किशोरियों से

किशोरियों से


(सरिता उप्रेती)



गर दुःख माथे का ताज बने,


विषम परिस्थिति श्रृंगार बने।


तो क्या हम जीना छोड़ दें,


तो क्या हम जीना छोड़ दें?


जो बीत गया सो बीत गया,


जो हार गया सो हार गया।


शिक्षा लो उस गुलाब से,


जो काँटों में खिलता है।


भीनी-भीनी खुशबू से.


सारे जग को महकाता है।


गुदड़ी का लाल भी तो कोई,


हमारे बीच ही उभरता है।।