गंगा स्वच्छ अभियानो की ढलती उम्र, 32 बरस में 22 हजार करोड़

 ||गंगा स्वच्छ अभियानो की ढलती उम्र, 32 बरस में 22 हजार करोड़||


विशेषज्ञों की हमेशा से राय रही है कि जब तक गंगा या किसी भी नदी की गाद निकालने का काम सही तरीके से नहीं होता है तब तक सतही सफाई का कोई मतलब ही नहीं है। सवाल इस बात का है कि असली सफाई तो गंगाजल की गुणवत्ता को सुधारने का है, उसमें गिरने वाले सीवेज के नालों के उपचार का है। सरकारें कब से कह रही है कि सीवेज के जल का ट्रीटमेंट करने के बाद उससे निकलने वाली गंदगी को गंगा में नहीं डाला जाए। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि गंगा से हम बड़ी मात्रा में पानी तो निकालेंगे लेकिन उपचारित पानी को वापस नहीं करेंगे। इससे नदी का प्रवाह कैसे बनेगा, और कैसे आगे बढ़ेगा। 


इधर वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिन्तित है कि गंगाजल में 20 वर्ष पहले की जो गुणवता थी वह मौजूदा समय में लगभग 60 फिसदी तक गिर गई है। उनका मानना है कि गंगाजल हरिद्वार के बाद बिल्कुल भी आचमन लाईक नही रही है। यहां तक कि कानपुर पंहुचते पुहचते गंगाजल की गुणवता समाप्त ही हो जाती है। अब दोनो तरह की चिन्ता वैज्ञानिक व भावनात्मक रूप में गंगाजल को लेकर तेजी से सामने आ रही है। इसका समाधान कैसे होगा जो समय की गर्त में है।


गंगा स्वच्छता पर एनजीटी का गुस्सा
गंगा की सफाई को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण कई बार सरकार और लोगो को चेता चुका है। सरकार और लोग एनजीटी के फतवे से सचेत तो हो जाते हैं मगर कुछ दिन के बाद हालात जस के तस बन जाते है। जबकि एनजीटी ने एक खास फैसले के तहत निर्देशित किया था कि गंगा तट से 100 मीटर तक के क्षेत्र को ''नो डेवलपमेंट जोन'' घोषित किया जाना चाहिए। 500 मीटर के दायरे में कचरा फेंकने पर 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान लागू होना चाहिए। यह फैसला सरकार ने हाथो हाथ लिया था, किन्तु इस फैसले के क्रियान्वयन में सरकारी स्तर पर संवेदनशून्यता भी बनी हैं।


उदाहरण लोगो के सामने है कि गंगा के किनारे विशालकाय धार्मिक मठ-मंदिर, होटलनुमा आश्रम व धर्मशालाओं के अलावा कईयो कारखाने बने है। जिनका 100 मीटर और 500 मीटर से कोई लेना देना नहीं है। इन सभी का सीवेज गंगा की तरफ ही जा रहा है। ऐसे भी उदाहरण अब तक सामने नहीं आये कि हरिद्वार जैसे धार्मिक नगरी में सभी धर्माथ ट्रस्टों ने अपने-अपने सीवेज को उपचारित कर दिया है, अपने कारोबार को गंगा के बहाव क्षेत्र से 500 मीटर दूर ले जाया गया है बगैरह। ऐसी हालात में कैस कह सकते हैं कि 30 दिसम्बर तक गंगा की स्वच्छता दिखाई देने लगेगी। इसी बात को लेकर एनजीटी को बार-बार फतवा जारी करना पड़ता है। पर एनजीटी के निर्देश पर सरकार गंभीर हुई हो, ऐसा भी मामला सामने पर नहीं आया है।


जांच के सवाल भी उठने लगे है
स्मरण रहे कि गंगा नदी की साफ-सफाई को लेकर देश में पिछले कई बरसों से सशुल्क अभियान भी चलाये जा रहे है। पर कोई भी अनुकूल परिणाम आये हो ऐसा भी नहीं कह सकते है। सरकारी खजाने से पिछले 32 वर्षो से लगभग 22 हजार करोड़ रुपया पानी में गंगा के नाम पर बहाया जा चुका है। यह इस बात की पुष्टी करती है कि जब गंगा की साफ हुई ही नहीं तभी तो सरकारें एक के बाद एक बजट गंगा सफाई के लिए स्वीकृत कर रही है। सवाल उठ रहे हैं कि अच्छा तो यह होगा कि इस तरह के धन दुरूपयोग की भी जांच होनी चाहिए।


गंगा प्रवाह के जैसे ही है नमामी गंगे का बजट
शुरुआत से ही इसके बजट और खर्च की राशि में काफी अंतर रहा है। 2014-15 में 2137 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया गया और राशि आवंटित की गई 2053 करोड़ रुपये, लेकिन खर्च सिर्फ 326 करोड़ रुपये ही हुए। 2015-16 में 1650 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई और खर्च होने से 18 करोड़ रुपये बच गए। इस साल 2500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। लेकिन खर्च का हिसाब अब तक नहीं मिल पा रहा है।


गंगा की अविरलता के लिए सरकारी कदम
गंगा कार्ययोजना की शुरुआत वर्ष 1985 में वाराणसी से तत्काल प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 900 करोड़ रुपयों से की थी। वर्ष 2014 में राजग सरकार के अस्तित्व में आने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकताओं में गंगा सर्वोपरि है। वैसे तो गंगा की साफ-सफाई के लिए वर्ष 1980 में ही योजनाएं बना ली गई थीं किंतु केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कुछ किया नहीं जा सका। वर्ष 1985 में गंगा सफाई के लिए शुरू की गई गंगा कार्ययोजना अब बतौर ''नमामि गंगे'' केंद्र सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं का एक हिस्सा है। 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने प्रदूषित गंगा की चिंता करते हुए 20 हजार करोड़ का बजट आबंटित कर दिया।


सरकार को दिल में जगह बनानी होगी
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि अगर गंगा को नहीं बचाया गया तो उत्तर भारत रेगिस्तान बन जाएगा। उनकी चिंता असाधारण नहीं है। केंद्रीय गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने भी स्वीकार किया है कि दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित 10 नदियों में गंगा नदी भी शामिल है। देश के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) ने भी माना है कि गंगा नदी जल में पाया जाने वाला ''ब्रह्म द्रव्य'' अर्थात औषधीय गुण कोई पौराणिक मान्यता मात्र का विषय नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। लोगो का मानना है कि सौ-डेढ़ सौ बरस पहले ब्रिटेन की टेम्स या यूरोप की डैन्यूब नदी तो सड़ांध मारने लगी थी किंतु वहां की सरकारों ने सब कुछ बदल दिया। सरकारें चाहें तो बहुत कुछ बदला जा सकता है किंतु गंगा कदापि टेम्स नहीं है। गंगा का मामला करोड़ों भारतीयों के जीवन, रोजगार और आस्था से जुड़ा मामला है।


क्या गंगा सरक्षण कानून आयेगा
राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर देश के समस्त जल संसाधनों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करते हुए एक व्यापक जल नीति बनाने की मांग अरसे से उठती रही है। इधर गंगा के संरक्षण के लिए एक कानून की वकालात करते करते स्वामी सानन्द ऊर्फ प्रो॰ जीडी अग्रवाल को जान की आहूती देनी पड़ी। अब ज्ञात हुआ है कि गंगा संरक्षण को गति देने के लिए केंद्र सरकार गंगोत्री से गंगासागर तक एक गंगा कानून लाने का विचार कर रही है। न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय की अध्यक्षता वाली एक 4 सदस्यीय समिति ने इस कानून का मसौदा तैयार कर लिया है जिसे जल्द ही संसद में पेश कर दिया जाएगा। इस कानून के तहत गंगा पुलिस तैनात करने की भी योजना है। गंगा रक्षा की देखभाल एक प्राधिकरण करेगा, जो संपूर्णतः केंद्र सरकार के अधीन कुछ इस तरह से रहेगा कि कोई भी राज्य सरकार इसमें अपनी मनमानी नहीं कर पाएगी।


वाराणसी से हल्दिया तक 1860 किमी का होगा जल मार्ग
हमने गंगा की 250 परियोजनाएं चिह्नित की हैं। इसमें से 47 पूरी हो गई हैं। नमामि गंगे मतलब सिर्फ गंगा नहीं है, इसमें यमुना समेत 40 नदियां और नाले शामिल हैं। यमुना में ही 34 परियोजनाएं चल रही हैं जिसमें 12 दिल्ली में हैं। दो या तीन प्रोजेक्ट मथुरा में हैं। मथुरा में एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं, जिसमें इंडियन ऑयल को पानी शुद्ध करके बेचेंगे। कानपुर में सात प्रोजेक्ट शुरू हैं। इलाहाबाद में पांच में से तीन परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया है। इसी तरह वाराणसी में चार में से दो पर काम शुरू हो गया है। पटना में 11 प्रोजेक्ट हैं। इसमें से सात पर काम शुरू हो गया है। झारखंड में दो प्रोजेक्ट हैं, दोनों पर काम शुरू हो गया है। बंगाल में 14 प्रोजेक्ट हैं, उसमें से आठ पर काम शुरू हो गया है। दो प्रकार के काम हैं, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट। सॉलिड और लिक्विड के इतर पूरे साल गंगा का प्रवाह बना रहे ऐसी योजना है। अगले साल मार्च तक गंगा को 70-80 फीसद करके निर्मल किया जाएगा और दिसंबर तक वे सभी परियोजनाओं को शुरू कर दें। गंगा की 70 फीसद गंदगी की वजह कानपुर है। इसके बाद दिल्ली, वाराणसी और इलाहबाद जैसे शहर हैं।


गंगा में वाराणसी से हल्दिया 1680 किमी जलमार्ग बनाया जा रहा है। इसमें चार मल्टी मॉडल हब होंगे। मल्डी मॉडल हब मतलब जहां, रोड़, राष्ट्रीय राजमार्ग, जलमार्ग और रेलवे भी हो। वाराणसी, गाजीपुर, साहेबगंज और हल्दिया चार जगह पर मल्टी मॉडल हब हैं और 50-60 रिवर पोर्ट बनाए जा रहे हैं। वाराणसी से हल्दिया तीन मीटर का मिनिमम ड्राफ्ट बना रहे हैं। जिस पर 1700 करोड़ का पांच साल के लिए काम दे दिया है। जैसे एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम होता है, वैसे पटना तक वाटर ट्रैफिक सिस्टम बनाया गया है। कानपुर में टेनरी के लिए प्रोजेक्ट चल रहा है। इसमें स्पेन या किसी अन्य देश की तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा गंगा में प्रदूषण करने वाली शुगर मिलों को भी नोटिस जारी किया है और जीरो डिस्चार्ज मानक का पालन करने को कहा है।


कुंभ के लिए गंगा नदी में पर्याप्त शुद्ध जल उपलब्ध होगा। इसके अलावा वाराणसी से इलाहाबाद तक ड्रेजिंग करने का निर्णय किया है। इस साल वे नवंबर-दिसंबर में नाव में बैठकर वाराणसी से इलाहाबाद तक जायेंगे। कुम्भ के दौरान लोगो को इलाहबाद शहर में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके लिए इलाहबाद में चार नदी पोर्ट बनाए जा रहे हैं।


(- केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने यह बाते एक साक्षात्कार के दौरान पत्रकारो से कही)