स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता

स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता


मैं कोट्यूडा गाँव, जिला अल्मोड़ा, में महिला संगठन की सदस्या हूँ। जब से हमारे गाँव की महिलायें संगठन से जुड़ीं, गाँव में स्त्री, किशोरी और सामुदायिक स्वास्थ्य की समझ बढ़ी हैलगभग बीस साल पहले तक ग्रामवासी घरों में सफाई नहीं रखते थे। शौचालय ना होने की वजह से रास्ते गंदे पड़े रहते थेसंगठन बनने के बाद रोज घर-आँगन और हर तीसरे माह रास्तों की सफाई की जाने लगीअब सभी ग्रामवासी घर के आसपास साफ-सफाई रखते हैं। साथ ही, व्यक्तिगत सफाई, बच्चों की सफाई और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखते हैं।


गर्भवती महिलायें समय पर टीकाकरण करवाती हैं जाँच करवाकर नियमित रूप से दवा खाती हैं। स्वास्थ्य विभाग से मनोनीत आशा से सम्पर्क करके प्रसव के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जाती हैं। स्वयं 108 नम्बर में फोन करके स्वास्थ्य केन्द्र में चली जाती हैंसंगठन की सभी महिलायें एक-दूसरे को सहयोग देती हैं।


प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में प्रसव होने से जच्चा-बच्चा दोनों ही स्वस्थ एवं सुरक्षित रहते हैं। सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ जनता ले रही है। पहले प्रसव घरों में होते थे। कुछ प्रसव ठीक से हो जाते, कभी माँ की जान चली जाती, कभी बच्चे को खतरा हो जाताअब यह समस्या कम हुई है। साथ ही, गर्भवती महिलायें अपने खानपान का ध्यान रखती हैं। अपना वजन तौल कर देखती हैंकैल्शियम, आयरन की गोलियाँ खाती हैं। घर में उगी हुई ताजी हरी सब्जी, दालें, दूध, मट्ठा, घी आदि का सेवन करती हैं। इससे बच्चा स्वस्थ पैदा होता है माँ भी स्वस्थ रहती है ।


यदि किसी महिला को माहवारी से संबंधित परेशानी होती है, तो वह भी अपनी जाँच करवाती है। इलाज करवाती है। माहवारी के दौरान महिलायें रोज नहाती हैं। साफ-सफाई रखती हैं पहले तीन दिन के बाद नहाती थीं। संगठन की गोष्ठियों में निरंतर यह चर्चा हुई कि माहवारी कोई बीमारी नहीं है, यह शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया हैइस दौरान साफ-सफाई रखनी जरूरी हैसफाई न करने से रोग होने की सम्भावनाएं बढ़ती हैंमहिलायें यह बात समझ गईं तो माहवारी के दिनों में रोज नहाने लगीं।


अब गाँवों में छोटे बच्चों का टीकाकरण समय पर होता है। पहले से टीकाकरण को अनावश्यक माना जाता था। अब महिलायें खुद जागरूक हो रही हैं। वे स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं का लाभ ले रही हैं। लड़की के जन्म पर कन्या-धन योजना तथा इण्टरमीडियट पास करने पर गौरा कन्या-धन योजना का लाभ मिलता है। महिलायें आजकल खुद अपने कागज बनाकर योजनाओं का लाभ उठाने का प्रयास कर रही हैं । मासिक गोष्ठियों में महिलाओं से जुड़े हुए हर एक मुद्दे पर चर्चा की जाती हैं। संगठनों की सदस्याएं व्यक्तिगत और सामुहिक अनुभव बताती हैं, इससे अन्य ग्रामवासियों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।


उत्तराखण्ड महिला परिषद् की पत्रिका "नन्दा' में काफी लेख छपे हैं जब महिलायें सम्मेलनों और गोष्ठियों में भाग लेती हैं तो उन्हें "नन्दा' पत्रिका मिलती है। पत्रिका के माध्यम से काफी जानकारी प्राप्त होती है। वे किताब में छपे हुए लेखों को ध्यान से पढ़ती हैं। पत्रिका को पढ़ने से मालुम होता है कि उत्तराखण्ड के गाँवों में महिला संगठन अनेक प्रकार के काम कर रहे हैंइन्हीं कार्यों से संगठन आगे बढ़ता है, महिलायें सशक्त होती हैं और गाँवों का विकास होता है। 


"नन्दा" पत्रिका को पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि हम भी अपने संगठन के बारे में अन्य लोगों को बतायें, इसलिये गोष्ठी में पुष्पा दीदी से इच्छा जाहिर की और यह लेख लिखवाया। मैं सोचती हूँ कि जब महिला का स्वास्थ्य ठीक होगा, वह खुश रहेगी तो उसका परिवार भी खुश रहेगा। महिला परिषद् के माध्यम से महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका मिला हैअपनी बात कहने की हिम्मत आई है। महिला परिषद् एक बहुत बड़ा संगठन हैइसमें जुड़कर हमें काफी प्रसन्नता होती है। भविष्य में हम लोग साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में जाकर अपनी जानकारी बढ़ाना चाहते हैं।