काष्ट कला के जौहरी मुरलीधर

||काष्ट कला के जौहरी मुरलीधर||


लकड़ी में जान फूंक देना मुरलीधर को बखूबी आता है. इसीलिए मुरलीधर ने सेवा निवति के बाद अपने हुनर का जलवा काष्ठ को उकेर कर प्रस्तुत करने का प्रयास किया। आज उनकी कलाकृत्तियों को देखने का बरबस आंख तरसती है. यही वजह है कि पुरातत्व विभाग भी उनकी हुनर का लोहा मानता है। जबकि पूर्व राष्ट्रपति एवं मिशाईल मैन, अब्दुल कलाम आजाद ने भी इस शिल्पकार की पीठ थपथपाई और इन्हें सम्मानित भी किया।


मुरलीधर को लकड़ी तराशने कीइस कला से इतना प्यार है कि उन्होंने उत्तराखंड प्रदेश के श्रीनगर (गढ़वाल) के उपनगर श्रीकोट स्थित अपने घर को ही कार्यशाला का रूप दे दिया है। उनके पिता चमन लाल काष्ठकला के माहिर थे। अपने . पिता की विरासत को उन्होंने जिन्दा ही नहीं , रखा बल्कि और अधिक तराशने का कार्य " किया है हालांकि जिन्दा ही नहीं रखा बल्कि और अधिक तराशने का कार्य किया - है हालाकि रोजी-रोटी के लिए उन्हें इस - मनपंसद काम को छोड़ना पड़ा और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में शामिल होना पड़ा। 1973 से 1990 तक सीआरपीएफ में काम करने के पश्चात् वे स्वैच्छिक निवृत्ति लेकर वापस अपने घर आ गए। घर लौटकर एक बार फिर मुरलीधर की स्वाभाविक रूचि ने . जोर पकड़ा और वे दुबारा से लकड़ियों को , मूर्त रूप देने में जुट गए। उम्र बढ़ने के . साथ-साथ मुरलीधर के काम में परिपक्वता , आई तो देखने वाले उनके काम की तारीफ करने लगे। परिणामस्वरूप मुरलीधर और अधिक तन्मयता से इस काम में लग गए। इनकी शिल्पकला इतनी प्रसिद्धि पा चुका है कि लकड़ी के केदारनाथ मंदिर मॉडल को पुरातत्व विभाग ने एक लाख बीस हजार में खरीदा। डूबते टिहरी शहर के मॉडल को उद्योग विभाग ने 80 हजार रूपये में खरीदा तथा टिहरी के डूबते घंटाघर के मॉडल को देहरादून के एक म्यूजियम ने खरीद लिया।


उत्तराखंड के पुराने परंपरागत घरों में लकड़ी पर हुई नक्काशी को ही मुरलीधर ने ही पुर्नजीवित किया है वे कहते हैं कि धीरे-धीरे उत्तराखंड की काष्ट कला समाप्त हो रही है।


काष्ठ कला में अब भी कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए मुरलीधर प्रतिदिन 12 घंटे इस काम को देते हैं। काष्ठ कला के लिए उपयुक्त लकड़ियां - हल्द, कुमकुम, पापड़ी आदि के आसानी से उपलब्ध न हो पाने की वजह से वे लाचारी महसूस करते हैं।


बहरहाल, उत्तराखंड की लुप्त होती काष्ठकला के पूरी तरह गायब हो जाने की संभावनाओं के बीच मुरलीधर जैसे शिल्पी इसे बचाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। हस्तशिल्प कला की अप्रीतम संभावनाएं समेटे मुरलीधर आशान्वित है कि काष्ट कला का संग्राहलय उन्होंने खुद की कार्यशाला में तैयार किया है। ज्ञात हो कि इस कला जैसी पारम्परिक संस्कृति उत्तराखंड राज्य में और कहीं नहीं है सिर्फ मुरलीधर ही इस कार्य में लीन है।