अभिनन्दन : वीर तुम बढ़े चलो
||अभिनन्दन : वीर तुम बढ़े चलो||

 

संतोष एवं श्लाघा का विषय है कि हमारे लघु राज्य उत्तराखण्ड की पुलिस को महिलाओं के साथ सद्व्यवहार के मामले में नम्बर 1 पाया गया है । यह पुलिस की प्रायोजित रपट नहीं , अपितु " सेंटर फॉर स्टडीज़ ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ " का निष्कर्ष है , जिसकी निष्पक्षता और साख असन्दिग्ध है ।

 

मेरा स्वयं का अनुभव है , कि हमारे प्रदेश की पुलिस , न केवल महिलाओं , अपितु सम्पूर्ण समाज के प्रति अपेक्षा कृत अधिक संवेदनशील एवं मानवीय है । मेरा पुलिस से चोर और कोतवाल जैसा रिश्ता रहा है । कभी पुलिस चोर , तो कभी मैं ।एक रिपोर्टर की नौकरी करते मैंने सबसे लंबा समय पुलिस बीट का रिपोर्टर रहते गुज़ारा है । चिपको और टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान पुलिस से अनेकों भिड़ंत झेली हैं । पुलिस के हाथों अरेस्ट भी हुआ , और लाठी भी खाई । शराब के नशे में कई बार पुलिस ने मुझे घर छोड़ा , और एकाधिक बार थाने भी बिठाया ।

 

जिस वेतन और परिस्थितियों में हमारी पुलिस काम करती है , वह असामान्य है । जयपुर में क्राइम रिपोर्टर रहते मैंने एक रिपोर्ट बनाई थी । उसका निष्कर्ष यह था कि आईजी काम & कूल रहता है । मृदुभाषी होता है , क्योंकि उसका वेतन यथेष्ट है , और काम का समय सीमित है । सिपाही चिड़चिड़ा और गालीबाज होता है । लठ बजाता है , क्योंकि उसका वेतन कम और काम असीमित है । उसका वेतन भी बढाइये और सम्मान भी । काम के घण्टे तय कीजिये । वह स्वतः ही भद्र हो जाएगा । पुलिस कर्मियों को समय समय पर मानवाधिकारों के सत्र जॉइन कराइये । भारत मे प्रदर्शनकारियों पर डंडा की बजाय ठंडा पानी फेंकने की तरकीब मेरे पिता ने सर्व प्रथम इंदिरा गांधी को सुझाई थी , जब वह यूरप से यह देख आये ।

 

एक बार मैंने भी यूरप में ट्रैफिक रूल का लंघन किया । मैं आदतन बाएं चल रहा था , जब कि वहां नियम दाएं चलने का है । पुलिस मुझे सम्मान सहित कार में बिठा होटल ले गयी , और मेरी बजाय होटल पर जुर्माना किया , जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय लाइसेंस न होने पर भी मुझे बाइक दी ।

 

बहरहाल , मैं अपनी मित्र पुलिस का अभिनन्दन करता हूँ , और उनसे और निखरने की अपेक्षा करता हूँ।



लेखक जानमाने वरिष्ठ पत्रकार हैं।