संकट से जूझ रही पुष्पभद्रा नदी

||संकट से जूझ रही पुष्पभद्रा नदी||


समय पर हिमपात व समय पर बरसात न होने के कारण हिमालय की नदियों पर संकट के बादल मँडराने लगे हैं जिसका सीधा असर रानीबाग से होकर बहने वाली पुष्पभद्रा नदी में भी दिखने लगा है।


यहाँ यह बताते चलें कि हिमालय की गोद में स्थित प्रकृति की अनमोल धरोहर रानीबाग आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस तीर्थ स्थल की महिमा का वर्णन बड़ा ही अद्भुत है। पुराणों में भी इस पावन स्थल की महिमा का सुन्दर वर्णन मिलता है। चित्रेश्वर महादेव, भद्रवट व चित्रशिला, पुष्पभद्रा व गर्गांचल क्षेत्र, जियारानी की तपोभूमि आदि अनेक रूपों में पूज्यनीय इस क्षेत्र का वर्णन स्कंद पुराण में विस्तार के साथ मिलता है। काठगोदाम के निकट स्थित रानीबाग में समय-समय पर लगने वाले मेले इस तीर्थ की विराट महत्ता को प्रकट करता है। प्राचीन काल से अपनी पहचान के लिये प्रसिद्ध रहा रानीबाग पौराणिक व धार्मिकता के आधार पर अद्भुत महिमा वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अपना एक अलग ही विशेष महत्त्व है।
सुन्दर घाटी से होकर बहने वाली गार्गी नदी व इसके तट पर स्थित मंदिर, चोटी पर स्थित जियारानी के नाम से प्रसिद्ध गुफा पौराणिक गाथाओं को बयाँ करती है। यहाँ पधारने वाले तीर्थयात्री जन यहाँ की अलौकिक महिमा से अभिभूत होकर अपना जीवन धन्य मानते हैं एवं यहाँ से मन में अमिट छाप लेकर लौटते हैं। इस क्षेत्र की महिमा का वर्णन वेद एवं पुराणों में भरा पड़ा है, जो अत्यन्त निराला है। इसी निरालेपन में समाई हुई है एक असीम आत्मिक अनुभूमि। पौराणिक ऐतिहासिक महत्त्व वाला यह तीर्थस्थल अनेकों किवदंतियों को भी अपने आप में समेटे हुए हैं। पुराणों में इस स्थान व इसके आस-पास के क्षेत्रों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन मिलता है। गर्ग ऋषि की तपस्थली गर्गांचल की महत्ता में चित्रशिला का वर्णन आता है।


रानीबाग के उत्तरी छोर में स्थित गर्गांचल की महिमा के सार में ही चित्रशिला की महिमा समाई हुई है। कहा जाता है कि सनातन धर्म के सजग प्रहरी ऋषि गर्ग ने इस क्षेत्र में भगवान शंकर की घोर तपस्या करके उन्हें प्रकट व प्रसन्न किया। रामगढ़ मार्ग पर गागर के समीप स्थित शिवालय भगवान शिव की ओर से गर्ग ऋषि की तपस्या के प्रताप फलस्वरूप देवभूमि के लिये अलौकिक भेंट कही जाती है। चित्रक, सत्यसेन, तपस्वी गार्य एवं सत्यव्रती सिद्धगण सहित गौरी, पद्मा, शची, मेघा, सावित्री, विजया, जया तुष्टि आदि मातृकाओं की यह वास-भूमि कही गई है। चित्रशिला व उसके आस-पास के तमाम पर्वतों से निकलने वाली नदियों को पुराणों में भाँति-भाँति नाम से पुकारा जाता है। जिनके नाम क्रमशरू कान्ता, वेणुभद्र, सुवाहा, देवहा, भद्र, भद्रवती, सुभद्रा, कालभद्रा, काकभद्रा, पुष्पभद्रा, मानसी, मानसा आदि है।


स्कंद पुराण के मानसखण्ड के 42-43वें अध्याय में 'भद्रवट-महात्म्य' के अन्तर्गत चित्रशिला के पूजन का वर्णन व विधि मिलती है और भागवत में इस तीर्थ की महिमा पर प्रकाश डाला गया है।
पापों के विनाशक इस तीर्थराज क्षेत्र को 'भद्रवट' क्षेत्र कहते हैं। इस पावन तीर्थ के विषय में महर्षि व्यासजी गोपनीय रहस्य को प्रकट करते हुए ऋषियों के समूह की जिज्ञासा शांत करते हुए मानसखण्ड में कहते हैं। जिसका स्मरण करते ही करोड़ों पाप दूर भाग जाते हैं। जो फल, गोदान, माघ स्नान तथा चन्द्र सूर्य ग्रहणों में कुरूक्षेत्र तथा पुष्कर में स्नान करने से प्राप्त होता है, वह पुण्य 'भद्रवट' में प्राप्त होता है। गया श्राद्ध काशीवास तथा मानसरोवर में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह भद्रवट में सहज ही मिल जाता है। भद्रवट क्षेत्र में लोभवश दान लेना नरक में पड़ना है। इस चेतावनी के साथ महर्षि पाराशर पुत्र व्यासजी कहते हैं कि भद्रवट के पूजा स्थल से बढ़कर कोई दूसरा क्षेत्र नहीं हैं, जिसकी छाया में भगवान विष्णु सोए उससे बढ़कर और कौन सा क्षेत्र हो सकता है। उस क्षेत्र में देवताओं से गढ़ी हुई परम पवित्र चित्रशिला है जो त्रिदेव का वास स्थान है।


चित्रशिला का इस प्रकार से व्यासजी के मुख से महात्म्य को सुकर ऋषियों ने उनसे पूछा प्रभू यह चित्रशिला क्यों पवित्र है। मृत्युलोक में इसका पता किसने लगाया तब व्यास जी यह रहस्य प्रकट करते हुए कहते हैं, मुनिश्रेष्ठों। पुष्पभद्रा के शुद्ध जल में स्नान कर सुतपा नामक मौनी तपस्वी के आश्रम में जाएँ। अर्थात पूर्वकाल में यह भूभाग सुतपा मानक ऋषि की तपोभूमि रही है। इनका जिक्र पुराणों में अनेक स्थान पर आया है। उन महाप्रतापी मुनि ने चित्रशिला क्षेत्र में वटवृक्ष की छाया में रहकर कठोर तप किया है। वह मुनि वहाँ पर 36 वर्ष पर्यन्त हाथ ऊपर उठाए तथा सूखे पत्तों को खाते हुए साधना करते रहे। इस प्रकार समय व्यतीत होने पर सुतपा नामक ऋषि के अनुग्रहार्थ, ब्रम्हा, विष्णू तथा शिव आदि देव भद्रवट पहुँचे। वहाँ उन्होंने उस मौनी तपस्वी को चित्रशिला पर बैठकर अलौकिक ज्ञान प्रदान किया जिसके प्रताप से वह बैकुण्ठवासी हो गया। कहा गया है कि जो मनुष्य इस शिला का श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पूजन करता है वह लोक भ्रमण के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस नदी के जल में स्नान करना और भी दुर्लभ है। जो पुष्पभद्रा के जल में स्नान कर इस दिव्य शिला का पूजन करते हैं उन्हें फिर गर्भवास का कष्ट नहीं उठाना पड़ता है। भदर्वट तीर्थ के बारे में अनेकों किवदंतियाँ प्रचलित हैं। पुराणों में भी इस संदर्भ में कथाएँ आती हैं। जिनमें से एक कथा का वर्णन इस प्रकार है।


खस देश का एक व्याध इस बड़े वन में मृगों हेतु विचरण करने लगा, इस वन में उस दुरात्म ने सुअर, मृग, हिरन आदि पशुओं का संहार किया। एक दिन उसने तपस्या में लीन गर्ग ऋषि को देखा ऋषि दर्शन से समस्त पापों का हरण हो जाता है। तब व्याध को भद्रवट व चित्रशिला की महिमा से अवगत कराते हुए गर्ग ऋषि ने कहा कि हिमालय के प्रदेश में पवित्र गर्गांचल से गार्गी नदी निकलती है, जो पुष्पभद्रा नदी का उद्गम स्थल है। पास ही पर्वत के एक छोर से सुभद्रा नदी निकलती है। उन दोनों के संगम में चिताभस्म-विभूषित-भगवान शंकर जागरूक हैं। उन दोनों संगमस्थली के बाहर तट पर चित्रशिला है। उन दोनों नदियों के जल से सेवित एवं देव तथा ऋषियों से पूजित शिला में ब्रम्हा, विष्णू तथा महेश तीनों देवताओं का वास है। उसका दर्शन कर महापापी भी पवित्र हो जाता है। पुष्पभद्रा के जल में श्रद्धापूर्वक स्नान करने से जन्म-जन्मातरों के पापों का नाश हो जाता है। पुष्पभद्रा के दक्षिण में 'भद्रवट' के दर्शन भी परम फलदायी हैं। शिला और वट के मध्य ऋषियों के पवित्र आश्रमों से विभूषित 'भद्रवट-क्षेत्र' है। गर्ग ऋषि ने व्याध से कहा निष्पाप होकर तुम उस क्षेत्र में जाओ, चित्रशिला के दर्शन से तुम्हारा कल्याण होगा। इस स्थान के पूजन से वह सत्यलोक पहुँचा। महर्षि गर्ग ने कहा है कि इस स्थान की कथा को पढ़ने व सुनने से सत्यलोक में मनुष्य सम्मानित होता है। मकर संक्रान्ति पर इस नदी में स्नान व इस क्षेत्र के मंदिरों के दर्शन करना बड़ा ही सौभाग्य माना गया है।


जनपद नैनीताल के विभिन्न इलाकों के लोग यहाँ शवदाह को लाते हैं। चित्रशिला घाट संसार से विदाई का जहाँ अन्तिम पड़ाव है वहीं परलोक गमन का यह आखिरी स्टेशन भी, जो वर्तमान में घोर दुर्दशा का शिकार है। यहाँ पर जलने वाली चिताएँ झंझावात को झेलते हुए परलोक को प्रस्थान करती हैं। कारण कभी लकड़ी की अभाव तो कभी गीली लकड़ियाँ मुर्दे को चैन से पंचतत्व में विलय नहीं होने देती हैं। और तो और घाट पर व्याप्त गंदगी यहाँ आने वाले आगुन्तकों को झकझोरकर रख देती है।


गौरतलब है कि रानीबाग का यह क्षेत्र तीर्थाटन और पर्यटन का भी एक पावन व पुनीत केन्द्र है। इसी कारण दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग शवदाह के लिये यहाँ आते हैं लेकिन साथ में लेकर लौटते हैं कड़वे अनुभव। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस पावन केन्द्र का आध्यात्मिक महत्त्व भी काफी पुरातन है फिर भी इस ओर राजनीति के हुक्मरानों का कोई ध्यान नहीं है। शवदाह के बाद की गंदगी का पानी हल्द्वानी शहरवासियों को नसीब होता है, गंगाओं के प्रदेश में लोग प्यासे हैं। बूँद-बूँद पानी को मोहताज लोग करें भी तो करें क्या। दुनिया के देशों में जहाँ मानव चन्द्रमा पर मानव बस्तियाँ स्थापित करने की कोशिश में जुटा हुआ है वहीं अपने देश में पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिये आम आदमी को लम्बी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। खासतौर से उन जगहों पर जहाँ से गंगा निकलती है। विकासशील सदी में पानी की समस्या भयावह रूप लेती जा रही है। अपने देश के अधिकांश शहरों में यही मुख्य समस्या है। बुनियादी समस्याओं से मुक्ति मिले तो इंसान अन्य जरूरतों की ओर रूख करे, लेकिन अभी तो इसी समस्या से उसे मुक्ति नहीं मिलती दिखाई देती। बाकी सब छोड़ो यदि केवल हल्द्वानी शहर की बात करें तो पहले उत्तर प्रदेश व अब स्वयं का राज्य उत्तराखण्ड बनने के बावजूद यहाँ के लोगों को शमशान घाट से बहकर आ रहे पानी को हलक में उतारने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। शहर के कई भागों में तो वह भी नसीब नहीं हो पा रहा है। विदित हो कि देवभूमि उत्तराखंड अनादिकाल से ही ऋषि-मुनियों की आराधना व तपस्या का केन्द्र रहा है। बड़े-बड़े मुनियों ने यहाँ की पावन भूमि में स्पर्श पाकर एक अलौकिक व दिव्य शान्ति की प्राप्ति की है। रानीबाग के चित्रशिला घाट में जहाँ पहुँचकर हर पर्यटक श्रद्धालू तीर्थयात्री सहज ही कह उठता है कि उत्तराखण्ड तो वास्तव में देवभूमि है। जिस भूमि को हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्या से तृप्त कर चेतनाओं की तरंगों से सींचा है, आज वह भूमि संसार को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ा रही है। देवभूमि उत्तराखंड के मानसखण्ड कुमाऊँ के प्रवेश द्वार रानीबाग में स्थित चित्रशिला घाट एक ऐसा दिव्य अनुपम स्थल है जो अनेक रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है।


गार्गी यगौला नदी जो चित्रेश्वर महादेव के निचले भाग से होकर बहती है पुराणों में इस सम्बन्ध में वर्णन आता है कि गर्ग मुनि की तपस्या के प्रताप से बहती इस नदी से सात धाराओं का संगम है। स्कंद पुराण के मानसखण्ड के अनुसार भीम सरोवर से निकली पुण्य भद्रा में गार्गी संगम, कमल भद्रा संगम, सुभद्रा संगम, वेणुभद्रा संगम, चन्द्रभद्रा संगम, शेष भद्रा संगम है। जिसे चित्रशिला के पावन गंगा के नाम से पुकारा जाता है। यह स्थल हल्द्वानी शहर से 8 व काठगोदाम से 2 किमी की दूरी पर स्थित है। लेकिन घाट पर व्याप्त गंदगी कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती घाटी मंदिर क्षेत्रों का सही ढंग से रख-रखाव न होना शवदाह के लिये समय-समय पर लकड़ियों का अभाव घोर दर्दुशा को दर्शाता है।


यहाँ गौरतलब बात यह भी है कि शिव महापुराण में पुष्पभद्रा नदी व भद्रवट का जिक्र आया है। शंखचूड़ और भगवान शिव के युद्ध के प्रसंग में पुष्पभद्रा नदी के तट पर शंखचूड़ की सेना द्वारा पड़ाव डाले जाने की कथा को शिव महापुराण में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है। इसके अतिरिक्त भद्रवट क्षेत्र की महिमा भी वर्णन शिव महापुराण के भीतर आया है, जिसमें भगवान शिव द्वारा अपने एक अवतार को इस क्षेत्र में लेने का जिक्र किया गया है।