स्त्री और दिनचर्या


स्त्री और दिनचर्या


मैं बुहारूंगी आँगन सुबह सवेरे,
उगाऊँगी कुछ और पौधे क्यारियों में।
काढूंगी बेटी के बाल एक नए तरीके से,
समेटूंगी बिखरे बिस्तर करीने से।
सुबह इस सबके लिए बहुत छोटी होगी,
सीखूंगी तरीके इमली से दस तरह की चटनियाँ बनाने के।
पढूंगी अख़बार में, कि कैसे रखा जा सकता है,
चींटीयों को घर से दूर।
झांकूगी पड़ोस वाले घर में बेमतलब,
बतियाऊंगी माँ से बे-सिर पैर की बातें।
और इस तरह दोपहर ढल जाएगी,
शाम ढले से जुट जाऊंगी रसोई में।
और बच्चों की किताबों में ताका-झांकी के बीच,
देख लूंगी एक-आधा सास-बहु विलाप।
देर रात थकन से निढ़ाल सो जाऊंगी,
तुम बताओ?
मेरे बिना तुम कैसे गुज़ार पाओगे एक भी दिन?