नन्हे सपनों की बात...मणि माँ

||नन्हे सपनों की बात...मणि माँ|| 


मुंडे हुए सर को देखकर मणि की सभी खिल्ली उड़ाते एक तो औरत जात और ऊपर से उसके सर पर छोटे-छोटे बाल।


मणि को भी बहुत शर्म आती थी पर वह कर भी क्या सकती थी? मणि के सिर में कोई फोड़े नहीं थे और ऐसा भी नहीं कि उसके सर पर बाल नहीं उगते थे पर अनाथ मणि की मामी ने उसके सर के बाल मुंडवा दिए थे। लम्बे बाल धोने के झंझट से छुटकारा पाने के लिए।


लेकिन मणि बहुत ही सहनशील थी कोई फरियाद नहींउसके सपने भी सबसे अलग। बहुत ही छोटे छोटे। मणि पर सभी की अनुकम्पा थी और मणि के स्वभाव में दया थी। बस्ती की सभी बूढ़ी- अम्माओं को मणि से बहुत ही लगाव था मणि को पास बुलाकर उसके सर पर प्यार से हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देतीं क्योंकि मणि सभी बूढी-अम्माओं का काम कर देती, किसी के पैर दबा देती, किसी के सिर में तेल लगाकर मालिश कर देती और फिर ऐसी चोटी बांध देती कि बूढ़ी अम्मा खुश हो जाती । मणि की मामी कहानियों में या फिल्मों में जैसी कोई क्रूर मामी नहीं थी लेकिन मणि उसकी अपनी बेटी भी तो नहीं थी।


पूनम के मौके पर बस्ती की सभी महिलाएं साबरमती नदी के भीमनाथ पर स्नान करने जाती थीं और मणि अक्सर सब के साथ रहती। उसे अपने दोनों हाथों को जोड़कर बंद आँखों से नदी किनारे देव के सामने मासूमियत से खड़ी देखकर बस्ती की सभी बूढी अम्माएं मणि को आशीर्वाद देती, "भगवान इसे राजकुमार जैसा वर मिले" भीमनाथ के किनारे पर मणि पूरे समर्पित भाव से बार-बार सभी बूढ़ी अम्माओं को घिस घिस कर नहलाती, कपड़े पहनाती और फिर बाद में श्रद्धापूर्वक खुद नदी में स्नान करती । बस्ती वापस जाते वक्त रामी माँ, पूँजी माँ जैसी वयोवृद्ध बूढ़ी अम्माओं के हाथ पकड़कर चलती। रामी माँ तो सबके बीच में कहती, "भगवान ने मुझे मणि जैसी बहू दी होती तो कितना अच्छा होता।


मणि के दिन की शुरुआत रात के ढेर सारे बर्तन साफ करने से होती उसके बाद मामा के लड़कों के मैले कपड़े धोना, दोपहर का खाना बना के जैसे थोड़ी लेटी कि रामी माँ की आवाज सुनाई दी, 'मणि ये साग में थोड़ी रोटी तोड़ के मिला देना'.... मणि एकदम उठ खड़ी होकर बाजरे के रोटले को इतना बारीक करके मिलाकर देती की रामी माँ खुश हो जाती। मणि कई बार बस्ती की लड़कियों को सरकारी स्कूल में जाते हुई देखती रहती, पर स्कूल जाने की उसे कोई उमंग नहीं थी। उसे पता था कि उसकी उमंग को पूरा करने वाला कोई नहीं है।


मणि के शरीर में यौवन का आगमन होते हुए देख मामी चिंता में पड़ गई, कहीं मणि का पैर इधर उधर न पड़ जाये, वरना लोग तो मुझे ही ताना मारेंगे 'मामी और मामा ने मणि के लिए लड़का ढूँढना शुरू किया था पर बिना माँ-बाप की लड़की का कोई भी हाथ थामने को तैयार नहीं था। मणि की सभी सहेलियों की एक-एक करके शादी हो गयी थी आखिरकार, मणि के लिए एक जगह से रिश्ता आया । देवजी के साथ मणि की सगाई हो गयी और फिर सादगी से ब्याह भी हो गया । देवजी की कहानी भी मणि के जैसी ही थी।


देवजी के पिता की मृत्यु के बाद देवजी की माँ ने दूसरी शादी की थी और देवजी को भी अपने साथ ले गयी थीदेवजी का स्वभाव बहुत गुस्सेवाला था किसी के साथ भी वह लड़ने लगता था पर बलवान भी उतना ही था और दिलदार भी मणि की तरह वह भी संकट में मदद के लिए दौड़ जाता मणि और देवजी का संसार सुख–दुःख से चलता रहा देवजी अहमदाबाद की मिल में बॉयलर में कोयले डालने का काम करता था और मणि बस्ती की औरतों के साथ मजदूरी करती थी। शाम को मजदूरी से आने के बाद मणि खाना बनाती और दोनों साथ खाना खाते । देवजी और मणि बस्ती में किराए के मकान में रहते थे। परिवार में बेटे गोविंद का आगमन हुआ और उसके साथ ही उनके सपने भी बड़े होने लगेछोटा गोविंद बहुत ही समझदार था वह अपनी माँ मणि का बहुत ख्याल रखता।


अनपढ़ होते हुए भी मणि को पढाई के महत्व का ज्ञान था और इसीलिए गोविंद की पढ़ाई के बारे में सोचती रहती। बाद में दो बेटे रमेश और भरत और एक बेटी नीमू आए । बड़ा बेटा गोविंद सबका ध्यान रखता, खुद पढ़ता और अपने छोटे भाई-बहन को भी पढ़ाता गोविंद पढाई में बहुत अच्छा था थोड़ी समझ आयी तो वह अपने माँ बाप के संघर्ष को भी समझने लगा। कई बार गोविंद जहाँ उसकी माँ मजदूरी करती थी वहां उसके के लिए खाना लेकर जाता, तब अपने सिर पर चार-चार ईंटें रखकर सीढियां चढ़ती हुई अपनी माँ को देखता रहतामाँ गोविंद के पास के पास बैठती तब गोविद बड़ी निश्छलता से अपनी माँ को कहता, 'माँ, मैं जब बड़ा हो जाऊंगा ना तब तुम्हें यह ईंटें उठानी नहीं पड़ेगी' उस वक्त मणि अपने पसीने को पोंछकर हंस देती और अपने बेटे के गाल पर अपना हाथ फेर कर कहती, 'भाई, हमारा ऐसा नसीब कहाँ ? देवजी मिल में दो शिफ्ट में काम करता था इस लिए जब वह सुबह काम पर निकलता तो बच्चे सोते रहते और जब वह देर रात को वापस आता तब भी वह बच्चे को सोते ही पाता बच्चों के साथ कई दिनों तक बात न हुई हो ऐसा कई बार हो जाता था। मणि दुखी हो जाती, पर रात को देवजी की लाई हुई जलेबी को खाकर बच्चे खुश हो जाते देवजी के उग्र और मणि के सहनशील स्वभाव के बीच बच्चे बड़े होते चले गए। देवजी कड़ी मेहनत करता था पर माथे पर कर्ज का बहुत बड़ा भार था । नन्हें भरत को लेकर मणि पूरनचंद की किराने की दुकान पर जाती तब उधार में किराना देने के लिए अपनी माँ को गिड़गिड़ाते हुए नन्हा भरत देखता रहता। एक बार ऐसा हुआ कि मणि ने दस रुपये देकर भरत को पूरनचंद की दुकान पर कुछ लेने भेजा। पूरनचंद ने गलती से भरत को बीस रुपये का नोट दे दिया । भरत की खुशी का तो ठिकाना ही न रहा वह खुश होकर अपने घर चला आया और उत्साहित होकर उसने माँ को वह बीस रूपये दे दिए । माँ कुछ न बोली । भरत खुश होकर रात को सो गया पर सुबह जब अचानक उसके शरीर पर लकडी की मार पड़ी तब वह घबरा गया । देवजी उसे गले से पकड़कर पूरनचंद की दुकान पर ले गया और उसे बीस रुपये वापस करते हुए कहा, 'ये मेरे चोर बेटे ने तुम्हारे रुपये लिए हैं?


मणि को सब मणि ही कहते थेमणि के बच्चे भी उसे मणि कहते देवजी को बापा कहकर बुलाते ।


मणि मां को गुजरे हुए आज वर्षों हो गए है। देवजी बापा ने भी मणि माँ के पहले ही विदाई ली थी।


मणि मां का परिवार फलाफुला हुआ हैबेटी और बेटों के बच्चे भी अब बड़े हो गए है, कोई डॉक्टर है, कोई इंजीनियर है तो कोई जिले का प्रभारी है, कोई पुलिस इंस्पेक्टर है । ...सभी मणि माँ की गोद में खेले हैं।


मणि माँ का प्यार सभी को मिला है। लेकिन समय साक्षी है मणि माँ की संघर्ष यात्रा का। टकले सिर की मणि को इसी समय ने देखा है; जलती हुई दोपहर में नंगे पांव बर्तन साफ करती हुई मणि को इसी समय ने देखा है, कड़ी धूप में सर पर ईंटों को रखकर काम करते हुए इसी समय ने देखा है। मणि की तरह उसकी पीढ़ी की कई औरतों की संघर्ष यात्रा शायद ऐसी ही होगी, शायद इस से भी बदतर, पर मणि माँ की संघर्ष यात्रा में संतान की हैसियत से जाने अनजाने सहभागी होने का हमें भी अवसर मिला है जिसका हमें गर्व है।


अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ रहे हमारे बच्चों को जब-जब मणि माँ और देवजी बापा के संघर्ष की कहानी ।


सुनाते है तब हमारी नई पीढ़ी आश्चर्य से सुनती है पर उनके चहेरे के आश्चर्य को देखकर ऊपर बैठी हुए मणि माँ भी शायद मुस्कुराती होंगी।


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी