कूड़े से बिजली: अब बहेगी गंगा निर्मल व अविरल

||कूड़े से बिजली: अब बहेगी गंगा निर्मल व अविरल||


यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो देहरादून और हल्द्वानी के जैसे शहरो में एकत्रित हो रहे कूड़े से बिजली बनेगी। यह प्रस्ताव अब सरकार ने कैबिनेट में ला दिया है। बिजली कब बनेगी यह तो समय की गर्त मे है, मगर राज्य के छोटे बड़े शहरो में लगे कूड़े के ढेर लोगो को मुंह चिढा रहे है। खैर जो भी हो, सरकार के पास कई निजी कम्पनीयों के प्रस्ताव आ चुके हैं जो कूड़े से बिजली बनाना चाहते है। फिर भी लोगो के मन में सवाल खड़े हो रहे हैं कि सचमुच में कूड़े से बिजली बनेगी तो स्वच्छता का परचम उतराखण्ड से लहरायेगा। अर्थात यहां कि नदियां अविरल बहेगी और कूड़ा भी कहीं दिखाई नहीं देगा।


गौरतलब हो कि राज्य में हुए इन्वेस्टर समिट के दौरान भी रैम्की और डॉटर जैसी कंपनियों ने कूडे से बिजली बनाने के प्रस्ताव सरकार को दिए हैं। राज्य के पास कूड़े से बिजली बनाने बावत कोई नीति न होने के कारण इस मामले में बात आगे नहीं बढ़ पाई। इसलिए सरकार अब इस मामले में देरी नहीं करना चाहती। जबकि विद्युत नियामक आयोग तीन महीने पहले ही कूडे से बनने वाली बिजली का मूल्य तय कर चुका है। अतः इसे पूरी कवायद का शुभ संकेत ही कहा जाना चाहिए। यानी कूडे से बिजली बनाने वाली कंपनियों के सामने उसे बेचने को लेकर भी भविष्य में कोई परेशानी नहीं होने वाली है। बता दें कि देशभर में सिर्फ चार जगह, जिनमें मध्य प्रदेश के जबलपुर और दिल्ली के तीन प्लांटो में मौजूदा समय में कूडे से बिजली बनाने का काम हो रहा है।


स्थिति-ए-कूड़ा कचरा
राज्य के नगर निकायों के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेशभर में 1000 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना उपलब्ध हो रहा है। सही मायने में इस कूड़े का निस्तारण बिजली बनाने में किया जाये तो प्रदेश के कूड़े से 50 मीट्रिक टन बिजली का उत्पादन हो सकता है। कह सकते हैं कि उत्तराखंड में आठ नगर निगम व 92 नगर निकाय क्षेत्र राज्य में स्वयं के राजस्व के स्रोत बनेंगे। हालांकि तीन साल पहले रुड़की में कूड़े से बिजली बनाने की कसरत हुई थी सो नाकाम ही रही है। अब राज्य सरकार निजी कम्पनीयों के सहारे इस कवायद को फिर से आरम्भ करने जा रही है।


कहानी -ए- कूड़ा कचरा
गंगा का मायका कहे जाने वाले उत्तरकाशी (बाड़ाहाट) में कूड़े का आज तक कोई ठोस प्रबंध नहीं हो पाया है। वर्षों से उत्तरकाशी शहर और आसपास के कस्बों से प्रति दिन निकलने वाले कूड़े-कचरे से गंगा मैली होती रही है। सवाल इस बात का है कि गंगा स्वच्छता के नाम पर ंिढंढोरा पीटने वाले जनता के नुमाइंदे कूड़ा प्रबंधन के ठोस इंतजाम के बजाय केवल बयानबीर बनते जा रहे है। बताया जा रहा है कि 1918 से 1957 तक सेनिटेशन कमेटी के तहत उत्तरकाशी नगर में स्वच्छता की व्यवस्था का संचालन हुआ था। 1958 में पहला पालिका का बोर्ड संचालित हुआ। लेकिन, आज तक किसी भी निर्वाचित बोर्ड व तैनात प्रशासको ने उत्तरकाशी के कूड़े के प्रबंधन के लिए सही स्थान तक नहीं चुन पाया।


हालात यह है कि शहर का विस्तार तो लगातार हो रहा है मगर कूड़े के निस्तारण के लिए कोई उचित स्थान ही नहीं है और कुड़े को तेखला गदेरे में डालकर जो सीधा भागीरथी (गंगा) में जा रहा है। हाईकोर्ट ने इसका संज्ञान लिया तो तेखला गदेरे में कूड़ा डालना बन्द हो गया। पर कूड़े को अब आजाद मैदान में एकत्र किया जा रहा है। इस कारण शहर में कूड़े की दुर्गन्ध फैल रही है। बता दें कि उतरकाशी शहर में आप बिना मास्क पहनकर नहीं जा सकते है। जब आजाद मैदान में कूड़े का ढेर अत्यधिक हो जाता है तो शहर से लगभग 16 किमी दूर नालूपानी के बीच भागीरथी में ही कूड़े को उड़ेल दिया जाता है। कुलमिलाकर कूड़ा प्रबंधन के लिए स्थाई ट्रैंचिग ग्राउंड की तलाश अभी भी नहीं की गई है। जबकि पालिका क्षेत्र में प्रति दिन 20 से 22 कुंतल कूड़े का निस्तारण नहीं बल्कि कूड़े को नदी नालों के किनारे ठिकाने लगाया जा रहा है।


बताया जा रहा है कि उत्तरकाशी शहर में कूड़ा निस्तारण स्थल बनाने के लिए वर्ष 2016 में 50 लाख रूपय की धनराशि स्वीकृत हुई है जिसमें से नगर पालिका ने अभी तक लगभग 25 लाख रुपये ही खर्च कर पाये है। कूड़ा निस्तारण स्थल तैयार नहीं हो पाया है। जिलाधिकारी उत्तरकाशी डॉ. आशीष चैहान मानते हैं कि नगर पालिका बाड़ाहाट उतरकाशी में कूड़ा निस्तारण की बड़ी समस्या है। इसके लिए कुछ स्थानों के प्रस्ताव शासन को भी भेजे हैं, जिन पर कार्रवाई चल रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में शासन की ओर से कूड़ा निस्तारण के लिए नगर पालिका बड़कोट का डपिंग जोन और नगर पालिका मुनिकीरेती ऋषिकेश के डपिंग जोन में कूड़ा भेजने के निर्देश पालिका को दिए गये हैं।


तीर्थनगरी ऋषिकेश में गंगा के दोनों तटों पर नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल (एनजीटी) की ओर से 100 मीटर की परिधि को नो डेवलपमेंट जोन घोषित करने के बावजूद भी नगर क्षेत्र में कई निर्माण कार्य गंगा की तलहटी और सौ मीटर के प्रतिबंधित दायरे में बेरोकटोक जारी हैं। नदी के प्रतिबंधित दायरे में लगातार हो रहे निर्माण कार्य से गंगा मैली हो रही है। साथ ही एनजीटी ने गंगा नदी में कूड़ा- कचरा फेंकने पर 50 हजार के जुर्माने का प्रावधान कर दिया है। जबकि ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा के दो सौ मीटर की परिधि में एनजीटी से पूर्व हाईकोर्ट नैनीताल ने भी वर्ष 2000 में निर्माण कार्य को लेकर रोक लगाई थी। इतना ही नहीं वर्ष 2015 में एनजीटी की ओर से भी गंगा के 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया, मगर यह सारे आदेश तीर्थनगरी में लागू ही नहीं हो रहे हैं। तीर्थनगरी में गंगा के प्रतिबंधित दायरे में लगातार हो रहे निर्माण कार्य इसकी तस्दीक करते हैं। ऋषिकेश में तपोवन, लक्ष्मणझूला और आसपास के क्षेत्रों में नदी तटों पर कई होटल, लॉज, आश्रम ऐसे भी हैं जिनका दूषित अवजल प्लास्टिक के पाइपों के जरिए व आसपास के नालों के जरिए सीधे गंगा में गिर रहा है।


राजधानी से मात्र 40 किमी के फासले पर विकासनगर नगर पालिका परिषद के पुल नंबर दो के पास यमुना किनारे बने ट्रैचिंग ग्राउंड का कूड़ा यमुना में समा रहा है। ग्राउंड में कूड़े को समतल करने और और अधिक कूड़ा डालने की वजह से कूड़ा यमुना में मिल रहा है। हाल ये दास्तान ये है कि नगर पालिका को कूड़ा निस्तारण के लिए पहले पुल नंबर दो के पार यमुना किनारे ट्रैचिंग ग्राउंड बनाया गया था, इसके भर जाने पर डाकपत्थर में यमुना किनारे दूसरा स्थान आवंटित हुआ और वहां बसी हुई बस्ती को खाली कराया गया। लेकिन, कूड़ा निस्तारण के लिए विधिवत प्लांट नहीं लगने के चलते कूड़े का ढेर लगाना पालिका प्रशासन की मजबूरी बन गई है। ऐसे में ट्रैचिंग ग्राउंड में कूड़ा बढ़ने पर कूड़े को यमुना की ओर धकेल दिया जाता है। नव निर्वाचित पालिका अध्यक्ष शान्ती जुवांठा का कहना है कि पालिका के अन्र्तगत कूड़े के रिसाईक्लिग की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है पर भविष्य में इसके पुख्ता इन्तजाम होने वाले है। कहा कि सरकार जल्द ही कूड़े से बिजली बनाने का कार्य आरम्भ करने वाली है।


-एक-
गंगा के दोनों किनारे सौ मीटर का दायरा नो डेवलपमेंट जोन होगा, कोई निर्माण नहीं। टेनरी व अन्य इकाइयां यदि गंगा में केमिकल बहाती हैं तो एक लाख रूपय का जुर्माना। गंगा में कूड़ा-कचरा फेंकने पर 50 हजार रूपय का जुर्माना। गंगा का न्यूनत्तम प्रवाह बनाए रखने का आदेश। टेनरियां छह हफ्ते में हटाने के आदेश। यूपी-उत्तराखंड पर धार्मिक गतिविधियां नियंत्रित करने को गाइडलाइन बनाने के आदेश। (-हाल ही में एनजीटी द्वारा दिया गया ऐतिहासिक फैसला)


-दो-
नगर निकायों में कूडे निस्तारण की समस्या के हल के अलावा ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने के लिहाज से भी इस दिशा में काम होना जरूरी है। अफसरों के साथ इस संबंध में विचार विमर्श किया गया है। नीति आने के बाद इस संबंध में तेजी से काम हो पाएगा। (-मदन कौशिक, शहरी विकास मंत्री, उत्तराखंड)


-तीन-
एनजीटी द्वारा दिए गए ताजे आदेश की जानकारी नहीं है। फिर भी यदि कोई निर्माण कार्य गंगा के सौ मीटर के दायरे में हो रहे हैं, तो उनकी पड़ताल कराई जाएगी। उसके बाद नियमानुसार उनके खिलाफ सीलिंग और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई भी की जाएगी। (-हरगिरि, उपसचिव एनआरडीए, एसडीएम ऋषिकेश)