नर्मदाजी के सूखने के कारण

||नर्मदाजी के सूखने के कारण||


नर्मदा जी सूखने के 2 मुख्य कारण हैं -


1. सरकार और उसकी नीति


2 किसान और उसकी रीति


यू तो नर्मदा जी के सूखने के अनेकों कारण हम गिनाते हैं लेकिन शायद सारे कारण इन दोनों कारणों में से होकर ही गजरते हैंजो कारण मेरी जानकारी में हैं देखिए वे इन दोनों में समाहित हो रहे हैं या नहीं।


सरकार और उसकी नीति :


1. रेत - किसी भी नदी के प्राण अगर पानी है तो तन रेत है, लेकिन सरकार में बैठे नमाइंदों और रेत माफियाओं के चलते नर्मदा नदी का सारा शरीर नोंच डाला गयाजिस जीव का सारा शरीर नोंच डाला गया हो उसमें आत्मा कितनी देर ठहर पाएगी !


2. वॉटर ट्रांसपोर्ट - आज किसी भी शहर या नदी की पानी की हल्की सी समस्या हो या न हो, उसे खत्म करने का कोई तरीका ढूँढे बिना नर्मदा जी की अथाह जलराशि का परिवहन हो रहा है। नर्मदा जी में पानी की मात्रा कल 100 नंबर है. उसमें से 30-40 पतिशत पानी का दोहन होगा तो क्या होगा?


3. फैक्टरियों में लगने वाला पानी- जिन फैक्टरियों में करोड़ों लीटर पानी प्रतिदिन लगता है उन्होंने बरसात का पानी इकट्ठा करने की कोई योजना नहीं बनाई, सीधा नर्मदा जी से पानी लेकर अपने मतलब का पानी लिया और गंदा और प्रदूषण युक्त पानी नर्मदा जी में डालकर उन्हें दूषित और कर दिया।


4. वक्षों की अधाधुध कटाई- वृक्षों की अंधाधंध कटाई से पहले तो बारिश कम हुई, उसने जल राशि को छीना, फिर पेड़ों की जड़ों में समाहित जलराशि जो सालभर नर्मदा जी का जल स्त्रोत बनाए रखती है वो खत्म हुआ है। 2017 में नर्मदा जी अपने उद्गम स्थान पर सूख गईं और सन 2018 में नर्मदा जी अपने उद्गम से कपिल धारा तक 1.50 किलोमीटर तक सूख गईं। इसके अतिरिक्त सरदार सरोवर से खंभात की खाड़ी तक 72 किलोमीटर तक नर्मदा जी सूख गई


5. डेमों के कारण- डेमों में पानी रोक कर बेतरतीब तरीके से पानी के उपयोग के चलते नर्मदा जी की धारा क्षीण हुई है।


6. मृतप्राय नदी को जीवित करने के नाम पर र जीवित नदी की हत्या- क्षिप्रा परियोजना के अंतर्गत क्षिप्रा नदी में पानी नहीं होने के कारण उसका प्रवाह बना रहे इसके लिए नर्मदा जी की अथाह जल राशि क्षिप्रा में डाली जा रही है। उससे वा नदी कभी जीवित तो नहीं होगी लेकिन जीवित नदी मरणासन्न अवश्य हो जाएगी। एक मृत नदी को जीवित कैसे किया जाए ऐसा लिखित में हमारे पास बहुत ज्ञान है लेकिन तत्कालीन वाह-वाही के चलते उस ज्ञान की पुंगी बनाकर एक कोने में फेंके हुए ह। नदी का जाग्रत करन म समय लगता है, लेकिन मृतप्राय नदी को ही जाग्रत करना चाहिए नहीं तो जीवित नदी से हाथ धो बैठेंगे-


7. किसी भी तरह की सरकारी, गैर सरकारी या व्यावसायिक इमारत की छत के पानी को सहेजने हेत वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप किए जाने के बाद ही NOC मिलती है, लेकिन गांधी जी क दशम गाँधी जी ही चलते हैं जिसके चलते 95 प्रतिशत से ज्यादा छतों में ऐसा कोई साधन नहीं है जो वर्षा जल को ग्रहण करते हुए जमीन में समाहित करे, जिसके चलते भूमिगत जलस्तर लगातार गिर रहा है।


किसान और उसकी रीति: 1 पहले के अनपढ़ किसानों ने भली-भाँति समझ लिया था, तभी वे सालभर में सिर्फ रवि और खरीफ 2 फसलें लेते थे। रामायनिक खाद का परिणाम- किसानों ने अति उत्पादकता प्राप्त करने हेत अति से ज्यादा खाद का इस्तेमाल करके ज़मीन की सतह को पत्थर के माफिक कठोर बना लिया है, जिसके चलते पानी ज़मीन में नहीं बैठता बल्कि खेत की सतह से बहते हए नाले में समा जाता है। 


3. नरवाई जलाने के परिणाम- मूंग की फसल लगाकर अतिरिक्त धन अर्जित करने की चाहत में किसान गेहूँ के खेतों की नरवाई जलाकर सफाई करता है, लेकिन वो कितनी बड़ी गलती कर रहा है से यहाँ ईको सिस्टम ध्वस्त होता है और खेत की उसका उसे तनिक भी भान नहीं है। नरवाई जलाने . उर्वरकता बढ़ाने वाले केंचुए खत्म होते हैं। जब . नरवाई जलती है तब ऊपर जलती हुई नरवाई मिट्टी को गर्म करती है और मिट्टी का गर्म होना मतलब मिट्टी का पकना है। एक मटके में मिट्टी की कितनी पतली परत होती है जो पकने के बाद पानी रोक देती है, उसी तरह नरवाई का बार-बार जलाना पानी रोकने वाली परत का निर्माण करना है, और , दसरी बात यह कि किसी भी पकी हुई माटी में कछ भी पैदा नहीं होता।


4. धान की खेती- धान की खेती के लिए दोमट मिट्टी के खेत सही होते हैं, लेकिन हमने नर्मदा कछार के काली मिट्टी के क्षेत्र में धान का बंपर उत्पादन लिया है।


अब ऊपर की सारी बातों को जहन में रख नमदाज खेतो कीली .पानगर वह मोना बहत दिन होते हा नियत स्थान तकपहुँचता है। इसके विपरीत नदी का पानी रागातहोकर चलता है। नती जितना पानी पर चलते हरा दिखता है उससे कहीं ज्यादा पानी रेतगेरहता है। नती की रेत कालान सिफत तक सीमित नहीं होता. तसेजबी झिरों के माध्यम से नदी अपने दोनो ओर लगभग 20-20 किलोमीटर की चोदाई तक बह पाती है. 100 किलोमीटर के दायरे में यदि पानी का स्तर कम सातो उसका मतलब है कि नदी सिकड़ रही है, और अगर ये सिकडन और बढ़ती है तो नर्मदा का सूखना लगभग तय हैफसल लगाने से पहले खेत को मिट्टी को मनाते है यता एक भाडा साजतरमा कालोपटीनाले खेतो बारीक रेतो पानी को धोय धीमे जमीन में गोको अनुमति देती है इसलिए वहाँ के जोर लेबल गर इन खेतो का पभाव नहीं पड़ता, लेकिन नर्मदांचल में ऐसे खेत पानीको कमीको कई गुना बढ़ा देते हैं।