महिला साक्षरता एवं शिक्षण

महिला साक्षरता एवं शिक्षण


देवकी पाण्डे


मैं कोट्यूड़ा गाँव में रहती हूँ हमारी ग्राम सभा दन्यां है। पोस्ट ऑफिस दन्यां, जिला अल्मोड़ा है। सन् 2007 में हमने ऊष्मा संस्था के मार्गदर्शन में महिला संगठन बनाया। हर माह गाँव में गोष्ठी होने लगी। पहले हम लोग संस्था द्वारा आयोजित गोष्ठियों में जाते थे। कुछ समय बाद उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा द्वारा आयोजित की जाने वाली गोष्ठियों में भी भाग लेने लगेवहाँ पर हमें पुष्पा पुनेठा, लीला बिष्ट और अनिला दीदी ले जाती हैं। अल्मोड़ा में अनुराधा दीदी महिला संगठनों के बारे में जानकारियाँ देती हैं। हमें संस्था एवं अल्मोड़ा की गोष्ठियों में जाना अच्छा लगता है। वहाँ पर कुमाऊँ एवं गढ़वाल के महिला संगठनों की सदस्याएं आती हैं, वे अपने गाँवों की बातें बताती हैंहम भी अपने गाँव की बातें बताते हैंइस तरह, विचारों और अनुभवों का आदान-प्रदान होता है। इससे सभी महिलाओं का शिक्षण होता है।


 एक बार गाँव में संगठन की गोष्ठी हुई। संस्था से आयी हुई दीदी ने रजिस्टर में हस्ताक्षर करवाये । हम लोग हस्ताक्षर नहीं कर पाये। तब महिलाओं ने कहा कि जैसा साक्षरता केन्द्र धारागाड़ गाँव में खुलवाया है, वैसा हमारे गाँव में भी होता तो हम भी हस्ताक्षर करना व पढ़ना-लिखना सीखते। फिर अनुराधा दीदी ने हमारे गाँव में साक्षरता केन्द्र खुलवाया। हम लोग दोपहर में दो से चार बजे तक केन्द्र में पढ़ने के लिए जाते। लिखना सीखते। हमने अपना नाम, परिवार के सदस्यों का नाम, गाँव, डाकघर, ब्लॉक, तहसील, जिले का नाम आदि लिखना सीखा। साथ ही, बैंक, पोस्ट-ऑफिस, जॉब-कार्ड, राशन कार्ड, आवेदन-पत्र आदि की जानकारी हुई। सूचना का अधिकार तथा महिलाओं के लिए वृद्धावस्था, विधवा, विकलांग पेंशन-सम्बन्धी जानकारियाँ भी हुईंपहले हम लोग गोष्ठियों के दौरान आगे जाकर बोलने में काफी संकोच करते थे। जब से संगठन में जुड़े, तब से गोष्ठियों में भाग लेने लगे। महिला सम्मेलनों के दौरान मंच पर आगे आकर अपनी बातें कहने लगे । नाटक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम करने लगे। 


हमारे क्षेत्र में संगठनों की सदस्याएं कोष के माध्यम से आपस में ऋण लेती हैं तथा सामूहिक उपयोग की सामग्री खरीदती हैं अभी हमारे गाँव के संगठन ने सामुहिक उपयोग के लिए बर्तन खरीदे हैं। गाँव में संगठन के माध्यम से सभी चीजों की सुविधा हो गई है। संगठन बनने के बाद हमने जंगल भी बचाया। गाँव में सभी को जंगल का महत्व समझाया भविष्य में हमारी नई पीढ़ी को कष्ट होगा, यह कहकर जंगल से होने वाले लाभों की जानकारी सभी को दी। अब ग्रामवासी जंगल से कच्ची लकड़ी नहीं काटते । उत्तराखण्ड महिला परिषद् से जुड़कर काफी जागरूकता आई। हर गोष्ठी में नये-नये विचार मिले। उन्हीं विचारों को आधार बना कर हमारा संगठन सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। गाँव में पुरूष भी महिलाओं को सहयोग देते हैं। संगठन की महिलायें आपस में एक-दूसरे की मदद करती हैं। जब कोई संगठन की सदस्या गोष्ठी में भाग लेने के लिए अल्मोड़ा जाती है तो अन्य स्त्रियाँ उसके घर और गायों की देखभाल करती हैं। इससे संगठन मजबूत होता है। संगठन की सदस्याएं बारी-बारी से अल्मोड़ा में गोष्ठियों में प्रतिभाग करने के लिए जाती हैं। वहाँ से वापस आकर गाँव में गोष्ठी करती हैं। जो भी जानकारी मिलती है, उसे संगठन की अन्य सभी सदस्याओं को बताती हैं। 


मैं अक्टूबर 2013 में पेड़ से चारा काटते समय गिर गयी। संगठन की सदस्याएं मुझे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में ले गयीं।  गाँव के संगठन की अध्यक्षा नन्दी भट्ट मेरे साथ रही। वहाँ गाँव के पुरूष एवं युवा तथा परिवार एवं बिरादरी के सभी लोग आये । धौलादेवी स्वास्थ्य केन्द्र से मुझे हल्द्वानी भेज दिया गया। मेरी कमर और हाथ में चोट आई थी। वहाँ लगभग दो माह तक रहना पड़ा। इस बीच मेरे घर के सभी कार्य संगठन की बहनों ने किये। संगठन के माध्यम से गाँव में काफी एकता हुई है। लोगों का भावनात्मक जुड़ाव बना है। सभी ग्रामवासी एक-दूसरे की मदद करते हैं। संस्था ने हमें आगे बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन से हम लोग आगे बढ़े हैं।


अब गाँव में सभ्यता आ गई है। महिलायें गाँव में गोष्ठियाँ करती हैं।चेतना-गीत, प्रार्थना और भजन गाती हैं, फिर अपनी-अपनी समस्याएं कहती हैंसबकी बातों को ध्यान से सुनती हैं। सभी महिलायें साक्षर हो गई हैं। उन्हें हिम्मत आई है। भविष्य में सभी सदस्याएं संस्था से जुड़कर काम करना चाहती हैं। महिलायें साक्षरता केन्द्र में पढ़कर अपने नाम तथा काम के महत्व को समझने लगी हैं। पहले उन्हें बच्चों, पति, ससुर आदि के नाम से पुकारा जाता था। अब सभी स्त्रियाँ एक-दूसरे का नाम जानती हैं। नाम लेकर एक-दूसरे को संबोधित करती हैं। 


पहले महिलायें अपने काम का महत्व नहीं समझती थीं।अब सोचकर कहती हैं कि हम लोग दिन भर काम करते हैं। अगर एक दिन भी महिला काम ना करे तो पूरी गृहस्थी की गाड़ी ही डगमगा जायेगी। संगठन द्वारा बार-बार यही बात दोहराने से पुरूष और बच्चे भी महिलाओं के काम का महत्व समझ रहे हैं। ग्रामवासी महिलाओं को आगे बढ़ने के लिये सहयोग दे रहे हैं। ये सभी कार्य स्थानीय संस्था, ऊष्मा एवं उत्तराखण्ड महिला परिषद् के सहयोग से संभव हुए हैं।