पिंडर नदी (कर्ण गंगा)

||पिंडर नदी (कर्ण गंगा)||


अलकनन्दा की सहायक नदियों में पिंडर सबसे बड़ी नदी हैपिंडारी हिमनद से निकलने वाली यह नदी उत्तरी दानपुर (कुमाऊँ), नन्दाक तथा बधाण क्षेत्रों का जल समेट कर लाती है।


संस्कृत में भैंस पालक कबीले को पिंडारक कहा जाता है। पिंडर नदी के ऊपरी भाग में घने वन, बुग्याल व ऐसे उत्तम चारागाह हैंभैंस पालक पशुचारण के लिए यहां शताब्दियों से आते रहे हैं। इतिहास बताता है कि कश्मीर-पंजाब के गूजर पहले से ही हिमालय में पशुचारण के लिए विचरते रहे हैं।


पिंडर नदी का हिमनद समुद्रतल से लगभग 2836 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पर्यावरण में बदलाव आने से इसकी ऊँचाई में अन्तर आता रहा है। वस्तुतः पिंडारी हिमनद समुद्रतल से लगभग 3810 मीटर की ऊँचाई से लेकर समुद्रतल से लगभग 4650 मीटर ऊँचाई के मध्य स्थित एक विशाल हिमनद है, जिसकी लम्बाई 3.3 किमी० तथा चौड़ाई 1.5 किमी० आंकी गयी है। यह हिमनद नन्दादेवी के पूर्वी ढाल से लेकर नन्दाकोट शिखर के पादतल तक फैला है। यह कई अन्य हिमनदों से भी जुड़ा है। हिमनद के मुख में जो सुरंगनुमा गुफाएं बनी हैं, वे रोमांचकारी हैं। हिमजल के साथ बर्फ के शिलाखंड तीव्र वेग के साथ जलधारा में बहते हैं। इस प्रकार के रोमांचकारी दृश्यों को निहारने के लिए साहसी पर्यटक पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा करते हैं।


अपने उद्गम स्थान से पिंडर नदी प्रारम्भ में दक्षिण दिशा की ओर बहती है। प्रारम्भ के 10 किमी० लम्बे बहाव में यह पूरी तरह बर्फानी रहती है। फुरकिया से खाती के बीच भूमि के ढाल के कारण यह अनेक प्रपात बनाती हुई बहती है। द्वाली में कफनी ग्लेशियर से आने वाली कुफिनी नदी इससे मिलती है। लगभग 15 किमी० के प्रवाह के बाद खाती स्थान पर सुन्दरढुंगा जलधारा इसमें मिलती है। यहां से पिंडर नदी, दक्षिण-पश्चिम दिशा लेकर आगे को प्रवाहित होती है।


धाकुड़ी से यह पश्चिमी दिशा लेकर चमोली जनपद के क्वारी स्थान पर पहुंचकर माई गंगा के जल को समेटती है। इससे आगे यह गहरी घाटी के बीच बहती हुई देवाल के निकट तलोर में कैलगंगा के जल को अपने में समाहित करती है। कैल से पहले जो जलधाराएं इसमें मिलती हैं, उनमें कालीगाड़, सौरगाड़ व फरसौं गाड़ प्रमुख हैंकुछ छोटे-छोटे नाले छरती, रुनियात, धातिया, बौरा भी इसमें मिलते हैं। नन्दकेसरी के नीचे से यह थोड़ा घुमाव लेकर थराली में प्राणमती (गोपतारा) का जल लेकर पैठाणी के नीचे तोली गाड़ का जल समेटती है।


नौरागाड़ व क्यूर जलधारा भी इसमें मिलती है। सिमली में भरारी (आटागाड़) पिंडर नदी से मिलती हैइसके बाद पिंडर का जल कर्णप्रयाग में अलकनन्दा में समाहित हो जाता है। पिंडर का कुल जलप्रवाह मार्ग लगभग 105 किमी० है। केदारखण्ड पुराण में यह कर्णगंगा नाम से वर्णित है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''