नदी पास है मगर ये पानी है क्यों है दूर-दूर

नदी पास है मगर ये पानी है क्यों है दूर-दूर


बुलन्दशहर ऐसा जिला मुख्यलय है जहां पर गंगा यमुना का संगम तो होता नही है पर, गंगा व यमुना के बीच का फासला बहुत ही कम है। इस अन्तराल में एक बड़ी आबादी बुलन्दशहर के नाम से बसी है जो वर्षा से पेयजल की किल्लत से परेशान है। अब जनाब जहां से दो दो नदियां गुजर रही हो वहां का अधिकांश हिस्सा डार्कजोन में तब्दील हो गया हो इसे मौसम परिवर्तन की भयावह स्थिति कह सकते हैं। यदि समय रहते यहां सरकारी स्तर पर कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनती तो आने वाले समय में बुलन्दशहर ही नहीं बल्कि गंगा यमुना का सम्पूर्ण आबाद क्षेत्र बिन पानी संकट में आ सकता है। 


इसलिए किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि नदी पास है मगर ये पानी क्यों है दूर दूर। कवि की यह पंक्तियां बुलन्दशहर पर सटिक बैठती है। बता दें कि देश की दो प्रमुख नदियां गंगा और यमुना के तट पर स्थित पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बुलंदशहर जिला पानी की किल्लत से जूझ रहा है। हालात इस कदर भयावह है कि जिले के 600 से ज्यादा गांव डार्कजोन में तब्दील हो चुके हैं। भू-जलस्तर में तेजी से हो रही गिरावट के चलते जिले के लगभग चार लाख 74 हजार किसानों की फसलों को पानी का संकट पैदा हो गया है। जिले के एक आला अधिकारी का कहना है कि जनपद की 500 लाख हेक्टेयर की सिंचित भूमि असिंचित होने की कगार पर आ चुकी है। इस हालात में दूसरी ओर लोगो के सामने पेयजल की भी भयावह स्थिति खड़ी हो गई है। स्थानीय प्रशासन भी इस बात की पुष्टी कर चुका है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आधी से ज्यादा नदियां सूख चुकी हैैं, कारण इसके 500 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। फसल उत्पादन लागत बढने से किसानों का करोड़ों रूपये का नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना हैं कि हालात इसी प्रकार रहे तो पिछले सत्र की भांति इस बार भी गन्ने तथा धान का रकबा घट सकता है। जिस कारण चीनी और चावल के दामों में वृद्धि होने की संभावना लगाई जा रही है। यही नहीं पशुओं के चारे का संकट भी बढेगा। चिन्ता इस बात की है कि जून माह में पानी से लबालब रहने वाली दोनो नदियों की धार कुन्द होती जा रही है। इसी बात की चिन्ता बार-बार सिंचाई विभाग भी कर रहा है। विभाग ने कई बार कहा कि गंगा व यमुना से निकलने वाली नहरों में 50 प्रतिशत से भी अधिक की कमी पानी के बहाव में आ रही है। बताया गया कि बिते वर्ष रायवाला स्थित गंगा नदी में 18 हजार 300 क्यूसेक पानी था, जो मौजूदा समय में घटकर सात हजार 512 क्यूसेक रह गया है।


इसी तरह यमुना नदी में ताजेवाला स्थित में छह हजार 388 क्यूसेक के मुकाबले दो हजार 643 क्यूसेक व नहरों में चार हजार क्यूसेक के मुकाबले 216 क्यूसेक पानी रह गया है। आगे भी ओखला में 1982 क्यूसेक के मुकाबले 635 क्यूसेक पानी यमुना नदी में रह गया है। जबकि गंगा नदी से बिजनौर बैराज से अमरोहा जाने वाली नहर में भी अभी तक पानी की आपूर्ति पिछले वर्षो के मुकाबले बहुत कम है। हिन्डन व काली नदी में भी पहले जैसा जलस्तर नहीं रहा हैं। लगभग 391 किलोमीटर लम्बी मुख्य गंगा नहर रूड़की, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मुरादनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलन्दशहर, अलीगढ, हाथरस, फरूखाबाद, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा होते हुए कानपुर में वापस गंगा नदी में गिरती है। इस अन्तराल में भी गंगनहर का पानी पिछले 10 वर्षो के मुकाबले बहुत कम बताया जाता है। बताया गया कि दस हजार क्यूसेक वाली इस मुख्य नहर में वर्तमान में 6321 क्सूसेक पानी बहता हैं जो मथुरा, आगरा, इटावा, कानपुर, पहुंचते पहुंचते जीरो प्रतिशत रह जाता हैं। इस नहर से 404 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है। पानी की कमी के कारण अब केवल 55 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई हो पाती है। यही हाल यमुना नदी के भी हैं। जहां यमुना के पानी से 80 लाख हेक्टेयर के बनस्पत 90 प्रतिशत सिंचाई क्षेत्र पानी की कमी से प्रभावित हुआ है। मध्य गंगा नहर में भी पानी की कमी के कारण हरिद्वार समेत एक लाख 40 हजार क्षेत्र पर असर पड़ा हैं।


गिरते भूजल से पैदा हुए जल संकट के विषय में कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इसे जल्द दूर नही किया गया तो भविष्य में गम्भीर खाद्यान्न संकट पैदा हो जाएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक भूमिगत जल के जरूरत से ज्यादा दोहन के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आयी है। बताया गया कि अकेले बुलन्दशहर जिले में 50 हजार से भी अधिक नलकूप और रोज बेरोकटोक लाखों की संख्या में समर्सिबल पम्प जल दोहन का गलत तरीका है। वर्षा के पानी का संग्रहण न होना, गांवों कस्बों में तेजी से खत्म हो रहे तालाब और पोखरों के कारण भी यहां का जलस्तर निरन्तर घट रहा है। बुलन्दशहर जिले के बी.बी. नगर, जहांगीराबाद, दानपुर, खुर्जा, लखावटी ब्लाक पूरी तरह डार्कजोन और गुलावठी सिकन्द्राबाद शिकारपुर, स्याना, ऊचांगांव, डार्क ग्रे जोन में घोषित कर दिये गये हैं।


भूगर्भ जल आंकलन समिति के प्रस्ताव के आधार पर उतरप्रदेश सरकार ने प्रदेश भर के डार्क ग्रे जोन के गांवों में भूजल रिचार्ज के लिये 622 करोड़ की योजना तैयार की है। जिसे वित्त पोषण की स्वीकृति बावत केन्द्र सरकार को भेजा है मगर विश्व बैंक द्वारा यह महत्वपूर्ण योजना वापस कर दी है। इसके बाद फिर से राज्य सरकार ने नार्बाड के माध्यम से गांवों का सर्वेक्षण कराकर इनको क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल और अति दोहन श्रेणी में वर्गीकृत करने का निर्णय लिया है। इस सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि खुर्जा की मीट फैक्ट्रियों में जल के अनावश्यक दोहन एवं गन्दे जल को बोरिंग द्वारा जमीन की निचली परतों में पहुंचाने से भी क्षेत्र में पानी की समस्या पैदा हो गई है। सर्वेक्षण में पता चला हैं कि जिले के अधिकांश गांवों में जल स्तर 90 फिट से भी अधिक नीचे जा चुका हैं जो बरसात के दिनों में भी पूर्ती नहीं कर पा रहा है।


इस सर्वेक्षण के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूगर्भीय पानी की पहली परत (लगभग 50 फिट) पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं, जिसके कारण बीमारियों ने घर बना लिया है। बुलन्दशहर जिले के गांवों में आयरन की मात्रा अधिक मिलने से पेट रोगों की बीमारी सर्वाधिक बढ़ रही है। इसलिये इंडिया मार्का हैंडपंप भी 110 फिट से 120 फिट के बीच लगाये जा रहे हैं। सर्वेक्षण में सुझाव आया कि रूफटोप हार्वेस्टिग रिचार्ज, पिट रिचार्ज, ट्रेप रिचार्ज के तरीको को पानी के संरक्षण और दोहन के काम लाने की आवश्यकता है। जल के अनियोजित दोहन पर एकदम प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।