संगठन से आया बदलाव
पुष्पा पुनेठा
दन्यां, जिला अल्मोड़ा, के मुनौली गाँव में महिला संगठन अत्यंत सक्रिय है। संगठन की एक सदस्या गंगा पाण्डे जी हैं। उन्हें संगठन से जुड़े हुए काफी समय हो गया है। वह संस्था द्वारा आयोजित की जाने वाली गोष्ठियों में नियमित रूप से भाग लेती हैं। एक बार वे ग्राम-सभा की खुली बैठक में भाग लेने गईं। अपनी समस्या कहीं। उनके पास रहने को मकान नहीं थासिर्फ एक कमरा था। उसकी छत भी टूटने लगी थीउन्होंने विकास-खण्ड के कार्यालय में जाकर इन्दिरा आवास हेतु आवेदन कियाग्राम सभा की खुली बैठक में ग्राम विकास अधिकारी को कागज सौंपेफिर सभी उपस्थित लोगों से भी कहा कि उन्हें आवास मिलना चाहिये। सभी ग्रामवासियों ने सहमति दी कि उन्हें मकान की अत्यंत जरूरत है। दस्तावेजों को आगे भेजा जाये। ___ काफी समय बीत जाने के बाद भी उन्हें आवास की सुविधा नहीं मिली। फिर वह ब्लॉक में ग्राम विकास अधिकारी के पास गई। उन्होंने भी आश्वासन दिया कि जब योजना के अन्तर्गत आवास आयेंगे तो उन्हें इस का लाभ मिलेगा। महीनों बीत गये पर कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई। एक दिन हिम्मत करके वह ग्राम-प्रधान के पास गई और कहा कि अगर उन्हें आवास नहीं मिला तो वे सीधे अल्मोड़ा जिलाधिकारी के पास जायेंगीअपने हक की लड़ाई खुद लड़ेंगी। अधिकारियों ने उन्हें डराया और कहा कि अगर वे अल्मोड़ा जायेंगी तो पुलिस मारेगीबन्द कर देगीवहाँ महिलायें नहीं जा सकतीगंगा जी ने कहा कि "अल्मोड़ा में उत्तराखण्ड महिला परिषद् की गोष्ठी में हमें बताते हैं कि अपनी लड़ाई खुद लड़ोमैं जरूर जाऊँगी।" दूसरे दिन वह स्वयं अल्मोड़ा आ गईउनके पति भी साथ आयेवे जिलाधिकारी, अल्मोड़ा, के दफ्तर में गई। जिलाधिकारी ने काफी विस्तार से गंगा पाण्डे जी की बातें सुनी तथा ब्लॉक के लिये कागज लिखकर दिया। आदेशित किया कि आवास देना जरूरी है उन्होंने गंगा जी से कहा कि इस कागज को ग्राम प्रधान व ग्राम विकास अधिकारी को दिखा दें, उनका काम हो जायेगा। गंगा जी खुश होकर घर वापस आईं। फिर ग्राम प्रधान के साथ ब्लॉक के ऑफिस में गई आवास का प्रस्ताव मंजूर हो गया । मकान बनाने का काम शुरू हुआपरिवार के सदस्यों ने स्वयं भी मेहनत की। दो कमरों का लेण्टर वाला मकान बना लिया। गंगा देवी कहती है कि "जब मैं संगठन से जुड़ी, गोष्ठियों में गई तो जानकारियाँ भी बढ़ीं। हिम्मत आई और आत्मविश्वास बढ़ गया। मैंने गोष्ठियों में सभी लोगों के अनुभवों को सुना तभी तो आज मैं यह साहस-भरा कदम उठा पाई मैंने अपने हक की लड़ाई स्वयं लड़ी है। उसमें सफलता भी मिली । अब कोई भी कार्य होता है तो मैं खुद करती हूँ। संगठन की वजह से मुझमें इतना बदलाव आया । आज मैं अपनी बात कह सकती हूँ।'' उत्तराखण्ड महिला परिषद् के सहयोग से उन्हें शौचालय निर्माण के लिए काम मिला। परिवारजनों ने काफी मेहनत से गढ्ढा बनाया, कमरा बनाया। आज पक्का शौचालय बना लिया हैउसके साथ एक कमरा नहाने के लिए बनाया है गंगा जी कहती है कि "अब सुविधा हो रही है। घर में सयानी लड़कियाँ हैंआज के समय में सभी सुविधाओं की जरूरत होती है। हम लोग हर माह अपने संगठन की गोष्ठी करते हैं । संस्था के कार्यकर्त्ता गाँव में आते हैं। हमें नई-नई जानकारियाँ देते हैं। सहयोग देते हैं। गाँव में कोई भी समस्या आती है तो हम लोग संगठन के माध्यम से दूर करते हैंग्रामसभा की खुली बैठकों में भाग लेने के लिए जाते हैं। मैं अपना अनुभव सभी महिलाओं को बताती हूँ ताकि वे भी अपने हक के लिए स्वयं आवाज उठा सकें। हम संगठन के माध्यम से मनरेगा का कार्य करते हैं। सही मजदूरी के लिये भी आवाज उठाते हैं गाँव के सभी कार्यों में संगठन की महिलाओं की हिस्सेदारी रहती है।'