कफनौल गांव में रिंगदू पाणी

||कफनौल गांव में रिंगदू पाणी||



कफनौल कहने व सुनने से लगता है कि यहां काफी नौले  होंगे और इस गांव में निश्चित तौर पर बहुत सारे जल स्रोत भी है जो कुण्ड नुमा तथा''नौले'' के आकार के थे। पिछले दस वर्षो के अन्तराल में इस गांव में सम्पूर्ण जल स्रोत  सूख गये। अब मात्र एक ही कुण्ड शेष है जिसे देवता का पानी कहते है। लोग इस पानी की पूजा प्रत्येक माह की सक्रांती में करते हैं तथा यह पानी गांव की पेयजल आपूर्ति भी करता है। पहले इस कुण्ड के बाहर एक लकड़ी का मन्दिर बना था अब पत्थर व सीमेन्ट से मन्दिर बनाया गया है। इस मन्दिर में अनु0 जाती के लोग तथा महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।


यह कुण्ड भी नकासीदार पत्थरों से बनाया गया है। बताया जाता कि गांव के सामने पर बौखटिब्बा पर्वत से एक गाय रोज आकर उक्त स्थान पर एक बेकल नामक प्रजाति के झाडी नुमा पेड़ पर दूध छोड़ कर जाती थी। गांव के पास एक बाडिय़ा नाम का राजा रहता था। उसने अपने कर्मचारियों को गाय को जिन्दा अथवा मुर्दा पकड़ने के आदेश दिये। राजा के कर्मचारियों ने उक्त गाय को मार कर राजा के सुपूर्द किया। तब गाय ने राजा को श्राप दिया था कि तेरे कुल का सर्वनाश इस गति से होगा कि पीछे से आनी वाली पीढी राजा के नाम तक की खोज ना कर पाये। निश्चित रूप से राजा के कुल का सम्पूर्ण नाश हो गया।


आज भी जहां राजा रहता था वहां का नाम बाड़क नामक तोक से  जाना जाता है। परन्तु गाय जिस जगह पर दूध छोड़ती थी वहां बेकल नामक वह झाडी प्रजाति ने एक पेड़ का रूप ले लिया और लोगो ने उसी प्राजाति की लकडी से वहां मन्दिर बनवा डाला। मन्दिर बनाते समय उक्त स्थान पर एक कुण्ड भी प्रकट हुआ। तथा दो मूर्तिया भी प्राप्त हुई यह मूर्तिया आज भी बौखनाग देवता के रूप में गांव-गाव में पूजी जाती है। आज यह स्थान देवतुल्य माना जाता है।