइवेट फार्म भरकर परीक्षा देना चाहता है। इससे पूर्व जयदेव ने कभी पढ़ने-लिखने की बात नहीं की थी।बच्चे के मन में अचानक आए इस बदलाव में पिता बाधक नहीं बनना चाहते थे, उन्होंने इसके लिए अपनी हामी भर दी। जयदेव ने 10 वीं कक्षा का प्राइवेट फार्म भर दिया और 10 वीं की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास कर ली।


कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश पुलिस की भर्ती थी तो वह भी भर्ती की लाइन में खड़ा गया। गाय-बकरियों को चराते हुए, उनके पीछे पहाड़ियों में कूदते-फांदते हुए मजबूत शरीर वाला जयदेव पुलिस बल की परीक्षा में पास हो गया और उसकी कोटद्धार में तैनाती हो गई। 


पुलिस में रहते हुए जयदेव ने इंटरमीडिएट, स्नातक व फिर गढ़वाल विवि पौड़ी से एलएलबी की परीक्षा भी अच्छे अंकों से पास कर ली। वे अब वकील बन गय थे और उन्होंने पुलिस व वकील में से वकील के पेशे को चुना। पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देकर उत्तरकाशी में अपनी वकालत शुरू कर दी।


वकालत ठीकठाक चल पड़ी पर उसने अभी और लम्बा सफर तय करना था, सो वह उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा में शामिल हो गए। उन्होंने यह प्रतिष्ठित परीक्षा तो दी पर गंभीरता से नहीं। वह सिर्फ इस बार कठिन परीक्षा का अनुभव लेना चाहते थे। परीक्षा परिणाम आया तो सिर्फ एक नंबर से उतीर्ण होने से रह गए थे। परीक्षाफल आने पर वे समझ गए कि यदि वह थोड़ी और गंभीरता से परीक्षा दिए होते तो उनका चयन निश्चित था। खैर, समय बीता और अगले वर्ष उन्होंने फिर उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा फार्म भर दिया।


वे परीक्षा देने इलाहबाद रवाना हुए तो उनकी पत्नी ने भी उनके साथ इलाहबाद घूमने की इच्छा जताई। जिस पर दोनों पति-पत्नी इलाहबाद के लिए रवाना हो गए।


वहां एक होटल में ठहरे, पति परीक्षा देने जाते तो पत्नी होटल में ही उनका इंतजार करती। कुछ ही दिन में परीक्षा समाप्त हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी की शहर घूमने की इच्छा पूरी करने को कहा, पर उनकी पत्नी ने कहा कि वे अब शहर घूमना नहीं बल्कि वापस घर चलना चाहती हैं। साथ ही उन्होंने इलाहबाद आने का रहस्य भी खोला। उन्होंने कहा कि वे उनके साथ घूमने नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करने आई थी कि वे पूरी गंभीरता व मेहनत से परीक्षा दें। अब आपने पूरी मेहनत से परीक्षा दे दी है इसलिए अब आपको परीक्षा में पास होने से कोई नहीं रोक सकता। अब हम इलाहबाद घूमने की बजाय उत्तरकाशी अपने बच्चांे के पास जाना चाहते हैं। 


जयदेव अपनी पत्नी की यह योजना सुनकर दंग थे। तब उन्हें याद आया कि पिछले वर्ष परीक्षा के दिनों में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मस्ती मारने की कहानी पत्नी को सुनाई थी। पत्नी तभी समझ गई थी कि यदि वे पूरी गंभीरता से परीक्षा देते तो वे परीक्षा पास कर लेते। तभी उन्होंने निर्णय ले लिया था कि अब की बार जब फिर परीक्षा होगी तो वे खुद ही उनके साथ इलाहबाद जाएंगी। परीक्षाफल आया तो वे उसमें उतीर्ण हो गए।


उनकी पत्नी के उस प्रयास ने साबित कर दिया कि किसी सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता ही है।


जयदेव सिंह कई जिलों में जिला जज के पदों पर रहने के बाद वर्तमान में उत्तराखंड सरकार में 'प्रमुख सचिव' (विधायी एवं संसदीय कार्य) हैं। वे अपने बचपन के दिनों को आज भी याद करते हैं और दूरदराज के गांवों से आने वाले गरीब लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं साथ ही जब भी मौका मिलता गांव से आए युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।