||कुड़ गांव में भूतराजा का पन्यारा||
कुड़ का सीधा अर्थ कुण्ड है। यह गांव कुण्ड जैसे आकार स्थान पर बसा है। भूतराजा के धारे से निकलने वाली जल धारा सैकडों नाली कृषि भूमी को सिंचित करती है तथा इन खेतो में उपज की मात्रा भी अधिक है यहां एक स्वादिष्ट धाना की प्रजाति उत्पादित होती है जो अन्य धान की नश्ल से भिन्न है। ग्रामीणो का अटूट विश्वास है कि इस पानी की वजह से इस धान का स्वाद अद्भुत है जो अन्य धान की प्रजाति में नहीं है। यह गांव अनु0 जा0 के लोगों का है।
बड़ा आश्चर्य है कि अन्य जल स्रोतो का नाम देवताओं से जोडा गया अपितु यह जल स्रोत भूत के नाम से प्रचारित किया गया। लोक मतानुसार इस स्थान में पहले भूतों का वास था। अब यहां बसासत हुई तो यह जल धारा पहले ही विद्यमान था। इस स्रोत के पास एक पत्थर की आकृति है। एक हाथ में डमरू, एक में त्रिशूल, व एक में चक्र है तथा एक में शंख है। भले यह मूर्ति छोटी है। इसकी बनावट अतियाकर्षक है। मूर्ती के अनुसार यह जलधारा दुर्गाधारा के नाम से जाना जा सकता है। या काली के नाम से भी जान सकते है।
क्योंकि अनुसूचित जाति बाहुल्य गांवो में सर्वाधिक काली की ही पूजा होती है। अब तो भाई इस धारे का भी सौदंर्यकरण हो चुका है। जिस कारण यहां पर पानी की मात्रा में कमी आई है।
दुन्दकाणी पाणी बिगराड़ी
दुन्दका अर्थात टीला यानि ऊंचा पहाड़ जहां आछरियां (वनदेवियां) वास करती है, वहां से निकलने वाली जल धारा को स्थानीय भाषा में ''दुन्दकाणी पाणी'' कहते है। यह जल स्रोत बिगराडी गांव में है। इस कुण्ड की आकृति पुरातत्वीक है। कुण्ड का जल लोग प्रत्येक संक्राती में अपने कुल देवताओं पर चढाते है। जब नवरात्रों में देवता झूलते है तो वे नाहने के लिए भी इस कुण्ड में आते है।
प्राचीन मतानुसार यह शिव का स्थान है। क्योंकि कुण्ड के बगल में एक शिवलिंग है जिसके बाहर पत्थर से बना हुआ मन्दिर है। इस मन्दिर की गुम्बद भी पत्थर से बनी है। शहचेरी चरण दास निर्मोही जो 20 वर्षो से इस मन्दिर में शिव भक्ति में लीन है।
वह कहते है कि दुन्दकेश्वर महादेव की ऐसी अद्भुत माया है कि यह पानी न तो कभी सूखता है और न ही कभी कम ज्यादा होता है। उक्त स्थान पर तीन धारायें संगम बनाती है। स्थानीय लोग इसे त्रिवेणी के रूप में भी पूजते हैं।