कुछ संगठनो में अयोध्या फैसले को लेकर असमजस

||कुछ संगठनो में अयोध्या फैसले को लेकर असमजस||


जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, अयोध्या मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायमूर्ति की खंडपीठ के 'सर्वसम्मती' से दिए गए फैसले की निंदा करता है। इस निर्णय से स्पष्ट लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 450 साल पुरानी बाबरी मस्जिद के विध्वन्स्कारियों को कानून के समक्ष जवाबदार ठहराने के बजाय पुरस्कृत किया गया है | यह हमारे संविधान का उल्लंघन है और बहुसंख्यवाद एवं भीड़तन्त्र को वैद्यता देता है| यह फैसला देश की धर्मनिरपेक्ष अवधारणा पर एक कड़ा प्रहार है| सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला विरोधाभासों से भरा हुआ है और समानता, बंधुत्व जैसे मूल्यों का सिर्फ उपदेश देता है पर असल में इन सिद्धांतों का उल्लंघन करता है|


यह फैसला तर्क की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता| आस्था को अपने निर्णय में इतनी जगह देकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक खतरनाक द्वार खोल दिया है जबकि न्यायालय ने खुद, सुनवाई की शुरूआत में  ही स्पष्ट किया था कि 'टाइटल के विवाद में फैसला साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा'। एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकारा है कि 'विवादित स्थान' पर मस्जिद थी, मस्जिद के नीचे मंदिर का प्रमाण नहीं है (एक गैर इस्लामिक ढांचा था, ऐसा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना), 1949 में गैर कानूनी रूप से मस्जिद परिसर में मूर्ति स्थापित की गयी, 1992 में गैर कानूनी रूप से मस्जिद को गिराया गया| मगर दूसरी तरफ न्यायालय मस्जिद की जगह मंदिर खड़ा करने का निर्देश देता है, जो तर्क सांगत न होने के साथ-साथ बुनियादी कानूनी सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय की अवहेलना है ! इस कमी को छुपाने के लिए न्यायालय 'मस्जिद के पुनर्वास' के लिये 5 एकड़ की भूमि आवंटित करता है | 


5 एकड़ ज़मीन देना एक अभूतपूर्व कदम है क्यूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए अनुछेद 142 का उपयोग किया है जो कई नई समस्याओं को जन्म देगा| उत्तर प्रदेश केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने कानूनी अधिकारों के लिए लड़ रहा था, समस्या मस्जिद के लिए ज़मीन खोजने की नहीं थी| इसलिए यह निर्णय बहुत ही उत्तेजक है और मुसलमान समुदाय को यह एहसास दिलाता है कि इस देश के नागरिक होने के बावजूद, कानून के समक्ष उनके अधिकार बराबर नहीं हैं ! सर्वोच्च अदालत से इस प्रकार का सन्देश बहुत ही चिंताजनक है, खासकर जब आज के दौर में मुसलमान समुदाय को विशेष रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है | ऐसा लगता है कि न्यायालय ज़मीन दे कर उन पर कोइ बहुत बड़ी कृपा कर रहा है | जिस पक्ष ने मस्जिद गिराया, उन्ही को उस मस्जिद के नीचे का ज़मीन 'हक़' के रूप में देना, संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों का 'ऐतिहासिक अपमान' है!


फैसले में, संविधान व कानून की भाषा से अलग जाकर, पक्षकारों को 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' पक्ष कह कर संबोधित करना हमारे राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के विरुद्ध जाता है और यह खतरनाक है | न्यायालय के सामने इन नामों से कोई पक्षकार भी नहीं था। सुन्नी वक्फ बोर्ड एक पक्षकार था जो विवादित ज़मीन के मामले का प्रतिनिधित्व कर रहा था (न कि देश के सभी मुस्लिमों का) | इसी प्रकार, 'राम लला विराजमान' (जो विश्व हिन्दू परिषद् की तरफ से है) सभी हिन्दुओं का पक्ष नहीं रख रहा था |  


अदालत के इस आदेश के बावजूद कि केंद्र और राज्य सरकार धार्मिक स्थानों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का कड़ाई से पालन करेगी, जो विवादित स्थलों के चरित्र पर 1947 से पूर्व की यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देता है, इस निर्णय में आस्था को तथ्यों से अधिक मान्यता दे कर एक खतरनाक मिसाल स्थापित की गयी है | इस निर्णय  के अनुसार कोइ भी समूह अपनी आस्था के आधार पर किसी भी ढाँचे के स्वामित्व पर सवाल खड़ा कर सकता है, उसे ज़बरन, शातिर प्रचार एवं सत्ता के समर्थन से, गिरा सकता है और खुद को काबिज़ कर सकता है | और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आज देश जिस नाज़ुक परिस्थिति में है, इस आदेश का फायदा, बहुसंख्य राजनीतिक-धार्मिक सत्ताधारी उठाएंगे और अप्ल्संखयकों को और भी प्रताड़ित करेंगे |


अयोध्या मामले में अभी भी कई सारे प्रश्नों का जवाब और जवाबदेही बाकी है ! लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट का क्या हुआ? मस्जिद ढहाने वाले दोषियों के मुकदमे का क्या हुआ? इस विषय में क्यों नहीं लगातार सुनवाई हुई ? उन विध्वंसकारियों पर चल रहा मुकदमा आज तक क्यूँ लटका हुआ है ? उल्लेखनीय है कि, इस फैसले के चंद दिनों के बाद, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को लिखकर, बाबरी मस्जिद गिराने  के लिए ज़िम्मेदार कार सेवकों पर दर्ज मुकदमों को वापिस लेने कि मांग की है ! 


इन तथ्यों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि 1992 की रथयात्रा से लेकर 2002 का गुजरात नरसंहार और लगातार देश को सांप्रदायिकता की आग में झोकने वाले हिंसक संगठन, राजनीतिक दल व व्यक्ति आज सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हैं। बड़ी विडंबना है कि आज यही सांप्रदायिक ताकतें तेज स्वर में बाकियों को उपदेश दे रहे हैं कि 'कड़वाहट पीछे छोड़ देनी चाहिए' क्यूंकि 'न्यू इंडिया' में शांति और सद्भावना ज़रूरी है | गौरतलब है कि धारा 370 की समाप्ती और कश्मीर में 100 दिनों की ताला-बंदी, तीन-तलाक का सांप्रदायिक अपराधीकरण, प्रस्तावित नागरिकता संशोधन कानून (CAB) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के प्रस्तावित देश-व्यापीकरण के साथ, अब सर्वोच्च न्यायालय का 'अयोध्या निर्णय' उनको ज़्यादा बल और उत्साह ही नहीं, कानूनी संरक्षण भी देता है, उनके 'हिन्दू राष्ट्र' की परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए.  


अगर सर्वोच्च न्यायालय को यह लगा कि 'देश की शांति' बनाए रखने के लिए यह निर्णय ज़रूरी था, तो उन्हें यह स्पष्ट कर देना चाहिए था कि मुसलमानों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और उनसे देश के लिए बलिदान माँगा जा रहा है | ऐसा भी न कहते हुए, इस निर्णय को 'न्याय' कहना अन्याय ही है |


हम मांग करते हैं कि सर्वोच्च अदालत अपने इस त्रुटिपूर्ण फैसले का संविधान के ढाँचे में पुनर्विचार करे और 'आस्था' के आधार पर नहीं, तर्क, कानून और न्याय के आधार पर निर्णय दे ! यह इसलिए भी ज़रूरी है क्यूंकि यह सिर्फ एक धर्म स्थल का मामला नहीं है और इस फैसले के आधार पर संविधान का उल्लंघन करने वालों और देश में नफरत फ़ैलाने वालों को कोई मौका नहीं मिलना चाहिए| हम यह भी मांग करते हैं कि इस फैसले पर तर्क और कानून की मर्यादा में आलोचना / टिप्पणी करने वालों पर कोई मुकदमा या कार्यवाही न हो ! मस्जिद गिराने के लिए ज़िम्मेदार सभी लोगों पर कम से कम अब तो कानूनी कार्यवाही होना चाहिए !


हम उम्मीद करते हैं कि 'न्याय के संघर्ष' की इस चुनौतीपूर्ण घड़ी में देश के सभी आम नागरिक, विशेष रूप से हिन्दू और मुसलमान समुदाय के लोग शांति बनाए रखेंगे | देश के लोकतंत्र-प्रेमी नागरिकों और समूहों को सतर्क रहने की ज़रुरत है ताकि 'मंदिर मिर्माण' के नाम पर नफरत फैलाने वाली सत्ताधारी ताकतें कामयाब न हो | आज के माहोल में, जहाँ हर आलोचना को 'राष्ट्रद्रोह' करार दिया जाता है और नागरिकों का सवाल पूछने का अधिकार ही लुप्त हो गया है, हमें हमारा लोकतंत्र बचाने के लिए तत्पर रहना चाहिए |


जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय भारत के आम जन, खासकर मुसलमानों द्वारा लगातार दिखाए गए धैर्य और शान्ति की सराहना करता है | हम उम्मीद करते हैं कि हम भारत के लोग देश को बहुसंख्यवाद से बचा लेंगे और इस दिशा में कार्यरत रहेंगे ! देश को संविधान के अनुसार गांधी, अम्बेडकर, मौलाना आज़ाद, सुभाष, पेरियार, भगत सिंह, फुले, सावित्री बाई,  जैसे अन्य का देश बनाये रखेंगे जो शांति, बराबरी, तर्क, आजादी और बंधुत्व के सिद्धांतों पर चलेगा |


Let to organize to save our country from right-wing majoritarianism and strive to ensure that the values of the Constitution as well as the aspirations of Gandhi, Ambedkar, Maulala Azad, Bhagat Singh, Periyar, Shubash, Phule, Savitribai, and others are kept alive.


 


Medha Patkar, Narmada Bachao Andolan (NBA) and National Alliance of People's Movements (NAPM);


Aruna Roy, Nikhil Dey, Shankar Singh, Mazdoor Kisan Shakti Sangathan (MKSS), National Campaign for People's Right to Information, NAPM;


Dr. Binayak Sen, Peoples' Union for Civil Liberties (PUCL); Gautam Bandopadhyay, Nadi Ghati Morcha; Kaladas Dahariya, RELAA, NAPM Chhattisgarh;


Prafulla Samantara, Lok Shakti Abhiyan; Lingraj Azad, Samajwadi Jan Parishad & Niyamgiri Suraksha Samiti, Manorama, Ant-Posco Movement, NAPM Odisha;


Kavita Srivastava, People's Union for Civil Liberties (PUCL); Kailash Meena, NAPM Rajasthan;


Sandeep Pandey, NAPM, Richa Singh, Sangatin Kisaan Mazdoor Sangathan; Arundhati Dhuru, Manesh Gupta, Rajeev Yadav, Suresh Rathaur, Mahendra, NAPM, Uttar Pradesh;


Sister Celia, Domestic Workers Union; Maj Gen (Retd) S.G.Vombatkere, NAPM, Karnataka;


Gabriele Dietrich, Penn Urimay Iyakkam, Madurai; Geetha Ramakrishnan, Unorganised Sector Workers Federation; Arul Doss, NAPM Tamilnadu;


Dr. Sunilam, Adv. Aradhna Bhargava, Kisan Sangharsh Samiti; Rajkumar Sinha, Chutka Parmaanu Virodhi Sangharsh Samiti,NAPM, Madhya Pradesh;


Vilayodi Venugopal, CR Neelakandan, Prof. Kusumam Joseph, Sharath Cheloor, NAPM, Kerala;


Dayamani Barla, Aadivasi-Moolnivasi Astivtva Raksha Samiti, Basant Hetamsaria, Ashok Verma, Aloka Kujur, NAPM Jharkhand;


Anand Mazgaonkar, Swati Desai, Krishnakant, Parth, Nita Mahadev, Mudita, Paryavaran Suraksha Samiti, Lok Samiti, NAPM Gujarat;


Vimal Bhai,Matu Jan sangathan; Jabar Singh, NAPM, Uttarakhand;


Samar Bagchi, Amitava Mitra, Pradip Chatterjee, Pasarul Alam, NAPM West Bengal;


Suniti SR, Suhas Kolhekar, Prasad Bagwe, NAPM, Maharashtra; Bilal Khan, Ghar Bachao Ghar Banao Andolan, Mumbai, NAPM Maharashtra;


Anjali Bharadwaj, National Campaign for People's Right to Information (NCPRI), NAPM;


Faisal Khan, Khudai Khidmatgar, J S Walia, NAPM Haryana;  Guruwant Singh, NAPM Punjab;


Kamayani Swami, Ashish Ranjan, Jan Jagran Shakti Sangathan; Mahendra Yadav,KosiNavnirman Manch; Sister Dorothy, Ujjawal Chaubey, NAPM Bihar;


Bhupender Singh Rawat, Jan Sangharsh Vahini; Sunita Rani, Domestic Workers Union;Nanhu Prasad, Nirman Mazdoor Union; Rajendra Ravi, Madhuresh Kumar, Himshi Singh, Uma, Aryaman, NAPM, Delhi


Jeevan Kumar & Syed Bilal (Human Rights Forum), P. Shankar (Dalit Bahujan Front), Vissa Kiran Kumar & Kondal (Rythu Swarajya Vedika), Sajaya K (Caring Citizens Collective), Ravi Kanneganti (Rythu JAC), Ashalatha (MAKAAM), Krishna (Telangana Vidyavantula Vedika-TVV), M. Venkatayya (Telangana Vyavasaya Vruttidarula Union-TVVU), Jangaiah & SQ Masood  (RTI Activists), Meera Sanghamitra, Rajesh Serupally, NAPM Telangana



  1. Chennaiah,Andhra Pradesh Vyavasaya Vruthidarula Union-APVVU,Ramakrishnam Raju,


United Forum for RTI and NAPM, Chakri (Samalochana), Balu Gadi (RSV), Bapji Juvvala- NAPM Andhra Pradesh;