||शब्दयात्री - चुल और फुंतरु||
रानी मुखर्जी की फ़िल्म मर्दानी-2 के सम्वादों में चुल शब्द का प्रयोग कई बार सुनने को मिलता है। ये शब्द इससे पहले एक हिंदी गाने में भी सुनाई दे चुका है, 'लड़की कर गई चुल्ल।' इस शब्द के संदर्भ में ध्यान देने वाली बात यह है कि ये एक नकारात्मक शब्द है और इसका मूल अर्थ यौनांगों में खुजली या सेक्स की इच्छा से जुड़ा है। यौनांगों को सहलाने की इच्छा को भी चुल कहा गया है। कुछ शब्दकोश में इसे शारीरिक खुजली भी बताया गया। मर्दानी के सम्वादों में चुल धड़ल्ले से आता है और अनायास ही लोगों की जबान पर भी चढ़ जाता है, ये थोड़ा चिंताजनक है। फ़िल्म का खलनायक कहता है, 'गुप्ताइन को बड़ी चुल थी, मेरे बाप को उससे भी बड़ी थी, उसने एक दिन मिटा दी गुप्ताइन की चुल।.....इस एस. पी. में भी बड़ी चुल है।' जब तक चुल का असल अर्थ न पता हो, ये शब्द और सम्वाद सामान्य लगता है। लोग इसका अर्थ ईगो या घमंड के रूप में ग्रहण करते है, पर वास्तविक अर्थ तो कुछ और ही है।
हिंदी में एक शब्द चूल भी है। ये दरवाजे के ऊपर या नीचे का हिस्सा होता है। हालांकि कुछ लोग इसे दर और दरवाजे के बीच लगे जोड़ या लोहे का कब्जा मानते हैं। चूल हिलना एक मुहावरा भी है, इसका सामान्य अर्थ है-दरवाजे का कमजोर होना, लेकिन इसका गंभीर अर्थ किसी व्यक्ति की ज़िंदगी पर पड़े असामान्य प्रभाव के तौर पर भी ग्रहण किया जाता है। चुल और चूल के अर्थ में कोई सीधा सम्बन्ध तो नहीं दिखताबहै, लेकिन कभी-कभी महिला पुरुष के बीच हो रही लड़ाई में पुरुष द्वारा गाली दी जाती है, ' जबान मत लड़ा, तेरी चूल हिला दूंगा। ' इस वाक्य में चूल का प्रयोग योनि के लिए किया गया है।
इसी फिल्म में फुंतरु (फुलन्तरू) शब्द भी सुनाई देगा। हिंदी शब्दकोश में ऐसा कोई शब्द आसानी से नहीं मिलेगा, लेकिन लोक व्यवहार में इस शब्द की मौजूदगी हिंदी से लेकर मराठी, तक कई भाषाओं में नज़र आएगी। व्याकरण की दृष्टि से ये एक निरर्थक शब्द है, लेकिन स्लैंग के रूप में अर्थ सम्प्रेषित करता है। ये ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो अपनी औकात से ज्यादा बड़ी चीजों को चुनौती देता है या जो लंबी-लंबी हांकता है। बेहिसाब हांकने को फुंतरुबाजी भी कहा जाता है।
वैसे इस फ़िल्म का टाइटल 'मर्दानी' भी बहुत कुछ कहता है। ये शब्द भाषा पर पुरुषों के प्रभाव का सशक्त उदघोष करता है। मर्दानी यानि ऐसी औरत जिसमें पुरुषों जैसा बल हो। इस शब्द में पुरुष का श्रेष्ठताबोध ध्वनित होता है। ' खूब लड़ी मर्दानी थी, वो तो झांसी वाली रानी थी', ये पंक्तियां हम सभी बचपन से ही सुन रहे हैं। यानि लक्ष्मीबाई की वीरता और युद्ध कौशल उनके मर्दानी होने से ही प्रमाणित होता है। यदि शब्द साम्य की दृष्टि से देखें तो जिन पुरुषों में औरतों के कोमलता आदि गुण होते हैं, उनके लिए 'औरतानी' शब्द बनना चाहिए। लेकिन, हिंदी या उर्दू में ऐसा कोई शब्द चलन में नहीं है। हालांकि औरतपन तो है, जो पुरुषों के लिए एक गाली है। ये औरतपन स्त्रैण जैसा ही है। भाषा का ये चरित्र बताता है कि स्त्रैण होना बुरा है और मर्दानी होना ताकत का प्रतीक है।
शब्द कैसे यात्रा करते हैं और कौन सा अर्थ ग्रहण कर लेते हैं, इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। मदलन, 'फर लो' एक कानूनी शब्द है जो किसी व्यक्ति के जेल में रहने और वहां से अल्पकालिक मुक्ति के साथ जुड़ा है। लेकिन आम लोगों के बीच इसका अर्थ एकदम भिन्न है। कौरवी-हरयाणवी में सामान्य बातचीत में कहा जाता है, ' वो बड़ी फरलो मारता है, उसकी फरलोबाजी का कोई मुकाबला नहीं है।' इस वाक्य में फरलो का अर्थ शेखी बघारने के रूप में दिखता है।