हम धरती के आंगन को थोड़ा बुहार सकें


||हम धरती के आंगन को थोड़ा बुहार सकें||


प्रकृति के शानदार आंगन में हम मात्र एक जीव हैं। हमने खुद को श्रेष्ठ खुद बोल दिया। किसी और जीव ने हमको ये उपाधि नहीं दी है। हमने प्रकृति प्रदत्त गुण से चीजों को बिगाड़ना और कब्जा करना सीखा।आज मानव की इन्हीं हरकतों से धरती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। मौत दरवाजे पर आ खड़ी है और तुम अभी भी लूट छिनौती बदमाशी से धन जमा करने में लगे हो। अगली पीढियाँ हमको बहुत दोष देंगी। तुम्हारे पास मौका था कि तुम दुनिया बेहतर बनाकर जा सकते थे लेकिन तुमने अपने लालच में इसे और खराब करके दिया।


यकीनन जो आवाजें हम तक सुनाई दे रही वे ऐसी ही हैं। हम फिर कहते हैं जितने भी पर्यावरण के पुरुष्कार हैं। सब खुद रख लो। जितने अख़बार हैं। टेलीविजन हैं सबमें अपने नाम का शोर करवा लो। तुम खुद को सबसे महान लिखवा लो। हमको इनमें से कुछ भी नहीं चाहिये। हमको एक जीवन मिला है। अभी कुछ सामर्थ्य है कि हम धरती के आंगन को थोड़ा बुहार सकें। अपनी पीढ़ी का जो भी फर्ज है उसे अपनी तरह पूरा कर सकें। हमको उन धरतीपुत्रों का साथ चाहिए जिनको ये प्रकृति अपनी लगती है। जिनको हमारा सीमित दायरा खुद का घर लगता है।


जंगल पर्वत खेत नदियाँ और इसके इर्द गिर्द बसे वे मानव जिनकी आजीविका से लेकर मुक्ति तक इसी प्रकृति पर आधारित है। उनके हाथ उठें अपने गंगा हिमालय से सजे इस गिरी प्रदेश को सजाने को। हम हरेक बात में बहुत सीमित अति न्यून और क्षमता विहीन हैं। तब भी इतना कर लें कि आने वाली पीढ़ी को अपने हिस्से की गंगा और हिमालय साफ समृद्ध उदात्त देकर जायें। हम न सेवा करने की मानसिकता से कार्य करना चाहते हैं। न हम कोई पर्यावरण के जानकर हैं।


हम अपने कार्य के कोई दस्तावेज भी नहीं रखते क्योंकि ये हमारा घर जन्म स्थान पालन स्थान मुक्ति का स्थान है। ये हमारी आने वाली पीढियों की विरासत है। हम किसपर अहसान करेंगे? हमने जितना प्रकृति से लिया है। जितनी उसने हमारी सेवा की है उसका अंशमात्र भी हम कुछ कर सकेंगे तो वास्तविक पूजा यग्य साधना होगी। हम नदी पर्वतों के लोग आज शाश्वत सत्य को झुठलाने लगे हैं कि ये जीवन एक यात्रा है।


यात्रा के दौरान सफाई रखनी जरूरी है और अपने यात्रा पथ को सुगम बनाना जरूरी है। आज हमारी बात को गम्भीरता से न लेकर हमारा उपहास करने के बाद भी यदि समझ आयेगी कभी तो भौतिक निरर्थकता के साथ यही कर्तव्य बोध जगेगा। प्रिय परिजन तब तक देर न हो जाये।13*2*20