बनते बिगडते रिश्ते


||बनते बिगडते रिश्ते||



रिश्ते जो बंध जाते है,  या बांधे जाते हैं,
किसी आस में ।


पल भर में पराये भी अपने हो जाते हैं, 
विश्वास में ।


विश्वास की मज़बूत डोर, रिश्तों को मजबूत बनाती है, 
बस कुछ इसी तरह जिंदगी बिताई जाती है ।


कभी-कभी होती है नोक झोंक भी,
कहीं मन भी दुखित होने लगता है ।


बस एक तमाशा है जिंदगी,
सोचकर व्यथित रहने  लगता है ।


फिर कही आवाज़,  विश्वास की सुनाई देती है, 


सब सही है, सही होगा, इसी उम्मीद पर,
ये जिंदगी बिताई जाती है ।


कभी कसमे कभी वादे, कभी रस्मों की बातें हैं, 
समय के साथ ढलती हुई,इस उम्र की बातें हैं  ।


देखो कैसे बनते बिगडते हैं रिश्ते, 


कि झूठी बातों को अक्सर, सच की चादर से ढकते हैं।
होता है दफ़न सच, झूठ की ताकत आजमाईश होती है ।


कुछ इसी तरह जीवन की नुमाईश होती है ।


धीरे-धीरे ही सही, नफ़रत जताई जाती है,
बस इसी तरह ये जिंदगी बिताई जाती है ।