पानी के अभाव में कुपोषित होते बच्चे

||पानी के अभाव में कुपोषित होते बच्चे||


- राजाराम मोहन राय आन्दोलन के कारण बाल विवाह पर रोक लगी।
- इसके बाद बाल दिवस पर देशभर में चिन्ता व्यक्त की जाती रही। 
- बाल मजदूरी, कुपोषण, गंदे पानी के सेवन से मौत को गले लगाना जैसी समस्या बच्चों के सामने आये दिन मुहंबायें खड़ी ही नजर आती हैं। 



देशभर में लाखों बच्चे ऐसे हैं जो दो जून की रोटी के लिए मोहताज ही नहीं बल्कि उनके के लिए प्रकृति प्रदत्त ''पानी'' भी मय्यसर नहीं होता। यह हालात तब जब देशभर में सत्तासीन लोग बार-बार ऐसी दुहाई देने से नहीं थकते कि बच्चो को उचित सुरक्षा, बाल पोषण जैसी सरकार की विशेष योजना ही नहीं अपितु बाल विकास के लिए अलग से मंत्रालय भी है।


जब ऐसा है तो क्यों अपने देश में सर्वाधिक बच्चे कुपोषित पायें गये। यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पानी की कमी के कारण 700 मिलियन लोग स्वच्छता के अभाव में जीने के लिए मजबूर हैं। जिसका सीधा प्रभाव बच्चों के शाररिक विकास पर पड़ रहा है। वे कमजोर, बिकार, खून की कमी से त्रस्त है ही परन्तु उनका मानसिक विकास भी उम्र की गति के अनुसार नही बढ रहा है। उधर 2.1 प्रतिशत बच्चे गंदे पानी पीने से जिन्दगी के पांच बसन्त भी पूरे नहीं कर सकते। 42 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम पाया गया हैं। इसलिए बच्चो के सम्पूर्ण विकास बावत उनके खान-पान के परवरिश में ग्रामीण क्षेत्रो में 85 और शहरी क्षेत्रों मे 95 प्रतिशत पानी की आवश्यकता होती है।


रिपोर्ट कहती है कि यदि देशभर के प्राथमिक स्कूलो में स्वच्छ शौचालय, व्यवस्थित पेयजल की सुविधा बहाल हो जाये तो 84 प्रतिशत बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है। जबकि अमूमन देशभर के प्राथमिक विद्यालयों में शौचालय व पेयजल की सुविधा की जा चुकी है। इन प्राथमिक विद्यालयों में पंहुचाई गयी अधिकांश पायपलाईनें या तो रख-रखाव के कारण जंग खा रही है या इन पायपलाईनों में पानी ही नहीं आ रहा है। इस तरह 60 फीसदी प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जो पानी के अभाव में जी रहे हैं जिसका असर वहां मौजूद अध्ययनरत पाल्यों को उठाना पड़ रहा है।


उल्लेखनीय हो कि शौचालय है मगर पानी नहीं है, पायपलाईन है तो पानी नहीं है ये वे विद्यालय है जहां देश के ग्रामीण वर्ग के बच्चे अध्ययन करते है। इन्ही स्कूलो में सरकारी स्तर के अध्ययन और प्रयोग भी होते हैं। अपने देश में जब बच्चों के लिए कोई नीति, नया स्लेबस, शिक्षण-प्रशिक्षण के तौर तरीको में नया प्रयोग आदि को लागू करना हो तो सरकारी प्राईमरी स्कूल सबसे अच्छा प्लेटफार्म माना जाता है। परन्तु जिस तरह इन प्राईमरी स्कूलो को अन्य कार्यो के लिए प्रयोगशाला बना रहे हैं उसी तरह यदि समय रहते इन स्कूलो में पानी व शौचालय की विधिवत व्यवस्था की जाये तो लगभग 84 प्रतिशत से भी अधिक बच्चों के जीवन में एक बड़ा बदलाव स्वास्थ्य को लेकर सामने आता। तब हम कह सकते हैं कि अपने देश में बच्चे किसी भी कुपोषण के शिकार नहीं हैं। इन खामियों को दूर करने के लिए जितनी जिम्मेदारी अभिभावको की है उससे अधिक जिम्मेदारी सरकारों की है। क्योंकि बच्चों के विकास के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की विकासीय योजनाऐं संचालित हो रही है।


अर्थात इन सरकारी स्कूलों में पानी व शौचालय का उचित प्रबन्धन नहीं हैं। मगर मौजूदा प्रबन्धन रख-रखाव के अभाव में बिखरा पड़ा है, जिसका खामियाजा अन्तोतगत्वा बच्चों को ही उठाना पड़ता है। यही वजह हैं कि सरकारी प्राईमरी स्कूलो के बच्चे आगे जाकर शाररिक, मानसिक समस्याओं से जूझते रहते हैं।


उदाहरणस्वरूप जानी-मानी संस्था राजीव गांधी फाउण्डेशन देशभर के 17 राज्यों में सरकारी प्राईमरी स्कूलो के साथ 'लर्निंग बाय डूईंग' नाम से एक प्रक्रिया संचालित कर रही है। जिसमें प्राईमरी स्कूलो के शिक्षको को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि वे बच्चो की दक्षता के अनुरूप पाठ्यक्रम को पठन-पाठन का हिस्सा बनायें, की मानसिक विकास तभी होगा जब बच्चे को स्कूल में खुला माहौल मिलेगा बगैरह। यानि रटने वाली प्रक्रिया से बच्चे में विकास नही हो रहा है। ऐसा राजीव गांधी फाउण्डेशन की प्रक्रिया बताती है। इन्हे कौन समझााये कि बच्चे के मानसिक विकास के लिए सिर्फ व सिर्फ शिक्षण-प्रशिक्षण ही कोई विद्या नहीं है अपितु बच्चे के विकास में पानी, स्वच्छता व पर्यावरण की पहली प्राथमिकता है। उसके बाद उसके मानसिक और शाररिक विकास के बारे में कहा जा सकता है।


राजीव गांधी फाउण्डेशन एक उदाहरण है जबकि सरकारी स्तर पर भी इस तरह के अनेको प्रयोग इन प्राईमरी स्कूलो में प्रत्येक सत्र में आरम्भ हो जाता है। अच्छा होता कि प्राईमरी स्कूलो में पठन-पाठन के लिए सर्वप्रथम स्वच्छ वातावरण का निर्माण किया जाता। अगर ऐसा हो जाता तो हम कभी ऐसा भी नहीं कह सकते हैं कि अपने देश में बच्चे कुपोषण के शिकार हैं या पानी के अभाव में बच्चों में बिमारी फैल गयी। कुलमिलाकर समय रहते प्राईमरी स्कूलों में विधिवत पेयजल की सुविधा हो जाये तो बच्चों को कुपोषण से बचाया ही जा सकता है साथ ही बच्चों के मानसिक व शाररिक विकास के लिए किये जा रहे प्रयोग भी सफल नजर आयेंगे।