केदारनाथ घाटी में आपदा प्रभावित महिलाओं का काम

केदारनाथ घाटी में आपदा प्रभावित महिलाओं का काम


 कैलाश पुष्पवान


जून 2013 में केदारनाथ घाटी में आयी बाढ़ के बाद हिमालय ग्रामीण विकास संस्था ऊखीमठ ने उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा के साथ मिलकर महिला संगठनों से जुड़े गाँवों जैसे–किमाणा, पठाली, डुंगर-सेमला, मंगोली, चून्नी, सारी, करोखी, दिलमी, रोडू आदि का भ्रमण कियाइस भ्रमण में उत्तराखण्ड महिला परिषद् से अनुराधा पाण्डे, सुरेश बिष्ट और धरम सिंह लटवाल जी आये थे। सभी ने गाँव-गाँव जाकर महिलाओं एवं आपदा से प्रभावित घरों में पीड़ितों को सान्त्वना दीइसी क्रम में क्षेत्र के द्वितीय भ्रमण के दौरान स्वयं मैंने, श्रीमती लक्ष्मी पुष्पवाण एवं श्रीमती यशोदा पंवार ने हर महिला संगठन की सदस्याओं के साथ बातचीत की। इस बातचीत से यह निष्कर्ष निकला कि त्वरित की जाने वाली मदद के संदर्भ में महिलाओं के साथ बुनाई-प्रशिक्षण का काम हो सकता है।


उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा द्वारा हमें छ: बुनाई की मशीनें उपलब्ध हुई। सर्वप्रथम हिमालयी ग्रामीण विकास संस्था के कार्यालय ऊखीमठ में दो माह की अवधि के लिए एक बुनाई-प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया। इसमें नौ महिलाओं एवं दस किशोरियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। दूसरा प्रशिक्षण केन्द्र पठालीधार गाँव में खोला गया। इसमें आठ महिलाओं एवं तीन किशोरियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।


तृतीय प्रशिक्षण केन्द्र ग्राम रोडू में खोला गया। इसमें सात महिलाओं एवं पाँच किशोरियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। चौथा प्रशिक्षण केन्द्र किमाणा गाँव में खोला गया है। इसमें आठ महिलायें एवं छ: किशोरियाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं । तालिका में बुनाई प्रशिक्षण केन्द्रों का सितम्बर 2014 तक का विवरण दिया गया है:


ग्राम पठाली __ मेरा नाम श्रीमती सरस्वती देवी है, मैं महिला संगठन पठाली की सदस्या हूँ।संगठन पठालीधार हिमालयन ग्रामीण विकास संस्था, ऊखीमठ एवं उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा से चार साल से अधिक समय से जुड़ा हुआ है। संस्था द्वारा ऊखीमठ में बुनाई प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया। माह अप्रैल और मई 2014 में हमारे गाँव से तीन महिलायें एवं एक किशोरी ने बुनाई का प्रशिक्षण प्राप्त कियाइनमें से दो महिलाओं के पति केदारनाथ में आयी आपदा में मृत हुए थे। हमारी आर्थिक स्थिति को सुधारने एवं स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होने का साहस देने के लिए बुनाई प्रशिक्षण केन्द्र एक अहम् भूमिका निभा रहा है। ____ मैंने इस प्रशिक्षण में बुनाई की मशीन को ठीक करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के स्वेटर, स्टॉल, मफलर, टोपी आदि के डिजायनों को बनाना सीखा। विभिन्न प्रकार के धागों से रंगो के संयोजन की कला का प्रशिक्षण भी प्राप्त कियादो माह तक लगातार प्रशिक्षण केन्द्र में आने के बाद मैंने बुनाई का कार्य बहुत अच्छी तरह से सीखा है। मैंने भिन्न-भिन्न प्रकार की टोपियों के मॉडल बनाकर उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा में भी भेजे थे। वहाँ से हमें बहुत प्रोत्साहन मिलासफल प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मैंने स्वयं अपनी बुनाई की मशीन खरीद ली हैविशेषकर बच्चों के लिए टोपी एवं स्वेटर (स्कूल ड्रेस) बनाने का आर्डर मिल रहा है। साथ ही, मेरे काम को देखकर अन्य महिलायें भी बुनाई का कार्य सीखना चाहती हैं। संस्था ने मेरा कार्य देखा और संतुष्ट होकर ग्राम पठाली धार की प्रशिक्षिका के रूप में चुनाइससे मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि हुईमैंने डुंगर-सेमला और पठाली गाँवों की नौ महिलाओं एवं किशोरियों को प्रशिक्षण भी दियाग्राम किमाणा मेरा नाम श्रीमती रश्मि त्रिवेदी हैमैं महिला संगठन किमाणा की सक्रिय सदस्या हूँहमारा महिला संगठन, हिमालयन ग्रामीण विकास संस्था ऊखीमठ एवं उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा के साथ विगत चार वर्षों से अधिक समय से जुड़ा हुआ है। केदारनाथ में आयी भीषण आपदा की वजह से हमारी आर्थिक स्थिति चरमरा गयी थी। संस्था के प्रयास से ऊखीमठ में बुनाई प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गयी। इस बुनाई केन्द्र में हम प्रथम बैच की महिलायें एवं किशोरियाँ माह अप्रैल-मई 2014 में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं।


प्रशिक्षण के दौरान मैंने टोपी, स्वेटर, मफलर, स्कार्फ आदि बनाना सीखा। यह सामान बनाने के साथ-साथ मैंने एक रंग की ऊन से विभिन्न प्रकार के डिजायन बनाना और विभिन्न रंगों की ऊन से तरह-तरह के नमूने बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। साथ ही, बुनाई मशीन में खराबी आ जाने पर उसे ठीक करना भी सिखाया गया। मैंने अपने पति को खुद की बनाई हुई टोपी एवं स्वेटर भेंट कीउन्हें वह टोपी एवं स्वेटर बहत पसन्द आयीप्रसन्न होकर उन्होंने मुझे प्रोत्साहित करते हुए बुनाई की नयी मशीन देहरादून से मँगवा कर भेंट की। अब मुझे, विशेषकर बच्चों के लिए टोपी एवं स्वेटर बनाने के आर्डर प्राप्त हो रहे हैमैंने प्रति टोपी रूपया चालीस एवं प्रति स्वेटर रुपया एक सौ पचास का मूल्य रखा है। सितम्बर 2014 तक एक हजार सात सौ पचास रूपये तक की कमाई की है। जाड़े के मौसम में मेरी आमदनी अधिक हो जायेगी, ऐसा अनुमान है।


मैं घर के काम के साथ-साथ इस कार्य को करते हुए, अपने परिवार की आजीविका को बढ़ाने में सहायता कर रही हूँसाथ ही, मैंने माह जुलाई 2014 से सितम्बर 2014 तक किमाणा गाँव की बारह महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया है।