पाताल गंगा - गरुड़ गंगा

पाताल गंगा


गहरी खाईनुमा घाटी में प्रवाहित होने के कारण इसे पाताल गंगा कहा जाता हैऊपरी क्षेत्र से पाताल गंगा का पानी नीले रंग का दिखाई देता है। इस नदी का आकार रेंगते साँप की तरह दिखाई देता है। ऊपर की ओर खड़ी-चट्टान तथा हरे-भरे प्राकृतिक जंगल तथा नीचे की ओर गहरी घाटी, नदी को पाताल का सा आभास कराती है। यही कारण है कि इस नदी को पाताल गंगा के नाम से पुकारा जाता है। यह अंतत: टंगणी में अलकनंदा में समाहित हो जाती है।


गरुड़ गंगा


पीपलकोटी से 4 किमी. पहले गरुड़ गंगा अलकनन्दा में मिलती है। इसके बायें तरफ स्थित पाखी गांव में गरुड़ भगवान का प्राचीन मन्दिर स्थित है। इस नदी तट के पत्थरों की केदारखण्ड पुराण में बड़ी महिमा बताई गई है। इन पत्थरों को घर में रखने से सर्प भय नहीं होता है। इसीलिए इस जलधारा का नाम गरुड़ गंगा पड़ा। उल्लेखनीय है कि गरुड़ एवं सांप परस्पर प्रतिद्वन्द्वी माने जाते हैं। केदारखण्ड में सर्प भय दूर करने के कारण इस नदी के पत्थरों का महत्व इस प्रकार वर्णित हैं -


'गरुड़ गंगा, शिलामंगे .........न तत्रा सर्पत् भयम् विद्यते"


गरुड़ गंगा क्षेत्र भी अपने उन्नत संसाधनों के लिए जाना जाता हैसंतरे, मूली, आलू, राजमा इस घाटी की मुख्य उपज हैं। सीढ़ीदार खेतों की धरातलीय बनावट तथा ऊपरी भागों में देवदार, रासाँ के हरे-भरे जंगल यहाँ की प्राकृतिक सम्पन्नता के प्रतीक हैं। पाखी से हेलंग तक बरसात के दिनों में चारों ओर ऊँचे-ऊँचे लहराते खूबसूरत झरनों की बहार देखते ही बनती है। इन दिनों गरुड़ गंगा में भी पानी काफी बढ़ जाता है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''