शिव हमारी स्मृतियों में हैं। हमारे जीवन का भाग रहे हैं।

||शिव हमारी स्मृतियों में हैं। हमारे जीवन का भाग रहे हैं||


बचपन में हम शिव रात्रि के दूसरे दिन मुक्तेश्वर महादेव के दर्शन करने जाते थे। पहले सुबह जटा गंगा में स्नान करना होता। जहाँ इलाके भर के गित्येर,भगनौल जोड़,झोडे चांचरी,लोक गीतों के जानकर पता नहीं कब से जमे होते। कोई बताता कि 3 दिन से हैं आगे 4 दिन रहेंगे। हमको बस थोड़ा सुना और चली बन्दर टोली अपनी मंजिल मुक्तेश्वर को। मुक्तेश्वर की खड़ी चढ़ाई में हजारों लोग आते जाते थे। कोई फल खिलाता तो कोई गजक। लेकिन हमको चैन कहाँ?


हमको चौथ की जाली जाना होता। सुना था कि वह चट्टान के अंतिम कोने में बना गोल छेद शिव के बोलने पर हरज्यू ने अपनी फौड़ी से बनाया है और उससे अपनी फ़ौज ता फिर जात्रा निकाल ले गये। विकट चट्टान पर ये भी मान्यता थी कि जिस महिला के औलाद नहीं होती वो पहली सम्पूर्ण रात्रि जगराता करती है। हाथ में दिया लेकर। शायद ये जगराता तो नीचे शिव जटा के गधेरे वाले मन्दिर में भी होता था। मुक्तेश्वर महादेव मन्दिर में औरत रात भर हाथ में दिया लेकर खड़ी साधना करती। वो गिर न जाये उसकी मदद के लिये परिजन खड़े होते और उसको मदद भी करते।


दूसरे दिन फिर सुबह पूजा पाठ स्नान ध्यान के बाद चौथ की जाली में उसे ऊपर से नीचे नीचे से उपर करवाया जाता। उसमें भी कुछ बलिष्ठ लोग मददगार रहते। तब सुना बे औलादों को सन्तान की प्राप्ति होती। अब हमको तब कुछ पता नहीं होता। अपने को देखना होता कौन कौन औलाद माँग रहे और फिर थोड़े शिव जी को हाथ जोड़े। जरूरत या अवसर मिला नीचे बुरांश के खोखले में हाथ डालकर कुछ चढ़ावे के सिक्के खींचे और मोहन बाजार जाकर जलेबी में छककर भूख मिटाना। शाम हमारे किस्सों की भरी होती जो अगले साल तक चलते।


फिर कुछ बड़े हुए तो हमारे लड़कों की टोली छोटा कैलाश यात्रा करने निकल जाती। पैदल यात्रा में हम पहली रात शिव जटा और फिर ऊपर छोटा कैलाश की चोटी में शिव दर्शन करते। वहाँ से हैडाखान उतर जाते। कद्दू का हलवा या फराल तभी खाई हमने। बाबा लोग प्यार से भजन गाते और फराल खिलाते। यही शिव हमेशा जीवन में उतरे। औघड़,सदा भक्तवत्सल,सबके समान थोड़े नशे में और मृत्युंजय। अब बचपन तो कब का चला गया। शिव के प्रति आस्था आज भी वही है। यूँ कहें बढ़ गयी। अब जटा गंगा और शिव के चरणों से निकलने वाली गंगा के प्रति कुछ कर सकें तो आने वाली पीढ़ियों को ये नदी शिव धाम ठीक सौंप सकेंगे।