वैकल्पिक जल ऊर्जा के जनक बिहारी लाल 

||वैकल्पिक जल ऊर्जा के जनक बिहारी लाल||


पूज्य बापू की तपस्थली सेवा ग्राम से नई तालीम की शिक्षा लेकर अपने गाँव वापस लौटे बिहारी लाल ने सन् 1978 मेें लोक जीवन विकास भाारती नामक संगठन बनाया। इसी दौरान उत्तराखण्ड के चिपको आन्दोलन में उन्होनें सक्रिय भागीदारी की। उस समय भी जहाँ लोग पेड़ों पर चिपक कर वनों के व्यावसायिक दोहन को रोकने में सफल रहे, उसी दौर में जल, जंगल, जमीन का वैज्ञानिक दोहन स्थानीय समाज के हितों में हो, इसकी चिंता करने वालों में सर्वाेदय कार्यकत्र्ता बिहारी लाल की भूमिका बाद में बहुत रंग लाई। इसी दौर में टिहरी जैसा विशालकाय बाँध बनने लगा।


उत्तराखण्ड के सर्वाेदय कार्यकत्र्ताओं ने आमजन के साथ मिलकर टिहरी बाँध के खिलाफ बिगुल बजा दिया। 80 के दशक में टिहरी बाँध के विकल्पों पर यदा-कदा छोटी पन बिजली बनाने पर चर्चा होती रहती थी। बिहारी लाल जी ने पूरे उत्तराखण्ड में टिहरी बाँध के विरोध में यह चर्चा छेड़ दी कि आखिर गाँधीवादी अहिंसक समाज व्यवस्था के द्वारा कैसे सूक्ष्म जलविद्युत बनाकर हम विकल्प दे सकें। उन्होनें लोक जीवन विकास भाारती आश्रम के सामने से बहने वाली मेंढ़क नदी से निकलने वाली सिंचाई नहरों का अध्ययन किया। जिसके द्वारा यह विचार सामने लाया गया कि सिंचाई विभाग द्वारा सिंचाई नहरों का निर्माण बहु-उपयोगी रुप में क्यों नहीं किया जा सकता है ? इस तरह के प्रश्नों का उत्तर देने में खेतों की सिंचाई भी हो सकती है और ढ़लान पर बहने वाले सिंचाई नहर का पानी पर टरबाइन लगाकर छोटी पनबिजली बनाकर गाँव को रोशन किया जा सकता है। इस दिशा में स्थानीय राजमिस्त्रियों के साथ मिलकर उन्होंने जल, जंगल, जमीन का सार्थक उपयोग करने के लिये स्थानीय ग्रामीणों के साथ मेढ़क नदी पर एक 40 किलोवाट की छोटी पन बिजली बनाई और इसके निर्माण से भिलंगना क्षेत्र के कई नौजवान व स्वैच्छिक संगठन प्रशिक्षित हुये।


उन्होंने संगठन के द्वारा ग्राम स्वराज की दिशा में सैकड़ों नौजवानों को भी ग्राम स्तर पर संगठित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तराखण्ड राज्य में कई गाँधी वादी विचारधारा वाले संगठन भी तैयार हुये है। इसके साथ ही उन्होनें पारम्परिक जल संरक्षण की प्रणाली को विकसित किया है। इसी दौर में उन्होनें भिलंगना ब्लाक के गोनगढ़ तथा थाती कठुड़ पट्टी के एक दर्जन से अधिक गाँव वालों के साथ मिश्रित वन भी तैयार किये है। मेंढ़क नदी पर लघु पन बिजली को तैयार कर उन्होनें सैकड़ो छात्र-छात्राओं को लोक जीवन विकास भारती आश्रम में बिजली की आपूर्ति करवाई। 


पिछले 25 वर्षाें के दौरान बिहारी लाल जी की प्रेरणा से छोटी पन बिजली एक ही जगह पर नहीं बनायी गयी बल्कि उनके द्वारा तैयार हुये कई नौजवानों ने भी इस काम से सीख ली है। भिलंगना ब्लाक में 10 हजार फीट पर स्थित ग्राम पंचायत गंेवाली में 50 किलोवाट की एक छोटी पन बिजली का निर्माण बिहारी लाल जी के नेतृत्व में गाँव के नौजवानों ने निर्मित की है। इसके बाद सिलसिला और आगे बढ़ा और भिलंगना ब्लाक के गाँव जखाणा व अगुण्डा गाँवों मंे भी 50-50 किलोवाट की 
छोटी पनबिजली बनायी गयी। इन गाँवों में बनायी गयी पनबिजली के रख रखाव के लिये ऊर्जा समिति का निर्माण किया गया है। गाँव के नौजवानों को ही इन परियोजनाओं के अनुरक्षण का तरीका सिखाया गया है। इनमें छोटी-मोटी खराबी आने पर गाँव के लोग स्वयं ही मरम्मत कर लेते हैं। इसके साथ ही उनके घरों में जलने वाले बल्ब के अनुसार बहुत कम कीमत ऊर्जा समिति को अदा करते हैं। जिसे चुकाने में गाँव वालों को कोई तकलीफ नहीं होती है। 


आमतौर पर इन छोटी पनबिजली में सिंचाई नहर का निर्माण कर, ढ़लान पर पाईपों से गुजरने वाले जल प्रवाह का टकराव टरबाइन से किया गया है। जिससे बिजली तो बनती है साथ ही जिन गाँवो में ये परियोजना चलाई जा रही है, उनके खेतों की सिंचाई भी होती है। 


अगुण्डा, जखाणा, गंेवाली बूढ़ाकेदार आदि स्थानों पर निर्मित की गयी इन छोटी सी परियोजनाओं में तकनीकि एवं ग्रामीण इंजनीयरिंग को बढ़ावा मिला है। इसमें मुख्य भूमिका दिल्ली के इंजनीयर योगेश कुमार ने निभाई है। बिहारी लाल जी ने योगेश कुमार को सन् 1980-85 मंे उत्तराखण्ड मंे इस काम के लिये आगे लाया है। 


जब अगुण्डा गाँव के लोगों ने छोटी पन बिजली बनाकर अपने गाँव को रोशन कर दिया था, इसी दौरान बाहर से अमेरिका की बरकले नाम की निजी कम्पनी भी गाँव में बिजली बनाने के लिये पहुँची। भला गाँव वाले उन्हंे कैसे सहन करते ? गाँव के लोगों ने इक्कठा होकर कहा कि वे खुद बिजली बनाना जानते हैं कोई बाहर से उन्हें नहीं सिखा सकता। गाँव की इस आवाज के साथ उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान की टीम के अलावा आस-पास के गाँव थाती, तितरुणा, कोटी, रगस्या के प्रधान भी साथ हो गये। जिसके फलस्वरुप बरकले कम्पनी को गाँव छोड़कर वापस जाना पड़ा है। 


बिहारी लाल जी की शिक्षा-दीक्षा महात्मा गाँधी की तपस्थली सेवा ग्राम में हुई हैं। उन्होंने जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन में बढ़-चढ कर हिस्सा लिया हैं। सेवा ग्राम आश्रम वर्धा एवं वनवासी सेवा आश्रम सोनभद्र में उन्होंने गाँधी जी की नई तालीम में महत्पूर्ण प्रयोग करके सैकड़ों छात्र, छात्राओं को शिक्षित किया, जो आज देश के कई हिस्सों में ग्राम स्वराज्य का पाठ पढ़ा रहे हैं।