कर्नल कोठियाल का समर्पण

||कर्नल कोठियाल का समर्पण||


भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि केदारनाथ में तापमान माइनस 10 डिग्री होने के बावजूद भी पुनर्निर्माण का काम लगातार जारी रहा और इसका नेतृत्व कर रहे हैं कर्नल अजय कोठियाल। केदारनाथ में आई आपदा के कारण यहां पर कोई भी कार्य करने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि एक तो यहां पर आयी भंयकर आपदा और दूसरा यहां का पूरा इलाका कई महीनों तक बर्फ से ढका रहता है, इन विपरीत


परिस्थितियों में कर्नल कोठियाल ने यहां पर कार्य करने की जिम्मेदारी सम्भाली। जब उन्होंने यहां पर कार्य करना प्रारम्भ किया तो पूरा इलाका बर्फ से ढका हुआ था, सड़क व रास्ते जगह-जगह पर टूटे हुए थे, यहां पर मजदूरों और अन्य लोगों को पहुंचने में भारी कठिनाई हो रही थी, जब यहां पर मजदूरों ने कार्य करना प्रारम्भ किया तो आये दिन यहां पर नर कंकाल मिलने से मजदूर काम करने से डर रहे थे, इन मजदूरों का हौसला बढ़ाने के लिए कर्नल कोठियाल खुदाई के दौरान मिली एक बच्चे की खोपड़ी को सदैव अपने सिरहाने रखते हंै ताकि मजदूरों का डर दूर हो और वह बिना भयभीत हुए कार्य को जारी रख सकें।


कर्नल कोठियाल ने यहां पर सेना की तर्ज पर मजदूरों के खाने के लिए लंगर लगाया। इसके अलावा मजदूरों के बाल काटने के लिए नाई और उनके मनोरंजन के लिए भी व्यवस्था की गई है। ताकि यहां पर कार्य करने वाले लोगों को कोई असुविधा न हो और वह अपना कार्य सही तरीके से कर सकें। कर्नल कोठियाल कई चुनौतियांे का सामना करते हुए लगातार आगे बढ़ते गये, उन्होंने पहले यहां पर आने जाने के रास्ते का निर्माण करवाया और उसके बाद बेतरतीब ध्वस्त हुए निर्माण को हटाने का कार्य करवाया साथ ही यहां पर हैलिपैड का भी निर्माण करवाया गया। इसके बाद वह अब यहां पर धीरे धीरे काटेज बनाने के कार्यों में लगे हुए हैं। केदारनाथ में आई आपदा के बाद ऊपर से आए मलबे ने केदारनाथ के आसपास की जमीन को दस से पंद्रह फुट तक ऊपर उठा दिया था। ऐसे में यहां नए सिरे से काम के लिए बड़ी कठिनाई हो रही थी लेकिन उनके नेतृत्व और मजदूरों के हौसले की दाद देनी होगी कि उन्होंने इतने जोखिम भरे काम को करने का बीड़ा उठाया। कर्नल कोठियाल जून 2013 से लगातार राहत, बचाव और पुनर्वास के काम में लगे हुए हैं। 


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में किये जा रहे कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने राज्य सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि केदारनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण के कार्यों के लिए राज्य सरकार की ओर से इनको किसी प्रकार की परेशानी नहीं होनी चाहिए। इनको जिस चीज की आवश्यकता होगी राज्य सरकार की ओर से उसे पूरा किया जायेगा। इसके अलावा हरीश रावत ने केदारनाथ में जब भारी बर्फबारी हो रही थी तो उन्होंने कर्नल अजय कोठियाल से कहा कि वह यहां के मौसम को ध्यान में रखकर ही कार्य करने की योजना बनाएं। मुख्यमंत्री ने कर्नल से कहा कि वह जब तक चाहंे यहां कार्य कर सकते हैं। लेकिन भारी बर्फबारी होने के बाद भी कर्नल ने यहां पर     पुनर्निर्माण का कार्य जारी रखा। यह कर्नल कोठियाल और उनके जवानों की हिम्मत है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी यहां पर पुनर्निर्माण का कार्य इतने जोर शोर से किया जा रहा है। कर्नल अजय कोठियाल ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य बनने के बाद अपने प्रयासों के जरिए पुनर्वास माडल की भी शुरूआत की।  
इसके तहत प्रभावित इलाकों के बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देकर इंडियन आर्मी व अन्य क्षेत्रों में जाने के लिए तैयार किया जा रहा है और इस प्रशिक्षण के माध्यम से इन युवाओं को काफी सफलता भी मिली, यह कैम्प उत्तरकाशी, (गंगनाणी) बड़कोट और गुप्तकाशी में लगाए गये थे।


इन कैम्पों में सैकड़ों युवाओं को ट्रेनिंग दी गई और इनमें से कई युवा भारतीय सेना में भर्ती हो चुके हैं। प्रशिक्षण के दौरान इन युवाओं पर जो भी खर्चा आया, उसका भुगतान कर्नल कोठियाल ने स्वयं किया। इसके अलावा कर्नल कोठियाल ने दूर-दराज इलाके के बीमार बच्चे को जो कि कई साल से बिस्तर पर ही पड़ा था उसे अपने खर्चे में दिल्ली भेजा और उसका इलाज करवाया। इस बच्चे की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इसका इलाज घर पर ही किया जा रहा था। इसके अलावा यहां की महिलाओं के लिए भी अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।


कर्नल कोठियाल को भारतीय सेना में एक जाबांज और साहसी अधिकारी के रूप में जाना जाता है। सन् 2001 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराकर इन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। सन् 2003 में जम्मू कश्मीर के पीर पंजाल की पहाड़ियों पर आंतकवादियों से लोहा लेते हुए इनके द्वारा 7 आतंकवादियों को मार गिराया गया। इसके लिए भारत सरकार ने उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। भारत से पहली बार उनके नेतृत्व वाली टीम माउंट मनासलू पर पहुंची जिसके लिए इन्हें वीरता के एक और अलंकरण विशिष्ट सेवा मेडल से विभूषित किया गया।  बीस वर्ष से भी ज्यादा सैन्य सेवा के दौरान उन्होंने तीन बार एवरेस्ट को फतह किया। भारतीय सेना द्वारा वर्ष 2012 में संचालित इंडियन आर्मी वुमेन एक्सपीडिशन का नेतृत्व भी कर्नल कोठियाल ने किया। वह गढ़वाल राइफल्स की चैथी बटालियन को कमांड कर चुके है। 


कर्नल अजय कोठियाल देहरादून के वसंत विहार इलाके के रहने वाले हैं और उनका पैतृक निवास टिहरी गढ़वाल है। कर्नल कोठियाल अविवाहित हैं और वह लगातार दूसरों की सेवा में लगे रहते हैं। उनके पिताजी एस.एस. कोठियाल बी.एस.एफ. के आई.जी. पद से सेवानिवृत्त हुए और वह अब कई सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं। केदारनाथ में कर्नल कोठियाल द्वारा किये जा रहे कार्यों के लिए उनको अगर केदारनाथ का भगीरथ कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


केदारनाथ में युद्धस्तर पर किये जा रहे पुनर्निर्माण के काम को देखकर ऐसा लगता है कि चाहे सरहद की निगरानी करनी हो या किसी आपदा से मुकाबला सैनिक हर मोर्चे पर तैयार रहता है। सरहद पर लोहा लेते समय दुश्मन की दो गोलियां अभी भी उनके शरीर के अन्दर फंसी हैं, पर ये गोलियां भी उनके जाबांज कदमों को रोकने में विफल हो चुकी हैं।
स्रोत - हिलमेल