आज़ाद हूं
ये उन दिनों की बात है, ये उन दिनों की बात है।
जब गुजर रहा था देश, गुलामी के दौर से,
हर कोई था त्रस्त, अत्याचारों के शोर से।
नित, बलिदान को तैयार थी, देशभक्तों की टोलियां,
बच्चा-बच्चा बोल रहा था, इंकलाब की बोलियां।
आंदोलनों का बोलबाला, फिरंगी दूर भगाने को,
इक बालक भी चल पड़ा ,मां की जयकार लगाने को।
मात्र आयु 14 बरस थी, मगर जोश भरपूर था।
जंजीरों में जकड़े रहना, ना उसको मंजूर था।
पन्द्रह कोडों की सजा मिली, हंसते-हंसते थे लगवाये,
जेल मेरा घर, तात आजादी, खुद आजाद वो कहलाये।
कह दिया फिरंगी को सीना तान,
अब ना आऊँगा हाथ तुम्हारे, कितना भी जोर लगा लेना,
आज़ाद हूं आज़ाद रहूंगा, मन में बात बिठा लेना।
ललकार लगाते नवयुवकों को,चलो अपना फर्ज निभाओ,
लहू रगों में गर बहता हो, मातृभूमि पर मर मिट जाओ।
बेटे हो तुम सच्चे मां के, आज अभी तैयार रहो,
कर बैठों कुछ काम अनूठे, खाली ना बेकार रहो।
पकड़ सके ना फिरंगी, उनको नाको चने चबा दिये,
गैरों की क्या बात कहे, कुछ अपनों ने ही दगा किये।
साथियों संग घिरे आजा़द, हो रही गोलियों की बौछार,
अंतिम गोली पास बची जब, कर डाली अपने भाल के पार।
शत-शत नमन इस देशभक्त को, व्यर्थ नहीं बलिदान गया,
आजा़द रहे वो जीते जी,अर देश को आजा़द किया।