रसिया के चित्रकार उतार रहे पहाड़ का जनजीवन

||रसिया के चित्रकार उतार रहे पहाड़ का जनजीवन||



देहरादून जनपद के अन्र्तगत काया लर्निंग सेन्टर तिलवाड़ी-भाववाला में आजकल विदेशी चित्रकारो ने डेरा डाला हुआ है। यह लोग देहरादून के पछुवादून ग्रामीण क्षेत्रो की संस्कृति व प्रकृति को अपनी कलम से कैनवास पर ऊतार रहे है। खास यह है कि रसिया का यह 12 सदस्यीय दल भविष्य में इन चित्रो की प्रदर्शनी अपने देश में करेंगे। यही नहीं वे अपने चित्रों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के गुर बतायेंगे, तो वहीं सामाजिक समरसता की संस्कृति को रेखांकित करेंगे। वे उत्साहित हैं कि उनके इस अभियान के साथ ग्रामीण स्वस्र्फूत जुड़ रहे हैं।   


ज्ञात हो कि ईको आर्ट विषय को लेकर काया लर्निंग सेंटर इन दिनों गुलजार है। जहां पर ये विदेशी चित्रकार अपने विषय को लेकर देर रात्री तक मशगूल रहते है। जो उन्हे दिनभर में दिखता है, उसे वे अगले दिन तक कैनवास पर उतार देते है। विशेषकर वे देहरादून के पछुवादून ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को रेखांकित कर है। रसिया के 12 सदस्यीय दल का नेतृत्व कर रहे सत्य ने बताया कि इस दौरान अलग अलग देशों से आये 120 चित्रकार भारत के ग्रामीण क्षेत्रो में ग्रामीण परिवेश को उकेरने का काम कर रहे है। यहाँ रसिया, कजकिस्ता, यूक्रेन, उजकिस्तान व कुछ भारत के भी चित्रकार इस अभियान में शामिल है। यहां देहरादून में इस कार्यक्रम को काया लर्निंग सेंटर तिलवाड़ी ने आयोजित किया है। इस दौरान दिल्ली की श्रीयांशी, दिपक कुमार जैसे चित्रकार भी इस अभियान के हिस्से बने हुए हैं।


उल्लेखनीय हो कि चित्रकारो का यह दल ग्रामीण जन-जीवन को समझ रहा है। इसके साथ-साथ जो उन्हे दिख रहा है या महसूस हो रहा है उसे वे चित्रों में ढाल रहे है। कह सकते हैं कि यह शुद्ध रूप से आर्टिस्ट रेजीडेंसी प्रोग्राम है, जिसे सृजनशीलता का कार्यक्रम भी कह सकते है। अर्थात काया लर्निंग सेंटर रसिया से आये इन आर्टिस्टो को ग्रामीण जन जीवन से रूबरू करवा रहा है। इधर इन चित्रकारों का कहना है कि वे यहाँ के परिवेश पर चित्र बनाएंगे और अपने-अपने देशों में प्रदर्शनी करेंगे। वे बहुत ही प्रभावित हैं कि देहरादून का ग्रामीण क्षेत्र बहुत ही सुंदर है, साथ ही यहाँ का अतिथ्या सत्कार भी उन्हें देहरादून रूकने के लिए बाध्य कर रहा है। बताया कि यहाँ पर महिलाओं का पहनावे या सजावट उन्हें बहुत ही प्रभावित कर रही है कि यह महिलाओं के सम्मान का तात्पर्य समझा रहा है। जबकि ऐसी मेहमाननवाजी जैसी संस्कृति उन्होंने कहीं भी नही देखी है। वे अपने अनुभव को बांटते हुए कह रहे थे कि गांव में लोगो ने उन्हें फोटो खींचने या अन्य कार्यो के लिए सहज ही मदद की है, यही वजह है कि उन्होंने कई प्रकार के चित्रों का सृजन किया है।


ख्यातिलब्ध चित्रकार जगमोह बगाणी ने कहा कि वे भविष्य में हर वर्ष काया लर्निंग सेंटर के साथ मिलकर आवासीय चित्रकारी शिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेंगे। ताकि नए कलाकारों को चित्रकला के लिए एक मजबूत प्लेटफार्म मिल सके। काया लर्निंग सेंटर के संयोजक व सामाजिक कार्यकर्ता सन्तोष पासी ने बताया कि चित्रकला शिक्षण कार्यक्रम के तहत यह दल अगले सात दिनों तक पछुवादून के ग्रामीण परिवेश को समझेंगे और कैनवास पर उतारेंगे। जिसकी प्रदर्शनी 19 दिसंबर को काया लर्निंग सेंटर तिलवाड़ी-भाववाला में होगी। इस दौरान स्थानीय स्कूली बच्चे, कलाकार इन लोगो से मुखातिब भी होंगे। 




चित्र ही विरासत है


दुनियाभर के 120 चित्रकार इन दिनों भारत के ग्रामीण परिवेश को समझ रहे है और यहां के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को कैनवास पर उतार रहे है। प्राकृतिक व सांस्कृतिक परिवेश को समझना आज की जरूरत है। साथ ही इसे संरक्षित करने की भी उतनी ही आवश्यकता है। चित्र इस हेतु सरल माध्यम है। जब ये चित्र रूप लेंगे तो भविष्य में हम अपनी माटी से जुड़े रहेंगे। यही नहीं सृजनशीलता और विरासत संजोने के लिए भी यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम है।
-ः जगमोहन बंगाणी प्रसिद्ध चित्रकार