पौरी यानि एकत्रित करने वाली आवाज 

|| पौरी यानि एकत्रित करने वाली आवाज|| 



बड़कोट डायरी, भाग- 7




आज शाम बड़कोट गांव में अपने दोस्त बिरजू के घर उसके साथ चाय पी रहा था, की गांव के थौल से रंवाल्टी भाषा में पूरे गांव के लिए आवाज लगी। जिसे गांव में पौरी कहा जाता है। हम सब चुपचाप पूरी सूचना सुनते रहे। मैंने अपनी याददाश्त पर जोर देकर बिरजू से पूछा, "ये क्या रतनाया दास है?
उसने बोला,


"नहीं, ये उसका लड़का है, रतनया अब बूढ़ा हो गया अब उसका ये काम उसका बेटा संभालता है।
मैंने फिर पूछा,


"इसको ये करने को कौन कहता है"?
"इसका हैड आफिस कहाँ हैं"?


फिर बिरजू ने बताया, "गांव के पंच इसको ये सूचना गांव में सब जगह बताने को कहते हैं। पहले ऊंचाई पर बने गढ़ से गांव में आवाज लगाई जाती थी लेकिन बाद में गांव फैलने से गढ़ और थौल से आवाज लगती है"।


ये नगरपालिका बड़कोट का वो खूबसूरत हिस्सा है जो राजस्व के रिकार्ड में पहले कभी गांव था। सोचिये इस गांव की बुनियाद कितनी गहरी रही होगी जो आज भी यहां पंच व्यवस्था कायम है।


सन 1930 में बड़कोट गांव की इसी पंचायत में फैसला लिया गया। रंवाई के हर गांव में पौरी की धै लगवाई गयी, "टिहरी रियासत के इस काले कानून के खिलाफ 30 मई को समस्त रवांई की एक बड़ी जन पंचायत बड़कोट के तिलाडी सैरे में बुलाई जाये"। जिसमें रंवाई के गाँवों के पंचों के साथ जनता को भी बुलाया गया।


तब ये धै लगाने वाले पौरी, आज के धै लगाने वाले रतनया दास के वही पूर्वज थे जो इस गांव के मूल नागरिक हैं। जो गढ़ में डंडाल और गुलाल रावतों के बसने से पहले गढ़ के निचे रहते थे। इस बाजगी समाज के पूर्वजों की तिलाडी आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे तब के संचार माध्यम थे जब सड़क परिवहन, बिजली, इंटरनेट का युग नहीं था। गांव के बाजगी गांव की एक धार से दूसरी धार के गाँवों तक ढोल सागर की कूट भाषा में ढोल रणसिंगे बजाकर संदेश पंहुचा देते। धार की दूसरी तरफ के गाँवों के बाजगी इसका अर्थ गांव वालों को समझाते और संदेश को पुनः ढोल और रणसिंगे से आगे के गाँवों तक पंहुचाते जाते। इस तरह अल्प समय में व्यापक क्षेत्र तक सारी सूचना सुरक्षित रूप से पंहुच जाती। और कुछ ही दिन में रंवाई की हर पट्टीयों की बड़ी बड़ी बैठकों से तिलाडी में होने वाली महापंचायत को भरपूर समर्थन मिलने लगा। जिनमें गोडर-खाटल और मुगरसंती पट्टी की बैठक चांदडोखरी में, बनाल पट्टी की बैठक देवडोखरी में, और सर-बडियार और ठकराल की थापला में हुई बैठकें महत्वपूर्ण बताई जाती हैं।