||प्यार के बहाने से||


||प्यार के बहाने से||


हर बार छला उसने मुझे, प्यार के बहाने से।
हर बार छली मैं, उसके प्यार से ।
उसे दिखता था आकर्षक, मुझे सिर्फ प्यार।
उसकी ख्वाहिश थी मैं, मेरी दुनिया वही।
बड़ी सफाई से मुझे बहला दिया करता,
मैं जानकर भी अंजान बनी रहती ।
झूठ बोलने का हुनर दमदार था बहुत,
अभिनय का अनुभव भी खूब ।
किन्तु फिर भी नहीं छिपा सका,
मुझसे बहुत कुछ, जो चाहा उसने।
मैं लहू-लुहान थी,आहत, परेशान,
हैरान, किन्तु खामोश ।
आखिर ये मेरा ही विश्वास,
जिसे खुद मैंने ही रोपा।
न मालूम था कि जमीन है नहीं मेरी,
जिस पर प्रेम का बागबां बनाने चली।
इसीलिए हर बार, हर बार छली गयी