घुघुतिया त्यौहार को लेकर उत्साह

घुघुतिया त्यौहार को लेकर उत्साह


माघ माह में मकर संक्राति के दिन मनाए जाने वाले घुघुतिया त्यौहार को लेकर मेरे गाँव कानिकोट, जिला चम्पावत, में भारी उत्साह देखा जाता हैशाम को लोग गुड़ डाल कर गूंथे गये मीठे आटे से घुघुते तैयार करते हैं। मीठे आटे से टेढ़े-मेढ़े घुघते और दाडिम का फूल, हुड़के, अगुकाट, तलवार-ढाल, तारा जैसी अनेक आकृतियाँ बनाते हैं। इन्हें तल कर माला के रूप में पिरो लेते हैं।


अगली सुबह बच्चे गले में घुघुते की माला डालकर “काले कौआ काले, घुघता माला खाले' की आवाज लगाकर कौओ को बुलाने का प्रयास करते हैं। कुछ बच्चे कौए को बुलाते हुए कहते हैं, "ले कौआ घुघुति तू खाले पूरी, मी देले छूरी।" "आजा कौआ आजा, घुघुति माला खाजा।" "ले कौआ बड़ा, मी देजा सोने का घड़ा।"


इस त्यौहार के दिन महिलायें अपने मायके जाती हैं। उत्तराखण्ड में घुघुतिया का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन कौवे को पूरी और प्रसाद आदि खिलाने से मृतात्माएं तृप्त होती हैं, घर में सुख और शान्ति आती है।


मकर-संक्रांति के अवसर पर हर घर में बच्चों को स्नान करवाया जाता है। तिलक लगाकर गले में घुघुती की माला डाली जाती है। ग्रामीण अंचलों में इस पर्व को लेकर अभी भी काफी उत्साह रहता है। इस दिन बच्चे सुबह से ही कौवे का इंतजार करने लगते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैंघर में घुघुते के साथ-साथ पूरी, बाबर, मीठी पूरी, बड़ा आदि अनेक प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं।