पहाड़ की तरफ पसरने लगा पपीता


||पहाड़ की तरफ पसरने लगा पपीता||


पपीता कभी मैदानो का सर्वश्रेष्ठ फल माना जाता रहा है। यह फल पूर्णरूप से औषधीयुक्त है। पर मौजूदा समय में यह फल अब पहाड़ की तरफ भी दिखने लग गया है। चम्पावत जिले के निचले क्षेत्रों यानि चिल्थी स्थित जहां अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है पर पपीता के पेड़ उग आये है। फल देना आरम्भ कर दिया है। यह कमाल करके दिखाया है चिल्थी के मोहन बिष्ट ने। है न कमाल की खबर। खबर भी ऐसी कि पहाड़ी लोग भी अब ताजे पपीता का रस्वादान ले सकते हैं। 


बता दें कि मोहन बिष्ट चिल्थी स्थित अपने बगान में पिछले कई समय से आधुनिक तकनीकि से अलग-अलग प्रकार की फसलों का उत्पादन कर लोगों के लिए उदाहरण बने हुए हैं। वे अपने बागान में कृषि कार्य से ही संबधत मौन पालन, मत्स्य पालन, जल संरक्षण, सब्जी उत्पादन आदि के कार्यो को आधुनिक विधी से रते हैं। वर्तमान में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र में न होने वाले पपीते को उत्पादित कर दिया। मोहन बिष्ट ने प्रयोग के तौर पर पहले पहल पंतनगर से बीच मंगाकर अपने बागान में रोपा। इसके अलावा और कई हाइब्रिड पपीते के पेड़ भी लगाए। जिन्होंने छह माह में ही फल देना आरम्भ कर दिया।


इधर मोहन बिष्ट प्रयोग सफल होने के बाद अब क्षेत्र के अन्य लोगों को भी पपीते की खेती करने के लिए जागरूक कर रहे हैं। ताकि क्षेत्र में स्वरोजगार के रास्ते प्रसस्त हों। श्री बिष्ट के द्वारा उगाये गये पपीते के एक पेड़ पर 150 से अधिक फल आ चुके है। अन्य प्रजाति के पपीते के पेड़ो पर फल आने बाकि है। वैसे इस क्षेत्र में फलोत्पादन का तो माकूल मौसम है मगर जंगली जानवर यानि बन्दरो ने फलो के पेड़ो को तक को रौंदना शुरू कर रखा है। मोहन बिष्ट ने बन्दरो से फलो की सुरक्षा बावत पपीते के फल को कपड़े से ढ़क कर रखा हुआ है। वैसे भी श्री बिष्ट ने इससे पूर्व भी झांसी से पपीते के 85 पेड़ मंगाकर लगाए थे। जिनसे एक बार में उत्पादन अच्छा पर अगली बार के लिए पेड़ समाप्त हो गए। कहते हैं कि इस क्षेत्र में पंतनगर का ही बीज सफल है।


पपीते की व्यवसायिक खेती 
पुश्तैनी कृषि कार्य से हटकर अब व्यावसायिक खेती पर लोग ज्यादा जोर देने लग गये है। यहां क्षेत्र में लोग पपीते की खेती बेहतर विकल्प मान रहे है। मौजूदा समय में बाजार में आई हाईब्रिड किस्मों के चलते पपीते से कमाई करना पहले से ज्यादा आसान हो गया है। बताया जाता है कि एक हेक्टेयर जमीन पर हो रही पपीते की खेती से एक सीजन में लगभग 10 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है। एक बार पपीता लगाकर तीन साल तक उपज लिया जा सकता है। इसके चलते एक बार पेड़ तैयार होने पर लागत भी कम होती जाती है।
38 से 44 डिग्री तापमान पर उग आया पपीता


पपीते की खेती अधिकतम 38 से 44 डिग्री सेल्सियस तापमान में होती है। वैसे न्यूनतम तापमान पांच डिग्री तापमान में भी पपीते की खेती हो सकती है। मतलब आप इसे पहाड़ों से सटे इलाकों में भी उगा सकते हैं, जो अब पहाड़ में भी संभव हो रहा है। फलस्वरूप इसके पपीता की खेती उत्तराखण्ड मे अन्य जगहो पर भी आसान तरिके से की जा सकती है।


पपीते की खेती के लिए पूर्व तैयारी
पहले खेत को अच्छी तरह से जोतकर समतल बनाएं। दो गुणे दो, का एक लम्बा चैड़ा और गहरा गढ्ढा बनाएं। इनमें 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पूर्व भर दें। एक हेक्टेयर जमीन के लिए लगभग 600 ग्राम से लेकर एक किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। सर्वप्रथम पपीते के पौधे बीज से तैयार किये जाते हैं। एक हेक्टेयर जमीन में प्रति गड्ढ़े दो पौधे लगाने पर लगभग पांच हजार पौध संख्या लगेगी।


औषधीययुक्त गुणकारी है पपीता 
पपीता सर्वाधिक फायदेमंद और औषधीय गुणों से भरपूर, और तमाम तरह की बीमारियों से मुक्ति दिला सकता है। पपीते की सबसे बड़ी खासियत है कि ये बहुत कम समय में फल दे देता है। इसकी खेती भी आसान है । पपीते में कई महत्वपूर्ण पाचक एन्जाइम मौजूद रहते हैं। इसलिए बाजार में पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है।


पपीता की खासियत
औषधीय गुणों से भरपूर पपीता पेट संबंधी बीमारियों का रामबाण इलाज है। पपीते की बढ़ रही मांग आत्मनिर्भरता के रास्ते खोल रही है। मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती कर लोग लाखों कमा रहे हैं। अब इसकी खेती का दायरा बढ़ रहा है। पर्वतीय क्षेत्र में भी पपीते की खेती की संभावनाएं जगी हैं। यह संभव हुआ है हिमालय विकास समिति चिल्थी के मोहन बिष्ट के प्रयासों से। पपीता यद्यपि उष्ण जलवायु का पौधा है, फिर भी यह उपोष्ण जलवायु में अच्छी तरह उगाया जाता है इसका उत्पादन समुद्र तल से 100 मीटर कि उचाई तक सुगमता से होता है, 12 डिग्री से नीचे का तापमान इसकी उत्पादकता को प्रभावित करता है। जल भराव, ओला तथा अधिक तेज हवाएं इसे नुकसान पहुंचाती है। पपीता विभिन्न प्रकार कि भूमियों में उगाया जा सकता है, परन्तु अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि, जिसका पी-एच 6.5 से 7.0 के बीच हो, इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। जल निकास का उचित प्रवंध आवश्यक होता है। जल भराव वाली भूमि में जड़ विलगन कि समस्या इसका उत्पादन नहीं होने देती है। पपीते के पौधों को कीटों से कम नुकसान पहुचता है। फिर भी कुछ कीड़े लगते ही हैं जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि हैं। नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण खतम हो जाता है। निमेटोड पपीते को बहुत नुकसान पहुंचता है और पौधे की वृद्धि को प्रभावित करता है। इथिलियम डाइब्रोमाइड 3 किग्रा प्रति हे. का प्रयोग करने से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही अंतरशस्य गेंदा का पौधा लगाने से निमाटोड की वृद्धि को रोका जा सकता है।


उन्नत किस्म की पपीता की प्रजाति
उन्नतशील प्रजातिया जैसे की पूसा डेलीसस 1-15, पूसा मैजिस्टी 22-3, पूसा जायंट 1-45-वी, पूसा ड्वार्फ1-45-डी, पूसा नन्हा या म्युटेंट डुवार्फ, सीओ-1, सीओ-2, सीओ-3, सीओ-4, कुर्ग हनी, रेड लेडी 786, वाशिंगटन, सोलो, कोयम्बटूर, कुंर्गहनीड्यू, पूसा डेलीसियस, सिलोन एवं हनीडीयू ये उन्नतशील प्रजातियाँ उपलब्ध है।