जलग्रहण विकास में सम्बद्ध विभागों के एकीकृत प्रयास

||जलग्रहण विकास में सम्बद्ध विभागों के एकीकृत प्रयास||


सन्दर्भ - वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा राजस्थान


जलग्रहण विकास योजनाओं के सम्बन्ध में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास से सम्बन्धित समस्त प्रकार के राजकीय विभागों जैसे-जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग, कृषि विभागब, उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, पशुपालन विभाग, समाज कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, प्राथमिक शिक्षा/सर्व शिक्षा अभियान तथा स्थानीय स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न प्रकार की योजनाओं एवं अनुदानों / सहायता का प्राथमिकता के आधार पर जलग्रहण  क्षेत्र में क्रियान्वयन किया जाना चाहिए, जिससे कि चयनित  क्षेत्र प्रत्येक  क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें एवं आस-पास के क्षेत्रों हेतु विकास के एक माडल के रूप में प्रदर्शित होवें। प्रायः यह देखा जाता है कि भिन्न-भिन्न विभाग मापदण्डों के आधार पर अपने-अपने विभाग से सम्बन्धित योजनाओं का क्रियान्वयन मात्र लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु करते हैं। संविधान के 73 वें संशोधन की मूल भावना के अनुसार जिला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत स्तर पर 29 विषयों को हस्तान्तरित किये जाने का निर्णय लिया गया है एवं इस निर्णय की अनुपालना में विभिन्न विभागों के कार्यालयों, कर्मियों, निधियों एवं कार्यकलापों का नियन्त्रण जिला परिषदों के अधीन किया जा चुका है। इस व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहें गरीब, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के तबके के लोगों को रानी स्तर पर आवश्यकतानुसार सुविधांएं प्राप्त हो रही है एवं आवश्यकता आधारित कार्य योजना, जिसमें जन सहभागिता को जोड़कर कार्य करने का विशिष्ट महत्व है, तैयार कर कार्य कराये जा रहे हैं। जिला परिषद एवं पचायंत समिति स्तर पर विभिन्न प्रकार की समितियाँ गठित हैं, जिनमें विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं कर्मचारी मनोनीत किये गये है। इन समितियों की नियमित बैठकों में नीतिगत निर्णय लिये जाते हैं, योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की जाती है। इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वागीण विकास के लक्ष्य को  प्रयान में रखते हुए समस्त विभाग एकजुट होकर अपने-अपने संसाधनों एवं योजनाओं का क्रियान्वयन एकीकृत रूप से करें। जलग्रहण विकास प्रबन्धक में ग्रामीण विकास से जुडे़ भिन्न-भिन्न विभागों द्वारा कराये जा रहे कार्यो तथा किसानों को देय सुविधाओं/सहायताओं का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे कि प्रयोगिक जानकारी प्राप्त हो सके एवं विभिन्न विभागों की गतिविधियों को समेकन के आधार पर जलग्रहण  क्षेत्र विकास में अपनाये जाने पर बल दिया जावे। इससे निश्चित रूप से जलग्रहण के समग्र विकास की आवधारणा फलीभूत होगी।


भारत सरकार द्वारा जारी नई कामन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण के सम्बन्ध में विस्तृत परियोजना रिपार्ट ( डी. पी. आर ) जिला संदर्शी योजना के समनुरूप होगी। राष्ट्रीय जलग्रहण रोजगार गांरटी योजना ( एन. आर. ई. जी. एस. ) पिछडें क्षेत्रों की अनुदान निधि ( बी. आर. जी. एफ. ) तथा भू जल की कृत्रिम पुनः भराई के अन्तर्गत मृदा तथा नमी के सरंक्षण से सम्बन्धित अनुमत्य कार्यो को लघु जलग्रहण योजना का संपूरक होना चाहिए। जिला संदर्शी योजनाओं को तैयार करते समय जिला कृषि योजनाओं को भी ध्यान में लिया जाएगा।


11 वी. पंचवर्षीय योजना में विभिन्न योजनाओं और कार्याक्रमों, विशेषरूप से भारत निमार्ण के तहत योजनाओं और कार्योक्रमों तथा अन्य प्लेगशिप योजनाओं के संसाधनों को जलग्रहण विकास परियोजनाओं के  साथ समेकित और समुलित करने हेतु एक अवसर का प्रस्ताव किया गया है। जिला स्तर पर योजनाओं को  अनिवार्यतः तैयार किए जाने से बुनियादी स्तर पर समेंकन और सहक्रियाएं की जा सकेंगी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में पूरी की जाने वाली कमियों अथवा पिछडा़  क्षेत्र अनुदान निधि, ( बी. आर. जी. एफ. ) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना ( एन. आर. ई. जी. एस. ) से हटाकर शुरू किए जाने वाले जलग्रहण कार्यकलापों, भू जल की कृत्रिम पुनः भराई टैंको, जल स्त्रोतांे तथा किन्ही अन्य उपलब्ध स्त्रोतों के नवीकरण और मरम्मत कार्यो का विस्तृत रूप उल्लेख किया जा सकता है। संशोधित ए. पी. एम. पी. अधिनियम के अन्तर्गत विपणन और मूल्यवर्द्धन भी संभव है। परियोजना स्तर पर सभी संगत योजनाओं को समेकित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।


विभिन्न प्रमुख विभागों द्वारा देय सुविधाओं का विवरण निम्नानुसार हैं-


12.2        कृषि विभाग द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं ( )


कृषि के उन्नत तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कृषि विभाग द्वारा कई कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों के तहत कृषकों को दी जा रही सुविधाओं का सक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-


अमूल्य नीर योजना: राज्य सरकार द्वारा अमूल्य नीर योजना के तहत उपलब्ध जल के सदुपयोग हेतु फव्वारा व डिप द्वारा सिंचाई तथा पाइप लाइन को बढावा दिया जा रहा है। इन योजनाओं का सरलीकरण कर कृषक मित्रवत बनाने का प्रयत्न किया गया है।


फव्वारा सिंचाई के लाभ: 30-40 प्रतिशत पानी की बचत, बिजली की बचत, बिजली की दर में कमी, क्यारी-धांरे बनाने की झंझट नहीं, ढालू खेतों में भी सिंचाई सम्भव।


अनुदान प्रक्रिया का सरलीकरण



  • फव्वारा सैट की दरें विभाग द्वारा तय नहीं की जाती हैं इसलिए 8 से 10 फव्वारा सैट विक्रेताओं/डीलर्स से मोलभाव करेंव कीमत कम से कम करवायें।

  • अच्छी गुणवत्ता का आई. एस. आई. मार्का फव्वारा सैट ही खरीदें। किसी भी पंजीकृत निर्माता के ब्राण्ड या मैक का फव्वारा सैट खरीद सकते हैं।

  • फव्वारा सैट की कीमत का अनुदान राशि से कोई सम्बन्ध नहीं है।

  • पास बुक या पुरानी जमाबंदी की फोटों प्रति ही पर्याप्त। नवीनतम जमांबदी की जरूरत नहीं।

  • पटवारी की रिपोर्ट या नक्शा ट्रेश की जरूरत नहीं।

  • फव्वारा सैट खरीदने से पूर्व कृषि विभाग में पंजीयन की जरूरत नहीं।

  • केवल एक पृष्ठ का सरल आवेदन-पत्र। कृषि कार्यालय, फव्वारा डीलर के यहाँ उपलब्ध।

  • आवेदन-पत्र स्वयं कृषक या डीलर या कृषि विभाग के कार्मिक के माध्यम से जमा कराने की सुविधा।

  • अनुदान राशि का तुरन्त भुगतान ड्राप्ट द्वारा सीधे किसान को।


पाइप लाइन पर अनुदान की अधिकतम सीमा 400 मीटर होगी।


डिग्गी-फव्वारा पर देय अनुदान: 4 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर किसान को 20.000 रू, 6 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर 30.000 रू. व 8 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर 40.000 रू. तथा डिग्गी पर फव्वारा हेतु 4.000 रू. पम्पसेट हेतु 3.000 रू. अनुदान देय है।



  • आइसोपाम योजना में दलहन, तिलहन एवं मक्का की फसलों की विभिन्न किस्मों के प्रमाणित बीज मिनीकिट्स निःशुल्क वितरित किये जाते हैं।

  • प्रत्येक मिनीकट में दलहनी फसलों जैसे मूँग, उड़द, मोठ, अरहर, मसूर, ग्वार, चावल के 4 क्रि.ग्रा. चना 8 क्रि.ग्रा. तिलहनी फसलों जैसे सोयाबीन में 8 क्रि.ग्रा. मूँगफली में 20 क्रि.ग्रा., अरण्डी में 2 क्रि.ग्रा. तिल में 1 क्रि.ग्रा व सरसों व तारामीरा का 2 क्रि.ग्रा. बीज दिया जाता है। प्रत्येक मिनीकट में कल्चर पैकेट व साहित्य भी होता है।


फामर्स फील्ड स्कूल आधारित फसल प्रदर्शन



  • कार्य योजना के अन्तर्गत मोटे अनाज वाली दो या दो से अधिक फसलों के4 हैक्टेयर क्षेत्र में उत्पादन तकनीक के सम्पूर्ण फसल चक्र, प्रदर्शन हेतु आदानों की वास्ताविक कीमत या अधिकतम 2.000/ रूपये एवं एक फसली प्रदर्शन के लिए 1.000/ रूपये अनुदान देय है।

  • आईसोपाम योजना के अन्तर्गत तिलहनी, दलहनी तथा मक्का फसलों के0 हैक्टेयर क्षेत्र के वृहद प्रदर्शन आयोजित करने पर आदानों के वास्ताविक व्यय का 50 प्रतिशत या अधिकतम मूँगफली 4.000/ सोयाबीन 3.000/ तिल, अरण्डी, कुसुम व रामतिल 1.500/ सूरजमुखी 2.500/ राजमा 3.500/ चना व मटर 2.500/ मसूर 2.200/ तथा मक्का फसल के लिए 4.000/ रूपये प्रति हैक्टेयर अनुदान देय है।

  • मूँगफली फसल में पोलीथीन मल्च तकनीक के 5 हैक्टेयर क्षेत्र के वृहद प्रदर्शन आयोजन हेतु रूपये000/ ( 4.000/ रूपये फसल तकनीक प्रदर्शन 3.000/ रूपये पोलीथीन मल्च बिछावन प्रदर्शन हेतु प्रति हैक्टेयर या आदानों की वास्ताविक कीमत जहाँ भी कम हो देय है।


फारमर्स फील्ड स्कूल आधारित फसल प्रदर्शन प्रशिक्षण


कार्य योजना ( मोटे अनाज, गेहूँ फसल ) प्रति 5 फसल प्रदर्शन (2 हैक्टेयर क्लस्टर  क्षेत्र ) आइसोपाम योजना ( तिलहन, दलहनी एवं मक्का फसल ) प्रति 5 फसल प्रदर्शन ( 5 हैक्टेयर काॅमपैक्ट  क्षेत्र ) पर फसल की विभिन्न क्रान्तिक अवस्थाओं पर चार बार एक दिवसीय फसल प्रदर्शन प्रशिक्षण एवं फसल पकने की अवस्था में एक फील्ड-डे के आयोजन हेतु राशि रूपये 4.000/ तक व्यय किये जाने का प्रावधान है।


बीज उत्पादन से जुड़ने की सुविधा:- जिन कृषकों के पास स्वयं जमीन व सिंचाई के साधन हैं वे कृषक राज्य बीज निगम के अपने नजदीक के कार्यालय में अपना पंजीकरण करा सकते हैं। बीज उत्पादन हेतु कृषकों को विभाग एवं उत्पादक संस्थाओं के माध्यम से प्रशिक्षित भी किया जाता है।


प्रमाणित बीज उत्पादन ( बीज गाँव योजना )



  • कार्य योजना के तहत खाद्यान्न फसलों के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु उत्पादन लागत का 25 प्रतिशत अधिकतम 200 रू. प्रति क्विंटल बीज, सहायता देय है। इस राशि का 50 प्रतिशत कृषकों को एवं शेष 50 प्रतिशत राशि बीज उत्पादक संस्था को ( परिवहन, रेगिंग, बीज की सफाई आदि के लिये ) देय है।

  • आइसोपाम योजना के तहत दलहनी, तिलहनी एवं मक्का फसल के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु रू. 500/ प्रति क्विंटल बीज की दर से वित्तीय सहायता देय है। इस राशि रू. 500/ में से रू. 125/ बीज उत्पादक संस्था को बीज विधायन, रेंगिगं, परिवहन आदि हेतु एवं रू. 375 /  बीज उत्पादक कृषक को देय है।

  • सघन कपास विकास योजना के तहत प्रमाणित बीज उत्पादन पर उत्पादन लागत का 25 प्रतिशत अथवा रू. 1.500/ प्रति क्विंटल अीज की दर से वित्तीय सहायता देय है।

  • उक्त सहायता बीज उत्पादक संस्था के माध्यम से बीज उत्पादक कृषकों को उपलब्ध करायी जाती है

  • सूक्ष्म तत्व प्रदर्शन: सूक्ष्म तत्व उर्वरकों की कीमत पर अधिकतम अनुदान 200/रू. प्रति हैक्टेयर देय है।


पौध संरक्षण कार्यक्रम



  • तरल पौध संरक्षण रसायन में कीमत का 50 प्रतिशत या 200/ रू. तथा पाउडर पर लागत का 50 प्रतिशत या 100/ रू. में से जो भी कम हो। कीट/रोग के व्यापक प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण हेतु यह अनुदान प्रति हैक्टेयर देय है।

  • बायोएजेन्ट्स एन. पी. वी. (एच) द्वारा चना एवं अरहर में कीट निंयत्रण हेतु 250/ रू. प्रति हेक्टेयर या रसायन की कीमत का 50 प्रतिशत जो भी कम हो अनुदान देय है।

  • रोग/कीट निंयत्रण हेतु फैरोमेन हेतु फैरोमेन ट्रेन अनुदान पर 50 प्रतिशत या 300/ रू. प्रति हैक्टेयर तथा बायोएजेन्ट्स अन्तर्गत उन. पी. वी. अनुदान पर कीमत का 50 प्रतिशत या 900/ रू. जो भी कम हो देय है।

  • पौध सरंक्षण उपकरणों फुट स्प्रेयर 750/ रू. बेलीमाउन्टेड हेण्ड रोटरी डस्टर 500/ रू. रोकर स्प्रेयर 800/रू. पावर स्प्रेयर कम डस्टर 2000/ रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) प्लास्टिक इनसाइड पम्प 400/ रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) प्लास्टिक आउटसाइड पम्प 550/रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) ब्रास 625/रू. सोल्डर माउन्टेड डस्टर 800/रू. के लिये अनुदान देय है।


फामर्स फील्ड स्कूल आधारित आई. पी. एम. प्रदर्शन



  • कार्य योजना के अन्तर्गत ( मोटे अनाज, गेहूँ फसल व गन्ना ) रू. 17.000/ प्रति फारमर्स फील्ड स्कूल आधारित आई. पी. एम. प्रदर्शन का प्रावधान है।

  • आइसोपाम योजना के अन्तर्गत इन आई. पी. एम. प्रदर्शन के लिए रू. 22.680/ प्रति प्रशिक्षण का प्रावधान है। यह प्रशिक्षण 10 हैक्टेयर के प्रदर्शन फार्म पर आयोजित होंगे। प्रदर्शनों हेतु मूगफली में627.50 रू. सोयाबीन में रू. 428/ मक्का में रू. 1.480/ सरसों में रू. 930/ चने में रू. 747.50 प्रति हैक्टेयर का अनुदान देय है।

  • सघन कपास विकास कार्यक्रम में रू. 17.000/ प्रति प्रशिक्षण व्यय का प्रावधान है।


उन्नत कृषि यंत्र



  • उन्नत कृषि यत्रों पर देय अनुदान का निर्धारण जिला स्तरीय कमेटी द्वारा किया जाता है।

  • हस्तचलित एवं बैलचलित कृषि यंत्रो पर मूल्य का 25 से 50 प्रतिश अधिकतम000/रू. प्रति यंत्र अनुदान देय है। ट्रैक्टर चलित सीड कम फर्टीलाइजर ड्रिल, बंड फरमर, चीजल, प्लाऊ, एम. बी./रिजर/डिस्क प्लाऊ, ब्लैड हैरो, लेवलर सभी प्रकार के सीड ड्रिल, कुटटी काटने की मशीन, पोस्ट होल डिगर एवं शक्ति चलित आई. एस. आई  थ्रेसर पर मूल्य का 25 प्रतिशत अधिकतम 10.000/रूपये अनुदान देय है।

  • 35 पी. टी. ओं. अश्व शक्ति तक के ट्रैक्टर ( भारत सरकार द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार ) पर 25 प्रतिशत या अधिकतम000/ रूपये प्रति ट्रैक्टर अनुदान देय है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, लघु एवं सींमात कृषकों को प्राथमिकता।

  • विशेष शक्ति चालित यंत्र की लागत का 25 प्रतिशत या अधिकतम रू. 20.000/ प्रति यंत्र अनुदान देह है।

  • सेल्फ प्रोपेल्ड मशीन पर लागत का 25 प्रतिशत या अधिकतम रू. 30.000/ प्रति यंत्र अनुदान देय है।


जिप्सम वितरण



  • जिप्सम का उपयोग क्षारीय ( काला ऊसर ) भूमि को सुधारने के लिए मिटटी की जांच के अनुसार तथा तिलहनी व दलहनी फसलों में पोषक तत्व के रूप में 250 क्रि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से किया जाता है।

  • पोषक तत्व के रूप में जिप्सम प्रयोग हेतु लागत का 50 प्रतिशत मय परिवहन लागत अधिकतम 500/रू. प्रति हैक्टेयर अनुदान देय है तथा क्षारीय भूमि सुधार कार्यक्रम के तहत जिप्सम लागत का 50% अनुदान देय है।

  • श्रीगंगानगर, बीकानेर मे 700/रू. हनुमानगढ़ में 750/रू. जैसलमेर नागौर में 800/रू. जोधपुर चुरू में 850/रू. अजमेर, सीकर, झंझुनू, पाली, सिरोही में 900/रू. जयपुर दौसा, जालौर, बाड़मेर, टोंक, भीलवाडा़, चित्तौड़ में 950/रू. कोटा, बूंदी, बारा, उदयपुर, राजसमन्द में 1000/रू. अलवर, सवाईमाधोपुर, करौली में 1050/रू. भरतपुर में 100/रू. तथा धौलपुर, झालावाड़, बांसवाडा़, डूंगरपुर में 1150/रू. प्रति मैट्रिक टन अनुमानित दर पर जिप्सम उपलब्ध कराया जा रहा है।


मिटटी पानी की जांच एवं मृदा स्वास्थ्य कार्ड



  • राज्य में एन. पी. के. का अनुपात आदर्श के विपरीत असंतुलित हो रहा है। उर्वरकों का संतुलित उपयोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्डो का वितरण किया जा रहा है। इन कार्डों में खेत के स्वास्थ्य की जानकारी होती है।

  • भूमि के स्वास्थ्य की जानकारी व उर्वरा शक्ति की जांच हेतु कृषि विभाग द्वारा 33 प्रयोगशालाएं स्थापित हैं। इनमें 21 स्थिर मिटटी परीक्षण प्रयोगशाला श्रीगंगानगर, अलवर, जयपुर, कोटा, झालावाडा़, जोधपुर, बांसवाडा़, डूंगरपुर, भीलवाडा़, हनुमानगढ़, बारा, बूंदी, चुरू, झुंझुनूं, राजसमन्द, जालौर, जैसलमेर, बाड़मेर, दौसा, करौली, व धौलपुर जिलों में स्थापित हैं।

  • इसके अतिरिक्त 11 भ्रमणशील मिटटी परीक्षण प्रयोगशालाएं सवाईमधोपुर, टोंक, भरतपुर, दुर्गापुरा, ( जयपुर ), अजमेर, सीकर, चित्तौडगढ़, उदयपुर, सिरोही, पाली एवं नागौर में अपने क्षेत्रों में मिटटी एवं पानी की जांच गाँवों में जाकर करती है। एक क्षारीय मिटटी परीक्षण प्रयोगशाला जोधपुर में स्थित है जो कि समस्याग्रस्त मिटटी एवं पानी के नमूनों की विस्तृत जांच करती है।

  • मिटटी के नमूनों में मुख्य पोषक तत्वों की जांच हेतु स्थिर प्रयोगशाला द्वारा पाँच रूपये एवं भ्रमणशील प्रयोगशाला द्वारा दस रूपये प्रति नमूना जांच शुल्क लिया जा रहा है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की जांच हेतु स्थिर प्रयोगशाला 70/रू. जांच शुल्क व पानी की सामान्य जांच हेतु 10/रू. व विस्तृत जांच हेतु 20/रू. जांच शुल्क लिया जाता है।


गुण निंयत्रण



  1. किसान बीज परीक्षण शुल्क 12/रू. प्रति नमूना, उर्वरक 500/रू. प्रति नमूना एवं कीटनाशक रसायन 500/रू. प्रति नमूना देकर जांच करवा सकते हैं।

  2. भेजे जाने वाले नमूने के लिए बाजरा, तिल, सरसों, एवं अन्य छोटे आकार के बीज 150 ग्राम, छोटे आकार के सब्जी बीज 50 ग्राम, अन्य सभी प्रकार के बीज 250 ग्राम, सभी प्रकार के उर्वरक 200 ग्राम, कीटनाशक रसायनों में सभी प्रकार के चुर्ण 200 ग्राम, तरल रसायन 100 मि.ली. मात्रा में प्रयोगशाला में भेजें।

  3. किसान अपने नाम पत्ते सहित आदान का नाम, लोट न.,उत्पाद/पैकिगं तिथि, कालातीत तिथि की सूचना तथा वांछित मात्रा सहित नमूना मय परीक्षण शुल्क बीज परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ), श्रीगंगानगर, चित्तौडगढ़, कोटा, उर्वरक परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ), जोधपुर, उदयपुर व कीटनाशी परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ) एवं बीकानेर में जमा कराकर 1 दिवस में रिपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं।


कृषक प्रशिक्षण - 30 कृषकों के समूह में दो दिवसीय संस्थागत प्रशिक्षण दिया जाता है। कृषकों को आने-जाने का किराया, भोजन, कृषि साहित्य, पुरस्कार आदि विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।


महिला प्रशिक्षण - कृषि में महिलाओं के तकनीकी ज्ञान में  वृद्धि करने के लिए ग्राम स्तर पर एक दिवसीय व दो दिवसीय प्रशिक्षण हेतु 30 महिला कृषकों के समूह के लिए भोजन, आने-जाने का किराया, कृषि साहित्य, पुरस्कार आदि विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।


कृषि शिक्षा हेतु छात्राओं को प्रोत्साहन राशि - कृषि शिक्षा में अध्ययनरत छात्राओं को सीनियर सैकण्डरी ( 10़2 ) हेतु 3.000/ रू. एवं कृषि स्नातक हेतु 5.000/रू. प्रति वर्ष उपलब्ध कराये जाते हैं।


कृषक भ्रमण - कृषकों में तकनीकी ज्ञान में  वृद्धि करने हेतु अन्तरखन्डीय भ्रमण पर अधिकतम 500/रू. प्रति कृषक व्यय किये जाने का प्रावधान है। अन्तर्राज्यीय भ्रमण पर 35 से 40 कृषकों को भेजने के लिए कृषकों के आने'जाने का किराया, भोजन एवं ठहरने, स्टेशनरी आदि पर व्यय किये जाने का प्रावधान है। अन्तर्राज्यीय भ्रमण की अवधि 5-7 दिवस की होती है।


किसान मेले एवं प्रदर्शनियाँ - किसान मेंलों एवं प्रदर्शनियों में कृषि की नवीनतम जानकारी दी जाती है।


जैविक खेती-


वर्मी कम्पोस्ट प्रदर्शन - प्रति वर्मी कम्पोस्ट इकाई लागत रू. 1.500/रू. का 25 प्रतिशत रू. 375/ प्रति प्रदर्शन ( 120/रू. प्रति किलों केंचुए एवं 15/रू. पैकिंग चार्जेज ) का निर्धारण कर 3 किलों केंचुए प्रति प्रदर्शन लगाने के इच्छुक कृषकों को दिये जायेगें।


कृषक प्रशिक्षण - प्रत्येक कृषि पर्यवेक्षक द्वारा 20 किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षणों में जलपान की भी व्यवस्था है। पंचायत समिति स्तर पर 2 तथा जिला स्तर पर 4  कार्यशालाओं के आयोजन हेतु स्टेशनरी, साहित्य, जलपान, किराया आदि पर व्यय का प्रावधान ।


अनुदान पर जैव-उर्वरक वितरण


राइजोबियम  - मूंगफली सोयाबीन तथा समस्त दलहनी फसलों हेतु।


पी. एस. बी.  - समस्त दलहनी, तिलहनी फसलों तथा मक्का फसल हेतु।


एजोटोबैक्टर   - सम्सत अनाज वाले फसलें।


जैव  - उर्वरक पर सम्बन्धित निर्माता को राइजोबियम व एजोटोबैक्टर पर अधिकतम रू. 3.25 तथा पी. एस. बी. पर अधिकतम रू. 4.00 प्रति पैकेट अनुदान सहायता पाउडर आधारित जैव-उर्वरक पर देय होगी।


कृषि साहित्य - कृषकों को कृषि साहित्य निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। खेती री बांता मासिक अखबार घर बैठे मंगवाने के लिए 12/रू. अपने नजदीकी कृषि कार्यालय में जमा कराएं अथवा इसका मनीआर्डर आहरण वितरण अधिकारी, 250, पंत कृषि भवन. जनपथ. जयपुर के पते पर भिजवाये


12.3        उद्यान दिमाग द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं (   )


उद्यानिकी फसलों फल. सब्जी, मसाला, फूल, जड़कन्छ वाली फसलें, ओषधीय एवं सुगधित पौधों आदि के प्रति इकाई अधिक लाभ, पोषाहार सुरक्षा, रोजगार के अधिक अवसर, निर्यात की व्यापक सम्भावना, उत्पादन में स्थिरता व कृषि विविधीकरण के लिए उपयुक्त होने के कारण इन फसलों की खेती को बढा़वा देने के लिये राज्य योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन व सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के तहत विभन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत कृषकों को दी जा रही सुविधाओं की जानकारी रखकर सरकारी सहायता का फायदा उठायें।


राष्ट्रीय बागवानी मिशन  ( national hhoritculture mission )रू. राजस्थान में उद्यानिकी विकास की विपुल संभावनाओं एवं क्षमता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न उ्दयानिकी फसलों के  क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता में  वृद्धि कर राज्य के कृषकों की आर्थिक दशा में सुधार के लिए राज्य के 17 जिलों में चयनित फसलों के साथ राष्ट्रीय बागवानी मिशन के कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं।


राजस्थान बीज निगम द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं  (        )


भारत सरकार द्वारा जारी नई कॅामन मार्गदर्शिका में कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता  वृद्धि के सम्बन्ध में प्रमाणित बीज तैयार करने एवं उपयोग में लाने पर विशेष जोर दिया गया है अतः राजस्थान में राजस्थान बीज निगम एवं इसके विभिन्न केन्द्रों द्वारा कृषकों को जो सुविधाएं देय है उसका ज्ञान होना आवश्यक है।


राजसीड्स द्वारा निम्नलिखित फसलों की विभिन्न किस्मों का आधार एवं प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।


अनाज, बाजरा, ज्वार, मक्का, धान, गेहूँ ,जौ।


दलहन, मूंग, मोठ, चांवल, उड़द, अरहर, ग्वार, चना, मसूर।


तिलहन, तिल, सोयाबीन, अरण्डी, मूंगफली, सरसों, तारामीरा।


रेशेदार फसलें - कपास।


मसाला बीज - जीरा, धनिया, मेथी, सौंप।


औषधीय - ईसबगोल।


चारा - जई, रिजका, बरसीम।


बीज उत्पादकों से वसूल की जाने वाली राशि।


नांमाकन शुल्क रूपये 51 / प्रति उत्पादक ( एक बार )


पंजीकरण शुल्क रूपये 80/प्रति उत्पादक प्रति सीजन निरीक्षण राशि स्व परागित फसलें रूपये 80/ प्रति एकड़ एवं परपरागित फसलें रूपये 90/प्रति एकड़ फार्म न.- 1 ए का शुल्क रूपये 3/ प्रति उत्पादक प्रति सीजन।


बीज उत्पादकों को देय सुविधाएं



  1. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बीज उत्पादकों से निरीक्षण राशि नहीं ली जाती है तथा इसका वहन निगम द्वारा किया जाता है।

  2. बीज करार पत्र रूपये 100/ के स्टाम्प पेपर के स्थान पर केवल सादा कागज पर अनुबंध पर प्रेषित करने का प्रावधान है।

  3. सभी फसलों पर बिना बीज गाँव हेतु रू. 30/प्रति क्विंटल ( भाडा़ छूट रू. 15/ व बारदाना छूट रू. 15/ देय है।

  4. यदि बीज उत्पादक किसी कारणवश अपना बारदाना वापस नहीं ले जाता है तो रूपये 15/ प्रति बोरी की दर से अतिरिक्त भुगतान का प्रावधान है।


बीज उत्पादकों से बीज क्रय की नीति


राजसीड्स की विभिन्न इकाइयों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज को क्रय करने के लिए इकाईवार मंत्रियाँ निर्धारित है। किन्तु समस्त इकाइयों हेतु निम्न फसलों के लिए निम्न मंडियों की दरें देय होगी।


मोठ-नोखा ( बीकानेर ) मंडी


सोयाबीन-कोटा मंडी


चाँवल- कुचामनसिटी मंडी


धान-बूंदी मंडी


धनिया-रामगंज मंडी ( कोटा )


सौंप, जीरा, ईसबगोल-उझां मंडी ( गुजरात )


जई- एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर पर 5 प्रतिशत अतिरिक्त।


बरसीम- एम. पी. राज्य बीज निगम/एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर जो भी अधिक हो, उस पर 20 प्रतिशत अधिक।


रिजका- गुजरात राज्य बीज निगम, एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर जो भी अधिक हो, उस पर 20 प्रतिशत अधिक।


धनिया, मेथी - सम्बन्धित मंडी की निर्धारित अवधि के उच्चतम औसत पर 300 रू. अतिरिक्त।


सौंप -निर्धारित अवधि के  लिए उंझा मंडी की उच्चतम औसत पर 300 रू. अतिरिक्त।


जीरा - निर्धारित अवधि के  लिए उंझा मंडी की उच्चतम औसत पर 1000 रू. अतिरिक्त।


नोट:- रबी सीजन में उत्पादित मक्का बीज के क्रय पर देय उक्त प्रिमियम के अतिरिक्त 100 रू. प्रति क्विटंल दिये जाने के प्रावधान है।


 


बीज उत्पादक प्रेरक योजना


राजसीड्स ने बीज उत्पादन व कृषि  क्षेत्र में कार्यरत/अनुभवी गैर सरकारी/निजी व व्यक्तियों के सहययोग से राज्य के नये कृषकों को निगम के बीज उत्पादन कार्यक्रम से जोड़ने हेतु बीज उत्पादक प्रेरक योजना प्रारम्भ की है।


बीज उत्पादक  प्रेरक के कार्य



  1. अपने निजी प्रयासों से गांव के कृषकों को एकत्रित कर उनके माध्यम से एक ही फसल एवं किस्म अथवा अन्य फसलों एवं किस्मों का बीज उत्पादन कार्यक्रम निर्धारित पृथक्करण दूरी पर आयोजित करवाना।

  2. बुवाई के पश्चात खेतों का निरीक्षण करवाना।

  3. उत्पादित बीजों की गुणवत्ता कायम रखने के लिए प्रमाणीकरण मापदण्डों के अनुरूप व्यापक रोंगिंग करवाना।

  4. अतिंम प्रमाणीकरण निरीक्षण के पश्चात मानक पाये गये क्षेत्रों से राॅ सीड्स एकत्रित करके सम्बन्धित विधायन केन्द्रों पर पहुंचना।

  5. बीज उत्पादक प्रेरकों द्वारा अनाज एवं दलहनों हेतु न्यूनतम 25 हैक्ट, एवं तिलहन हेतु न्यूनतम 15 हैक्टेयर क्षेत्र में बीज उत्पादन कार्यक्रम आयोजित करवाना आवश्यक होगा।


जलग्रहण क्षेत्रों में पशुधन विकास एवं पशुपलान के उन्नत आयाम (   )


पशुपलान , कृषि व्यवसाय का अभिन्न अंग है, जहाँ किसान अपने दैनिक कृषि कार्य के लिए  पशुओं को ही शाक्ति स्त्रोत के रूप में काम लेता है, साथ ही पशुधन इस देश के जन सामान्य के पोषण के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्व उपलब्ध कराने का भी मूल स्त्रोत रहा है। राजस्थान के लिए पशुधन का महत्व और भी अधिक है - क्योंकि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। अतः हम भली- भाँति कह सकते हैं कि हमारे प्रदेश में पशुपालन का महत्व कृषि से भी अधिक है।


हमारा प्रदेश निरन्तर अकाल की विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है, इसलिये जलग्रहण क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि हरके गाँव का पानी गाँव के इर्द-गिर्द संग्रह कर  कृषि एवं पशुपालन को बढावा दिया जा सके। जलग्रहण क्षेत्रों में पशुधन विकास की बहुत संभावना है। ग्रामीण पशुओं की उत्पादकता बहुत कम है जिसे बढाना जरूरी है। हमारे देश में पशुधन विश्व का कुल 23 प्रतिशत है तथा दूध उत्पादन विश्व का 8 प्रतिशत है।


अतः हमारे पशु अच्छा दूध उत्पादन देने वाले होने चाहिये, तभी एक छोटे किसान के परिवार के लिए यह एक आश्रित नहीं परन्तु सहारा हो सकता है। ग्रामीण क्षेंत्रो में पशुपालन भ्रम तथा देवी-देवताओं आदि का प्रकोप बनकर रह गया है। इससे दूध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पडा़ है।


अतः जलग्रहण क्षेंत्रो में पशुपालन व्यवसाय कृषकों की आर्थिक दशा को सुधारने में मुख्य भूमिका निभा सकता है। लेकिन इस हेतु आवश्यकता इस बात है कि पशुपालक-पशुपालन के उन्नत आयाम को समझे और उनका अनुसरण कर पशुपालन को लाभकारी बनाये।


चारे का मिश्रण खिलाना -


फलीदर चारे जैसे- रिजका, बरसीम आदि अधिक स्वादिष्ट व पौष्टिक होते हैं। इन चारों को यदि गेहूँ के भूसे अथवा अफलीदार चारे जैसे- मक्का, बाजरा, जई आदि में 3:1 के अनुपात में खिलाने से अफलीदार चारे की पौष्टिकता में  वृद्धि हो जाती है जिससे दूध उत्पापदन अधिक होता है।


यूरिया, शिरा और खनिज मिश्रित चारा -


यूरिया एक नाइट्रोजन युक्त रसायनिक खाद है- रूमनधारी पशु जैसे- गाय, भैंस, बकरी आदि के पेट में पाये जाने वाले जीवाणु, यूरिया अथवा अमोनिया को जीवाणुयुक्त प्रोटीन में बदल देंते हैं जिससे पशु के  स्वास्थ्य व दूध में  वृद्धि होती है क्योकिं सूखे चारे में सेल्यूलोज तथा हेमिसेल्यूलोज की अधिकता होती है तथा इनका अधिकतर भाग अपौष्टिक लिग्निन से जुडा़ होता हहै लेकिन यूरिया द्वारा सूखे चारे को उपचारित करने  पर लिग्निन सेल्यूलोज व हेमीसेल्यूलोज से टूट कर बलग हो जाता है जिससे ऊर्जा शक्ति बढ़ जाती है तथा साथ ही पाचक प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है।


पशु स्वास्थ्य



  1. परजीव कीट नियंत्रण - समय-समय पर पशुओं कृमि उन्मूलन (डिवर्मिग ) करवानी चाहिये। इससे अन्तः परजीवियों का नियंत्रण किया जा सकता है। बाह्रय परजीवी जैसे को जूएँ, चिचडें आदि हेतु पशु चिकित्सक या कृषि विज्ञान केन्द्रों के विशेषज्ञों से सलाह लेकर दवाईयों का उपयोग करें।

  2. टीकाकरण - पशुओं में जहरबाद, गलघोंटू, माता, खुरपका, एवं आदि संक्रांमक रोगों के टीके समय पर लगवाने का कार्यक्रम अपनाएं।


अगर पशुपालक अपने जलग्रहण क्षेत्रों में पशुपालन को बढा़वा देकर उन्नत आयाम को अपनाकर पशुपालन करे तो निश्चित ही पशुपालन एक उपयोगी व कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है।