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वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. अवनीश कुमार का साक्षात्कार ।
प्र. प्रो अवनीश जी, आपका आकाशवाणी के स्टूडियो में बहुत-बहुत स्वागत है। आप वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष हैं । मेरा सबसे पहला प्रश्न है कि आयोग हिंदी को बढ़ावा देने में, हिंदी के मानकीकृत शब्दों को गढ़ने के लिए काम करता है आपके आयोग के प्रमुख क्रियाकलाप क्या हैं?
उ. वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्थायी आयोग है जिसकी स्थापना राष्ट्रपति के आदेश से अक्तूबर, 1961 को की गई थीआयोग का जो मूलभूत कार्य है वो यह है कि हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं में शब्दावली का निर्माण करना । उसका प्रचार एवं प्रसार करना इसी के साथ-साथ उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान कार्यों में शिक्षण तथा अध्ययन के लिए हिंदी तथा संविधान की 8वीं अनुसूची में आने वाले भारतीय भाषाओं में सब-संग्रह, शब्दावली, परिभाषा कोष, पाठ्य सामग्री, पाठ्य पुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
प्र. जैसा आपने बताया कि 1961 में शब्दावली आयोग की स्थापना हुई थी और उसने 8वीं अनुसूची में उल्लिखित हिंदी और बाकी सभी भारतीय भाषाओं में मानक तकनीकी शब्द गढ़ने का कार्य प्रारंभ किया। 1961 से आज 2017 तक हमने क्या कुछ पाया है, आपके आयोग का क्या योगदान रहा है, हिंदी के प्रचार-प्रसार में?
उ. हिंदी के प्रचार-प्रसार में तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों में पिछले लगभग 55-56 वर्षों से आयोग लगातार ज्ञान के सभी संकायों में इसमें मानविकीय संकाय, विज्ञान संकाय, इंजीनियिरिंग संकाय, आयुर्विज्ञान संकाय, षि विज्ञान, पशु चिकित्सा, वाणिज्य एवं प्रबंधन आदि-आदि समस्त संकायों में शब्दावली का निर्माण करता है, शब्दावली के निर्माण के उपरांत शब्दावली से चुने हुए शब्दों से उनकी परिभाषाओं का निर्माण करता है, तो आयोग का जो मुख्य कार्य है वो शब्द संग्रहों का निर्माण करना और परिभाषा कोषों का निर्माण करना है। इसके उपरांत आयोग विभिन्न क्षेत्रों से लेखकों को आमंत्रित करता है और शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित की गई शब्दावली का प्रयोग करते हुए लेखकों से अनुरोध करता है कि उन विषयों पर वो पुस्तक लेखन का कार्य करें ताकि हम अपने छात्रों को विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित करा पाएं इस क्रम में शब्दावली आयोग ही नहीं उसके साथ-साथ पूरे भारतवर्ष में 22 ग्रन्थ अकादमी हैं जो कि लेखकों द्वारा पुस्तकों के निर्माण में सहयोग करती हैं।
प्र. विज्ञान और तकनीकी विषयों में जो भी शब्द गढ़े गए हैं या जो भी शब्द हिंदी में बनाए गए हैं जो कि पाठ्यक्रम का हिस्सा बने हैं इनको आप कितना कारगर पाते हैं, क्या कुछ अभी तक इस दिशा में काम हुआ है?
उ. शब्द निर्माण की जो प्रक्रिया है वो एक बड़ी कठिन प्रक्रिया है और एक सतत प्रक्रिया है। जब नया शोध होता है तो उसमें नए शब्दावली का प्रयोग होता है। उन शब्दावली का उस शोध के संदर्भ में हिंदी पर्याय एवं अन्य भारतीय भाषाओं में पर्याय देने का जो मुख्य कार्य किया जाता हैं, वह शब्दावली आयोग द्वारा किया जाता है।
प्र. बहुत बार देखने में आता है कि जो शब्द बनाए जाते हैं या जो पर्याय या परिभाषाएं विशेषज्ञों द्वारा निर्मित की जाती हैं विद्यार्थियों के लिए या किसी और अन्य के प्रयोग के लिए वो इतनी क्लिष्ट होती हैं कि वो रोजमर्रा के प्रयोग में या वो समझने के क्रम में बडी कठिन हो जाती हैं तो इस पर आपका क्या कहना है ?
उ. जब कोई शब्द पहली बार हमारे व्यवहार में आता है हम उसका प्रयोग करते हैं तो हमें ऐसा प्रतीत होता है कि शब्द क्लिष्ट है वास्तव में शब्द उस संकल्पना _के अनुसार बना होता है धीरे-धीरे प्रयोग में आने के बाद शब्द हमें आसान लगने लगता है फिर भी कुछ अवसरों पर ये पाया जाता है कि शब्द क्लिष्ट है तो उसका सरलीकरण भी किया जाता है।
प्र. सरलीकरण को कैसे करते हैं, बहुत बार देखने में आता है कि अनुवाद इतना कठिन कर दिया जाता है अंग्रेजी से हिंदी का खासकर या किसी और अन्य भारतीय भाषा में जिससे कि अर्थ ही भिन्न हो जाता है या कई बार अच्छे-अच्छे शिक्षकों तक को समझने में कठिनाई होती है वो इतना मशीनी अनुवाद होता है कि उसे समझना बहुत ही दुष्कर हो जाता है।
उ. वास्तव में क्या होता है न कि जब हमारे पास शब्द आता है, एक शब्द आता है तो फिर उससे मिलते-जुलते अनेक शब्द आते हैं। जब हम उनके हिंदी पर्याय निर्धारित कर रहे होते हैं या किसी अन्य भारतीय भाषा में उनके पर्याय निर्धारित कर रहे होते हैं तो उसकी पूरी श्रृंखला का ध्यान रखना पड़ता है बहुत बार क्या होता है कि हमने एक शब्द का पर्याय दे दिया उसी श्रखला का यदि दूसरा शब्द आया उसी के पास का तीसरा शब्द आया तो हम उस श्रृंखला से भटक जाते हैं तो ऐसी स्थिति में हमें क्या, उस सभी शब्दों की श्रृंखला को मिला के उनके संभावित पर्याय भी उसी श्रंखला के अनुसार देने होते हैं ताकि वो हमारी पूरी श्रृंखला बनी रहे और शब्दों को समझने में किसी को कठिनाई न हो और लेखन में प्रवाह उसका बना रहे।
प्र. आज हम डिजिटल भारत की बात करते हैं तो अवनीश जी जैसे आपका आयोग कुछ शब्द गढ़ता है तो उनके पर्याय गढ़ता है उनकी परिभाषाएं तैयार करता है आम जन के लिए शिक्षकों के लिए? विद्यार्थियों के लिए वो उपलब्ध कराता है तो क्या वो प्रिंट में ही उपलब्ध है या वो ऐसा डिजिटल इंडिया क्रम में आप कुछ डिजिटल तौर पर भी उपलब्ध करा रहे हैं?
उ. शब्दावली आयोग द्वारा पूर्व में लगभग साढ़े आठ लाख शब्दों के हिंदी पर्याय निर्धारित किए गए हैं शब्दावली आयोग द्वारा पिछले पांच दशकों से अधिक समय से लगभग साढ़े आठ लाख अंग्रेजी वैज्ञानिक तकनीकी शब्दों से हिंदी पर्याय निर्धारित किए गए हैं, और ये जो हिंदी पर्याय है ये मानक हैं और सर्वमान्य हैं।
प्र. साढे आठ लाख से अधिक शब्द आपके आयोग द्वारा गढ़े गए हैं जो कि आमजन के लिए विद्यार्थियों के लिये उपलब्ध हैं तो जब ये शब्द गढ़े जाते हैं तो कृपया आप हमें बताएं कि वो प्रक्रिया क्या होती है, कैसे शब्द बनता है और कैसे वो प्रचलन में लाया जाता है या पाठ्यक्रम का हिस्सा बनता है ?
उ. यदि मैं आज आपसे बात करूं तो आज हमारे पास बेसिक विषयों में सभी में शब्दावली उपलब्ध है, चाहे वो विज्ञान का क्षेत्र हो चाहे वो मानविकी का क्षेत्र हो या इंजीनियरिंग का क्षेत्र हो या आयर्विज्ञान का क्षेत्र हो कृषि विज्ञान का क्षेत्र हो वाणिज्य एवं प्रबंधन का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र हो सभी विषयों में शब्दावली उपलब्ध है। जब हम कोई नया अनुसंधान करते हैं कोई नई रिसर्च हमारे सामने आती है उस समय एक नई शब्दों की श्रंखला हमें मिलती है। सर्वप्रथम हम क्या करते हैं हम उस विषय के विद्वानों को आमंत्रित करते हैं उनकी सहायता से और पुस्तकों में उपलब्ध शब्दों की सहायता से हम नए शब्दों का चयन करते हैं।
प्र. और कोई नया शब्द कैसे बनता है?
उ. नया शब्द जब अनुसंधान किया जाता है तो अनसंधान से रिलेटेड जो हमारे शब्द होते हैं वहां पर नए-नए शब्दों का निर्माण होता है वो शब्द पहले से एडजेस्ट नहीं करते उन शब्दों का हम चयन करते हैं जब हमारे पास एक चयनित शब्दों का संकलन होता है ।
प्र. इसके लिए आपके आयोग में कोई विभाग विशेष होगा जोकि शब्द सृजन में अपना योगदान देते होंगे, जो कि उन शब्दों को गढ़ते होंगे?
उ शब्दावली आयोग में शब्दों के चयन के लिए अलग से कोई विभाग नहीं हैशब्दावली आयोग में विभिन्न विषयों पर अधिकारी हैं वो विषय विशेषज्ञों के सहयोग से नए-नए शब्दों का चयन करते हैं । हमारे पास कोई ऐसा मैकनिज़म नहीं हैं कि हम एक साथ बहुत सारे शब्द के बहुत सारे हिंदी के पर्याय दे सकें हम एक-एक शब्द को उसके संदर्भ के अनुसार, उसकी परिभाषा के अनुसार उसके मूल के अनुसार, उसका उद्गम कैसे हुआ है उसके अनुसार इन सब विषयों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उसका हिंदी अथवा भारतीय भाषाओं में एक पर्याय निर्धारित करते हैं।
प्र. जो तकनीकी शब्द हैं जो कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग ने गढ़े हैं उनके विषयों को समझने के लिये उनको सृजित किया गया है और पुस्तकों में संकलित किया है। आमजन उस तक कैसे पहुंचे?
उ. आमजन के लिये शब्दावली आयोग समयसमय पर विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन करता है विभिन्न पुस्तक प्रदर्शनियों का आयोजन करता है जिनके माध्यम से हम छात्रों को, शिक्षकों को अपनी शब्दावली से परिचित करवाते हैं और उन्हें शब्दावली उपलब्ध कराते हैं।
प्र. डिजिटाइजेशन पर भी आप काम कर रहे हैं तो शायद ये आपकी सारी पस्तकें शब्द डिजिटल तौर पर उपलब्ध हो सकेंगी तो ये बहुत ही आसान हो जायेगा हर किसी के लिये उस तक पहुंच पाना।
उ. मुझे बताते हुए प्रसन्नता है कि शब्दावली आयोग द्वारा जो प्रशासनिक शब्दावली है जिसका प्रकाशन सभी 22 भारतीय भाषाओं में किया जा चुका है। प्रशासनिक शब्दावली का एक मोबाइल ऐप तैयार करवाया जा चुका है। मोबाइल ऐप सीएसटीटी ग्लोसरी के नाम से गूगल प्ले स्टोर में उपलब्ध है।
प्र. सीएसटीटी ग्लोसरी से जरूर ही हमारे श्रोता लाभान्वित होंगे। एक महत्वपर्ण चीज है रोजगार। भारत में पचास करोड़ से अधिक और पूरे विश्व में 80 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते या समझते हैं। हिंदी का इतना रुतबा है, लेकिन जो नियोक्ता हैं जो नौकरी देने वाले संस्थान हैं उन्होंने कुछ ऐसे मानक रखे हैं कि हिंदी भाषी छात्रों के लिये कहीं न कहीं भेदभाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
उ. बहुत बार देखा जाता है कि जो हिंदीभाषी छात्र होते हैं उनके साथ भेदभाव पाया जाता है पर ये हमेशा ऐसा नहीं होता हम जब चयन करते हैं तो उस समय ज्ञान को महत्व देते हैं यदि छात्र के पास ज्ञान है वो किसी भी भाषा में है उसका चयन किया जाना चाहिए।
प्र. आपके कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी कोई नियोक्ता अगर परीक्षा ले रहा है तो विद्यार्थियों के ज्ञान को परखे न कि उनकी भाषा विशेष को।
उ. बिल्कुल सही-बिल्कुल सही। ज्ञान की अभिव्यक्ति तो किसी भी भाषा में करने के लिये भाषा को सीखने के लिए कुछ समय चाहिये तीन महीने का समय चाहिये, छ: महीने का समय चाहिये पर किसी ज्ञान को सीखने के लिये वर्षों की तपस्या है। हम कोई भी कोर्स करते हैं हम कोई स्नातक कोर्स करते हैं, स्नातकोत्तर कोर्स करते हैं अनुसंधान कोर्स करते हैं वर्षों लग जाते हैं जहां तक भाषा का ज्ञान सीखने की बात है भाषा का ज्ञान सीखना अधिकतम एक वर्ष की समयसीमा आप निर्धारित कर सकते हैं तो भाषा एक अलग विषय है ज्ञान अलग विषय है तो आज मैं यह कहना चाहूंगा कि जब भी हम चयन करते हैं तो हमें ज्ञान रखना चाहिये न कि भाषा।
प्र. उम्मीद करते हैं कि जो नियोक्ता हैं वो आपकी बात को सुनेंगे, समझेंगे कि जब भी आप किसी को नौकरी देने जा रहे हैं ज्ञान को परखें उसकी भाषा को ध्यान में न रखें उसका ज्ञान किसी भी भाषा में हो सकता है किसी एक भाषा विशेष में अगर हम ज्ञान को परखते हैं तो कहीं न कहीं छात्रों के साथ शिक्षित बेरोजगारों के साथ अन्याय करते हैं आज एक बहुत ज्वलंत मुद्दा है सोशल मीडिया। अवनीश जी हम आपसे जानना चाहेंगे कि हिंदी के क्षेत्र में जो कुछ भी काम हो रहा है जैसे सोशल मीडिया पर फेसबुक और ट्वीटर पर बहुत से ऐसे पेज हैं जिनसे गैर हिंदी भाषी भी हिंदी को वहां से सीख पा रहे हैं। इस मंच का हम कैसे सदुपयोग करें कि हिंदी को हम एक नए दौर में ले जा सकें, हिंदी के उत्थान में, हिंदी के प्रति समझ बढ़ाने में अपने और हिंदीभाषी भारयों को भी दसमें शामिल कर सकें और हिंदी राजभाषा जिसको कि दर्जा प्राप्त है वो भारत में शतप्रतिशत समझी जाए और हिंदी को उतनी ही ऊंचाइयों तक ले जाए।
उ. आज इंटरनेट के माध्यम से हमारे पास बहत सारा हिंदी का डेटाबेस उपलब्ध है। इस डेटाबेस में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा बनाए गए मानक शब्द हैं वो सम्मिलित नहीं हैं। पिछले कुछ माह से मेरा प्रयास है कि जितने भी वैज्ञानिक तकनीकी वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा शब्दों का निर्माण किया गया है, हम उनके ई-बुक के फॉर्म में उनको डिजिटाइज़ करके उनको यहां पर उपलब्ध कराएंगेइंटरनेट के माध्यम से ताकि सभी लोग अन्य पर्यायों के साथ-साथ जो शब्दावली आयोग द्वारा मानक पर्याय निर्धारित किए गए हैं उनका भी प्रयोग करें । वर्तमान में समस्या क्या होती है कि जो मानक शब्द हैं वो केवल पुस्तकों में उपलब्ध हैं।
प्र. सोशल मीडिया एक अच्छा माध्यम हो सकता है उनको आमजन तक पहुंचाने का।
उ. जन सामान्य के सामने ऑप्शन होंगे वो मानक शब्दों का प्रयोग कर सकता है जो उसके एटपार शब्द हैं, उसका प्रयोग कर सकता है।
प्र. उनके जो पयार्य हैं।
उ. उनके जो पर्याय हैं। पर जिस समय पुस्तक लेखन की बात आयेगी लेखकों की बात आयेगी प्रबुद्ध समाज की बात आयेगी वो हमेशा मानक शब्दों के प्रयोग पर ही बल देगा। मेरा यहां पर एक और भी कहना है कि इसके लिए हमारा जो प्रबुद्ध समाज हैहमारे जो विद्वान साथी हैं जो कि हमारे नीतियों का निर्धारण करते हैं । विभिन्न चयन समितियों में सम्मानित सदस्य हैं उनसे भी मेरा यह अनुरोध है कि जिस समय वो छात्र के ज्ञान को परख रहे होते हैं उस समय उसके ज्ञान को परखें न कि उसकी भाषा को।
प्र. हमें हिंदी को भी ऐसे देखना होगा कि यह एक भाषा है जिसमें कि हम ज्ञान अर्जित करते हैं एक अभिव्यक्ति का माध्यम है अवनीश जी आमजन को आप क्या संदेश देना चाहेंगे।
उ. हम भारतवर्ष में रहते हैं । भारतवर्ष में अधिकांश भू-भाग में बोले जाने वाली जो भाषा है वो हिंदी है। हमें भारत को विकसित करना है विकसित करने के लिए जो हमारे पास ज्ञान है उसको अधिक से अधिक जन-सामान्य के पास पहुंचाना है ताकि जन-सामान्य उस ज्ञान से लाभान्वित हो सके। नए-नए अनुसंधान हो रहे हैं। नए-नए अनुसंधान केवल वैज्ञानिकों तक ही सीमित न रहें उन अनुसंधानों का प्रयोग जन-सामान्य करे । जन-सामान्य उन प्रयोगों से लाभान्वित हो।
अवनीश जी उम्मीद करते हैं कि हिंदी जन-जन की भाषा बने और सबसे बढ़कर हिंदी रोजगार की भाषा बने, जिससे कि हर व्यक्ति हिंदी से अपने को जुड़ा हुआ पाये । आप आकाशवाणी के स्टूडियो में आए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।