सुन्दर गाँव में जानवरों का आतंक

सुन्दर गाँव में जानवरों का आतंक


नीमा सगोई


मैं सुन्दर गाँव में रहती हूँ। यह गाँव कर्णप्रयाग विकासखण्ड के चमोली जिले में स्थित है। मेरा जन्म गाँव में ही हुआ। बचपन में मैंने कभी भी गाँव में जंगली जानवरों के आतंक के बारे में नहीं सुना था। अब हालात बदल गये हैजंगली जानवरों द्वारा आसपास के गाँवों में नुकसान पहुँचाये जाने की घटनाओं को सुनने के साथ-साथ उनके बढ़ते हुए आतंक को मैंने स्वयं महसूस किया है। इस कथन को एक उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है:


तीन साल पहले की बात है। मेरे ही गाँव में सीता देवी सगोई नाम की एक महिला रहती थीउनके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं तीन साल पहले लड़की की उम्र छ: साल और लड़का पाँच महीने का था । वे जंगल अकेली जाती थी। उन्हें अकेले जाकर जल्दी से काम निपटा लेना पसंद था। वे गपशप में समय बरबाद करना पसंद नहीं करती थीहर समय कुछ ना कुछ काम करती रहती थी। एक दिन वे गाँव के पास ही जंगल में घास काटने के लिए गयीं। घास काटने में इतनी खो गयी कि भालू के आने की आहट नहीं सुनाई दी घास काटते-काटते उन्होंने सिर ऊपर उठाया तो सामने एक बड़ा भालू खड़ा था।भालू आगे बढ़ा और सीधे उन पर झपट पड़ा। सीता देवी अपना बचाव नहीं कर पायीं, फिर भी वह भालू से लड़ने लगीं। भालू आकार में बड़ा और ताकतवर था । वह अधिक देर तक भालू से मुकाबला नहीं कर सकी।


उसी समय जंगल के सामने फैले हुए खेतों में एक लड़की और उसकी माँ घास काट रही थीं। उन्हें “बचाओ-बचाओ" का धीमा स्वर सुनाई दिया। साथ ही, भालू की आवाज भी सुनाई दी। वे दोनों डर कर घर की ओर भागी। वे दोनों इतना डर गयी कि कुछ देर तक बोल ही नहीं पायीं । कुछ समय बाद उन्होंने बताया कि जंगल में भालू है और कोई स्त्री मदद के लिए पुकार रही है। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब ग्रामवासी जंगल में पहुँचे तो सीता देवी घायल हो चुकी थी।ग्रामवासियो को देखकर भालू वहाँ से भाग निकला।जब लोगों ने सीता देवी को देखा तो पाया कि उसकी हालत बहुत बुरी थी। उस की एक आँख जमीन पर पड़ी हुई थी और दूसरी आँख लटकी हुई थी। चेहरा जख्मों से भरा हुआ था। भालू ने उसकी नाक नोंच डाली थी और सर के बाल उखाड़ लिये थे। उसका कान काट खाया था। हाथ-पैरों की उँगलियाँ टूटी और कटी-फटी थीं। यह सब देखकर ग्रामवासी रोने लगे। उसे जंगल से उठाकर उसी वक्त कर्णप्रयाग अस्पताल में ले गये। वहाँ पहुँचे तो डॉक्टरों ने कहा कि किसी बड़े अस्पताल में ले जाओ। तब परिजन उन्हें देहरादून ले गये। वहाँ इलाज शुरू हुआ लेकिन वह ज्यादा दिनों तक जीवित ना रही। लगभग एक महीने बाद उस की मृत्यु हो गयी।


उसके छोटे-छोटे बच्चे पीछे छूट गये। कुछ महीनों बाद सीता की सास ने अपने बेटे की दूसरी शादी करने का फैसला लिया। छ: महीने के बच्चे को माँ की जरूरत होती है। सभी ग्रामवासी बच्चों को बहुत प्यार करते हैं