||केदार गंगा||
समुद्रतल से 4050 मीटर की ऊँचाई पर पवित्र केदारताल, जोगिन पर्वतशृंखला के कुछ ग्लेशियरों के जल से निर्मित हुआ है। लोक कथाओं में इस ताल को अप्सराओं का ताल भी कहा जाता हैपौराणिक गाथाओं में कहा जाता है कि इस ताल के जल से रूप, रंग और चेहरे की आभा निखर आती है। केदारताल का जल हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों और खनिजों का स्पर्श पाकर 'दिव्यजल' में बदल जाता है।
पौराणिक कथाओं में केदारताल महादेव शिव के जलाशय के रूप में इस प्रकार भी उल्लेखित है कि समुद्र मंथन के बाद अमृत के साथ-साथ विष भी निकला। धरती को जहर से बचाने के लिए भगवान शिव ने विषपान कर लिया तथा उसे अपने कंठ में ही रोक दियाजिस कारण उनका कंठ नीला हो गया, इसलिए शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने गले की जलन को शांत करने के लिए इसी पावन कुण्ड का जल ग्रहण किया था। केदारताल के समीप ही प्रसिद्ध थलय सागर और भृगुपंथ पर्वत की आभा दर्शनीय है। मान्यता है कि भगवान शिव, माँ पार्वती के साथ आकर इस अद्भुत नीले-हरे विशाल सरोवर में स्नान करते हैं।
केदार गंगा का उद्गम इसी पावन जलाशय से होता है। केदार गंगा भागीरथी की एक सहायक नदी है। कहीं शांत और कहीं अठखेलियां करती यह नदी भीमकाय पत्थरों और चट्टानों के बीच बहकर अपना मार्ग प्रशस्त करती है। अपने आपको पूर्ण रूपेण गंगा कहलाने की चाह में यह गंगोत्तरी तीर्थ स्थल के समीप भागीरथी में समा जाती है। केदारताल गंगोत्तरी से लगभग 19 किमी०की दूरी पर है। केदारताल के लिए कठिन चढ़ाई है। भोज पत्रों के जंगल, मनमोहक घास के मैदान, रंग-बिरंगे फूलों का संसार और हिमचोटियों के सौन्दर्य से भरा मार्ग अन्त में केदार ताल का दिव्य दर्शन कराता हैसम्पूर्ण मार्ग में केदार गंगा की दृश्यावली अकल्पनीय बन पड़ती है।
स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'