सीख गये

 




बिछा है हर तरफ, जाल साजिशों का।
कोई धकेला जा रहा है,
खुद-ब-खुद चला जा रहा है कोई।
सहारे के लिए , सहारा भी तो चाहिए,
आलम-ए-खास ये है कि,
सहारा भी जला जा रहा है।
जाने क्यों पर हम भी,
चुप रहना सीख गये।
महफिलें अक्सर भाती थीं हमको, 
अब तन्हा जीना सीख गये।
क्योंकर जिन्दगी में तजुर्बे पे तजुर्बे , होने लगे।
कि लड़खड़ाये बहुत, मगर संभलना सीख गये।


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