गोवा का सावन

गोवा का सावन


समय अनादि अनंत होता है। ऋतुचक्र भी इसी प्रकार चलता रहता है आषाढ़ के माह में बरसात पूरी धरती को मानो धो डालती है। मगर इसके बाद आने वाली वर्षा ऋतु अपने साथ एक अलग ही तरह की श्रेष्ठता, हरियाली और संपन्नता ले आती है।


इसी ऋतु में आता है सावन गोवा के सावन की बारिश में मानो एक अनोखा लाड़-प्यार छिपा रहता है।संगीत की मध्य लय जैसा । उसका प्रमाण, उसका जोर, उसकी गति सब कुछ संतुलित पद्धति से चलते हैं यह बारिश एक पल में आती और पल में ही गायब हो जाती है।


गोवा के सावन की बारिश मूसलाधार नहीं होती। यह बारिश ज़रा भी तकलीफ नहीं देती। रिमझिम बूंदें गिरती रहती हैं। थोडी सी नटखट, थोडी सी शैतानकभी कभी अचानक से बहुत भारी बारिश होने लगती है और अंग-अंग को भिगोकर चली जाती हैसाथ ही मन को भी मानो भिगोकर हराभरा कर जाती हैमिट्टी के साथ पेड़-पौधे भी बारिश में गीले और हरे-भरे हो जाते है।


सावन की बारिश, बूंदा-बाँदी रिमझिम किस्म की होती है। अचानक कहीं से आसमान में इंद्रधनुष उभर जाता है। बारिश की बूंदें तो पेड़-पौधों को भिगोकर चली जाती हैं, मगर उसके बाद कुछ पल तक उन्हीं पेड़-पौधों में से बँदें गिरती रहती हैं। उन बँदों का लयबद्ध गिरना किसी संगीत की तरह मन को एक अलग ही शांति दे जाता है। इस समय खिलने वाली धूप मानो हल्दी सी महकती लगती है.


गोवा के सावन का नाता सिर्फ बारिश से नहीं होतात्योहार, पूजा विधि, जलते हुए दिये और इन सब से निर्माण होने वाला एक पावन, सात्विक वातावरण यह भी सावन का ही दूसरा रूप होता हैइन्हीं त्योहारों के मौके पर अनेक तरह के सांस् तिक और संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन गोवा के मंदिरों में होता है । अनेकों तरह के खाद्य पदार्थ और उनकी सुगंध.


बचपन के सावन की ढेर सारी यादें आज भी मन में जिंदा हैंबचपन से ही दादाजी के घर सावन के अलग अलग रंग-रूप देखे हैं सावन के महीने में प्रति की अलग ही सृजनशीलता दिखाई पड़ती है। अनेकों किस्म के फूल खिलने लगते हैं। मंदिरों में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं मंदिर की सीढ़ियों पर फूल बेचती महिलाएँ, मंदिर से आने वाले पखावज और भजन के सुर । यह पूरा माहौल कुछ ऐसा होता है मानो मन की सारी अशुभता और मलिनता नष्ट हो जाती है।


मेरी दादी सावन में हर इतवार को पूजा करती थीइंसान, जीव, वनस्पति इन सबको ऊर्जा देनेवाले सूरज की पूजा । इस पूजा के लिए, अलग-अलग तरह के फूल और पत्ते, दादी खुद ले आती । केले के पत्ते पर पूजा की सामग्री सजाई जाती थी बारह तरह के फूल, चावल के बारह दाने । इतवार की सुबह यह पूजा होती थी। दोपहर में नैवेद्य और आरती की जाती थी। शाम के समय घर के आगन में इस पूजा का विसर्जन किया जाता था। इस समय मेरे पास एक बड़ी सेवा रहती थी। विसर्जन के लिए पूजा सामग्री लेकर दादी घर से निकलती तब मैं घंटानाद करते हुए उसके साथ चलता था । दादी सबको पूजा का प्रसाद देती थीखीरे का टुकडा 'कैरम' के 'स्ट्राइकर' जैसा दिखता । प्रथम इतवार को नारियल से बना मीठा प्रसाद दिया जाता था दूसरे इतवार को हल्दी के पत्ते में लिपटी हुई 'पातोली' दी जाती। हल्दी के पत्ते की सुगंध मन को असीम आनंद दे जातीतीसरे इतवार को गुड़ की खिचड़ी बनाई जाती । चौथे इतवार के दिन पुरण की रोटी। इस तरह से सावन में संस्- ति के ढेर सारे रंग और आयाम दिखाई पड़ते थे।


आषाढ के महीने की शुरुआत से ही दादी जंगली सब्जियों के जायकेदार पकवान पकाने लगती। सावन पूरा होने तक यह सब्जियां हमारे खाने का जायका बढाती बहुत सारी सब्जियां परोसी जातीं। आज उन में से ज्यादातर के नाम याद भी नहीं हैं। सावन के माह में त्योहारों की मानों भरमार होती है। नागपंचमी के त्योहार को 'नारळी पौर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। देश के विभिन्न इलाकों में इस त्योहार को मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं। मछलियां पकड़ने वाले मछुआरे इस दिन समंदर की पूजा करते हैं मछलियां पकड़ते समय समंदर में समंदर से रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है.


इसके बाद आती है ष्ण जन्माष्टमीदादाजी सावन के हर सोमवार को नागेशी के शिव मंदिर में जाते। मैं भी उन्हीं के साथ चलता जैसे कोई सैनिक कंधे पर बंदूक रखकर चल रहा हो, दादाजी अपना छाता लेकर फर्मागुढ़ी के पहाड़ उतरकर नागेशी के शिव मंदिर में चले आते । राह में दिखने वाले हरेभरे पेड़ लताएँ मन को प्रसन्न करती। कभी-कभी हल्की बारिश होती थी। रात पुजारी जी के घर में ही ठहरना पड़ता । भगवान के दर्शन हो जाने के बाद मैं होटल में पावभाजी खाने निकल पड़ता। मंदिर के सामने तालाब में तैरते बच्चों को मैं देखता रहता। कभी-कभी मंदिर में रात्रि को भजन या संगीत कार्यक्रम भी होता था। शुक्रवार को महालक्ष्मी के मंदिर में, बृहस्पतिवार को दत्त मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता था। सावन के माह के यह अलग-अलग रूप रंग। इन सबसे सावन का महीना मानो गूंज उठता है। किसी संत ने कहा है, "हम बार-बार भूलते हैं इसीलिए यह त्योहार आकर हमें भगवान की याद कराते हैं। सावन का महीना, जाते-जाते, हमें भाद्रपद महीने में आनेवाले गणेश चतुर्थी का आगाज़ करा जाता है।


सावन पूर्णिमा के दिन या उसके आसपास के किसी एक दिन श्रवण नक्षत्र होता है। उसी से श्रावण महीने को अपना नाम प्राप्त हुआ है ऐसा माना जाता है। सावन यानि चतुर्मास काल का सबसे श्रेष्ठ महीना। सावन माने एक अनुभव ... रंगों का । फूलों पत्तों और आकाश के रंगों का सावन यानि श्रवणीय नादों का आनंदपखावज, तबला, कीर्तन, भजन इन सबका नादमय आविष्कार होता है... सावन। शाकाहारी भोजन और उसकी रूचि को निखारने वाला महीना... सावन.


सावन तथा प्र, ति के सृजन का आनंद व्यक्त करने वाले कई गीत कवियों ने लिखे हैं। यह गीत सुनते ही, सावन में अनुभव किए हुए पुराने असीम पलों की यादें मन में फिर एक बार उमड़ उठती हैं मन तज्ञता से भर जाता है और जाने-अनजाने मन के कोने से प्रार्थना निकलती है, “हे भगवान... तेरा अनंत शुक्रिया । एक और सावन तूने मेरे जीवन की झोली में डाला । यह जीवन और संपन्न करने के लिए।


(mooल कोंकणी लेख का हिंदी अनुवाद : चिन्मय घैसास)


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी