पर्यावरण आकलन समिति ने एक घण्टे में लिया फैसला

||पर्यावरण आकलन समिति ने एक घण्टे में लिया फैसला||



उत्तराखंड में महाकाली नदी पर 315 मीटर ऊंचा पंचेश्वर बांध तथा 95 मीटर ऊंचा रुपालीगाड़ बांध प्रस्तावित है। इस पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना की जनसुनवाईयों के आधार पर “नदी घाटी एवं जल विद्युत परियोजनाओं” पर बनी पर्यावरण आकलन समिति ने 24 अक्टूबर को मात्र एक घंटे से भी कम समय में दोनो बांधों में डूब रही हजारों हेक्टेयर जमीन और 40 हजार से ज्यादा परिवारों के भाग्य का फैसला कर लिया।


फिलहाल समिति ने पर्यावरण स्वीकृति के मामले को अगली बैठक तक टाल दिया है। इसी बीच परियोजना क्षेत्र का दौरा करने के लिए सात सदस्यों की एक समिति भी बनी, जो प्रभावितों से छुपकर बांध क्षेत्र का दौरा करके लौट भी गई। इस समिति के अध्यक्षत शरद कुमार जैन है तथा सदस्य सचिव व निदेशक डॉ० एस० करकेटा भी शामिल है। अब यह समिति भी अपनी रिपोर्ट अगली बैठक से पहले दाखिल करेगी। इधर अनेक जनसंगठनों और प्रभावितों ने अपनी आपत्तियां समिति को भेजी थी। पर समिति ने अपने मिनट्स में प्रभावितो की आपतियां दर्ज तक नहीं की गई। जनसुनवाई के अन्त में परियोजना का सार यह प्रस्तुत किया गया कि परियोजना निर्माण में कोई रुकावट ना आ पाये।


रुपाली गाड बांध प्रस्तावित स्थान से दो किलोमीटर नीचे की ओर स्थानांतरित हो रहा है इसलिए उस पर एक अध्ययन की मांग समिति ने की है। साथ ही नेपाल के हिस्से वाली पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट भी मांगी गई है। 


विचारणीय यह है कि इएसी की बैठक में भी प्रभावितो के संगठनों ने मात्र पांच मिनट मिलने का समय मांगा था, जो नहीं दिया गया। जबकि प्रभावित गांवों में लोगों को आज भी बांध संबंधी कागजातों की जानकारी नहीं है। यहां तक की पुनर्वास के लिए बनाई गई नीति भी गांवों में नहीं दी गई और खुली बैठकों के नाम पर खानापूर्ती करते हुए लोगों से अनापत्ति ली गई है। अतः प्रभावितों को बांध से संबधित जो जानकारी दी गई है वह भी बांध परियोजना के बारे में गैर जानकारी दर्शाते हैं।


पंचेश्वर बांध परियोजना के विस्थापितों के लिए जमीन कहां से मिलेगी? यह बड़ा सवाल है। जबकि टिहरी के विस्थापित जमीन के लिए आज भी पंक्तिबद्ध खड़े हैं। यही नहीं ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे हमारे सामने हैं। 
ज्ञात हो कि एक तरफ ऊर्जा मंत्रालय देश में बिजली की अधिकता बता रहा है। दूसरी तरफ बांध परियोजनाओं कारण लोग सड़को पर आ गये हैं। यह चैकाने वाली स्थिति है कि उत्तराखंड सरकार ने बाकायदा पलायन रोकने के लिए एक पलायन विभाग भी बनाया। अर्थात एक पलायन बेराजगारी के कारण हो रहा है, दूसरा पलायन बांध परियोजनाओं कारण। मौजूदा समय में पंचेश्वर बांध से 40,000 परिवार विस्थापित होंगे। यही नहीं 350 गांव भूस्खलन प्रभावित होने के कारण पुनर्वास की राह ताक रहे हैं। ऐसी हालातो बावत सरकारो की कोई नीति सामने नहीं आ रही है जिससे पलायन व विस्थापन पर रोक लग सके।
बता दें कि पंचेश्वर बांध से कुमाऊं का सर्वोत्तम जंगल व कृषि का क्षेत्र बांध बनने से डूब जायेगा। इसके अलावा भारत नेपाल के सांस्कृतिक-सामाजिक संबंधों का प्रतीक झूलाघाट, जौलजीबी जैसे बाजार भी पंचेश्वर की झील में समा जायेंगे। स्थानीय लोगो का आरोप है कि सामाजिक आकलन रिपोर्ट पूरी तरह धोखे के कागजात है। जो भविष्य में बहुत सारे खतरों को अंजाम देंगे।


इसके अलावा देश के लगभग 45 नामचीन पर्यावरणविदों ने पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र प्रषित कर कहा  िकइस बांध की सामाजिक आंकलन रिपोर्ट फिर से बनाने की आवश्यकता है। पंचेश्वर बांध को लेकर सरकार को एक बार पुनः मंथन करने की नितान्त आवश्यकता है। पर्यावरण के जानकार डा॰ रवि चोपड़ा, दुनू रॉय, डॉ० भरत झुनझुनवाला, मनोज मिश्रा, हिमांशु ठक्कर ने बताया कि इस बांध से जो 134 गांव प्रभावित हो रहे है वे बहुत सुदूर क्षेत्र के हैं जहां ज्यादातर गांवों में अखबार तक नहीं पहुंचता है। उन्होंने अपने पत्र में चिंता के साथ कहा कि यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की परियोजना है जिसके लिए सरकार को गम्भीर होने की जरूरत है। कह कि परियोजना का उद्देश्य कुछ भी हो, फायदा नुकसान कुछ भी हो, किंतु प्रभावितों से सच्चाई छुपाकर जनसुनवाई करना मानवाधिकारों के खिलाप है।


महाकाली लोक संगठन से जुड़े सुरेन्द्र आर्य, विप्लव भटट्, सुमित महर, अजंनी कुमारी, हरिवल्लभ भटट्, प्रकाश भंडारी, अनिल कार्की, भीम रावत, हरेन्द्र कुमार अवस्थी की मांग है कि जनसुनवाई की सूचना जनता को पूरी, सही व उनकी भाषा में हो। जनसुनवाई प्रभावित गावों के निकट हो।