यूं ही जन-जन के भगतदा नहीं बन गये हयात सिंह कोश्यारी

||यूं ही जन-जन के भगतदा नहीं बन गये हयात सिंह कोश्यारी||



आसान नहीं थी पहाड़ की पगडंडियों से मायानगरी के सरताज तक की डगर


मुंबई के मालावार हिल्स के वाल्केश्वर रोड पर स्थित देश के सबसे खुबसूरत राजभवन तक सुदूर हिमालयी क्षेत्र की दस्तक आसान न थी। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी की सच्ची निष्ठा, कड़ी मेहनत, दूरदर्शिता व गजब के धैर्य ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है।


17 जून 19४2 को बागेश्वर के सुदूरवर्ती कपकोट विकासखंड के पिछड़े गांव नामती चेट्टाबगड़ में पैदा हुए भगतदा की मेहनत व तपस्या का ही प्रतिफल है कि वे खिचड़ी खाकर इतनी ऊंचाइयां हासिल कर ले गये।
यूं तो पत्रकार होने के नाते उनसे मिलना जुलना होता ही रहता है, लेकिन मैंने महसूस किया कि ये संबंध पत्रकार व नेता के न होकर घरेलू जैसे बन गये। इसका कारण है, उनकी सादगी, अपनापन और सरल स्वभाव। जब भी उनसे मुलाकात होती है, घर परिवार के बारे में भी पूछते हैं, खासकर घेस के बारे में तो पूछते ही हैं। इस तरह की आत्मीयता से बात करते हुए उन्हें अन्य लोगों के साथ भी देखा है। शायद यही वजह है कि लोग उनके साथ जुड़ते चले गये। उन्हें उत्तराखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताआें में से एक माना जाता है। भाजपा संगठन की तो वे मानो जान ही रहे हैं।



यूं तो मेरा उनसे मिलना अनगिनत बार हो गया है, लेकिन कुछ मुलाकातें खास इसलिए रही कि वे लंबी थी और मुझे उन्हें समझने का मौका मिला। विस्तृत मुलाकात उनके साथ 25 मई 2002 को घेस में हुई। तब प्रधान रहे मेरे चाचा कैप्टन केशर सिंह बिष्ट ने उन्हें घेस आमंत्रित किया था। वहां बगजी बुग्याल में पर्यटन मेले का आयोजन किया गया था। उनके रात्रि विश्राम के लिए मेरा ही घर चुना गया था। तबके पिंडर विधायक गोविंद लाल शाह, भाजपा जिलाध्यक्ष रिपुदमन सिंह रावत व जिला महामंत्री जोशी जी सहित पूरे दलबल के साथ वे घेस में थे। वे लगभग 20 किलोमीटर पैदल चलकर घेस पहुंचे थे। रात को देर तक गपशप होती रही, तब मैं राष्ट्रीय सहारा लखनऊ में था और छुट्टी पर था। अगले दिन भी पूरे दिन साथ रहे। बातचीत के दौरान ही उन्होंने मुझे बहुत गंभीरता से लिया। उसके बाद तो जैसे मिलने का क्रम तेज हो गया। उसके बाद उनसे एक और लंबी मुलाकात दलबीर दानू की शादी में हुई। मैं देहरादून से गया और वे हल्द्वानी की तरफ से आये। देवाल से उन्हीं की गाड़ी में खेतौली पहुंचे थे और रात को वहां भी बहुत देर तक गपशप करने का मौका था। यह उनके सरल स्वभाव का एक शानदार नमूना था कि वे पार्टी के बहुत जूनियर कार्यकर्ता को आशीर्वाद देने इतनी दूर पहुंचे थे।


मुलाकात का तीसरा बड़ा मौका आया 2007 के विधानसभा चुनावों में। एक दिन भाजपा मुख्यालय में मिले तो बोले, अर्जुन एक दिन समय निकालना मेरे साथ चलना। जाना देहरादून से ही था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से उनका कार्यक्रम बदल गया। उन्होंने चुनाव प्रचार समाप्त होने से दो दिन पहले मुझे बागेश्वर बुलाया। रात को वे भी अपनी टीम के साथ कुमाऊं मंडल में प्रचार के बाद टीआरसी पहुंचे और मैं भी देहरादून से।


अगले दिन का कार्यक्रम बहुत लंबा चौड़ा था। सुबह बाबा बागनाथ के दर्शन करके उन्होंने अपना दिन शुरू किया और चले डिग्री कालेज के हेलीपैड की आेर। यहां से पहली जनसभा अल्मोड़ा के बाड़ीछीना में थी। उसके बाद चमोली में देवाल के मानमती में दूसरी जनसभा। तीसरी जनसभा थराली के बूंगा और उसके बाद नागनाथ पोखरी में चौथी, गौचर में फ्यूल लेकर फिर पांचवीं जनसभा श्रीनगर व अंतिम जनसभा शाम को देवप्रयाग में हुई और उसके बाद सूरज ढलते—ढलते देहरादून पहुंच पाये। हेलीकाप्टर में उनसे बहुत सारी बातें हुई। राज्य के विकास को लेकर वे बहुत चिंतित दिखे। बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा कि अर्जुन इस राज्य का क्या होगा। यह क्षेत्रवाद व जातिवाद के चंगुल में फंसता जा रहा है।


गढ़वाल व कुमाऊं में जिस तरह खींचतान शुरू हो गयी है यह पता नहीं इस राज्य को कहां ले जाएगी। उनकी इस चिंता से मैं भी गंभीर हो गया। मैंने उनको यूं ही एक सुझाव दे दिया जो कभी—कभी मेरे मन में आता रहता है। मैंने कहा कि बहुत सिंपल है चचा। एक दो जिलों का गठन कर दो और दो कमिश्नरी बढ़ा दो। एक कमिश्नरी का नाम नार्थ मंडल, दूसरे का साउथ मंडल व तीसरे का नाम नैनीताल मंडल व चौथे का पौड़ी मंडल रख दो। तभी धीरे-धीरे नई पीढ़ी इस खाई को पाट सकेगी। उन्होंने मेरी इस बात को बहुत गंभीरता से लिया और उसके बाद हम लोग बहुत देर तक इसी पर बात करते रहे। उसके अगले दिन अटल विहारी वाजपेयी जी की श्रीनगर में जनसभा थी। यह इस चुनाव की आखिरी जनसभा होनी थी। भगतदा हेलीकाप्टर में उड़ान के दौरान भी लोगों को फोन लगाते रहे। जिससे भी बात हो पाती वे यही कहते रहे कि कल अटल जी की जनसभा में बहुत अच्छी भीड़ जुटाआे, आप सब लोग पहुंचो आदि-आदि।


उसके बाद चुनाव परिणाम आया, सरकार भाजपा की बनी, लेकिन विधायकों के भारी समर्थन के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। इस बात को लेकर उनके मन में काफी पीड़ा भी महसूस की, लेकिन उन्होंने अपना हौसला बनाये रखा और पार्टी के लोगों के साथ अपना जुड़ाव बनाये रखा। यही वजह रही कि वे प्रदेश भाजपा के शीर्ष पोजिशन पर बने रहे।



लोगों की मदद को तो वे जैसे हमेशा तत्पर रहते हैं। २००८ के आसपास की बात है। देवाल के पूर्णा में एक सड़क हादसा हुआ, जिसमें दो लोगों की मौके पर ही डेथ हो गयी थी और गंभीर रूप से घायल होकर मुंदोली के वकील लखपत सिंह बिष्ट को जौलीग्रांट अस्पताल लाया गया था। लखपत के पिता कैप्टन पुष्कर सिंह साहब का मुझे फोन आया कि कुछ मदद कराओ। मुझे तुरंत भगतदा का ध्यान आया और मैंने उनसे बात की। उनका हरिद्वार का कार्यक्रम लगा हुआ था। उन्होंने कहा मैं एक डेढ़ घंटे बाद निकलूंगा तुम भी तैयार रहो, मैं लखपत को देखने चलूंगा। फिर मैं जोगीवाला चौक से उनकी कार में ही साथ निकला। रास्ते से ही उन्होंने विजय धस्माना जी को फोन लगा दिया था। वे लखपत को देखने गये और खुद धस्माना जी भी वहीं आये। फिर तो इलाज बढ़िया तरीके से हो गया। प्रसंग और भी बहुत सारे हैं। एक बार तो उनके कैंट आवास पर उत्तरकाशी का एक बंदा पहुंचा। उसने वहां के किसी भाजपा नेता का नाम लेकर बताया कि उसको उन्होंने भेजा है। उसने अपनी व्यथा बताई, उसका पुलिस थाने में कोई मामला था। भगतदा ने तुरंत एसपी को फ़ोन लगाया और उस व्यक्ति का नाम लेकर कहा कि यह उनका बहुत पुराना कार्यकर्ता है। देखना इसके साथ अन्याय न होने पाये।


उम्मीद की जानी चाहिए कि भगतदा मालावार हिल के राजभवन की चकाचौंध में भी पहाड़ की ऐसे ही चिंता करते रहेंगे।