रमेश कुड़ियाल वरिष्ठ पत्रकार है। इसके अलावा वे समाजसेवा के साथ-साथ साहित्यकार है। वर्तमान वे अमर उजाला बनारस संस्करण में Senior su-editor के पद पर कार्यरत है। उन्होने अक्षर और उसकी महता को अपनी कविता से समझाने का बहुत ही नायाब तरिका बताया है। प्रस्तुत है उनकी कविता।
||अक्षर और अर्थ||
एक अकेले अक्षर काकोई अर्थ नहीं होताएक अक्षर के साथदूसरा मिलते ही वहलेता है शब्द का आकारकोई अर्थ लेता हुआ
शब्द शब्द मिले तोबन गया एक वाक्यवाक्यों से मिलकरबनी एक कविताकविता से निकलीजीवन की कहानीकहानी में शब्दों केअर्थ गढ़ने लगे नए मुहावरेहोने लगी खींचतानकहानी में जब जबशब्दों ने किए समझौतेतब तब सुखांत हुई कहानीवरना कहानी का हुआ दुखांतशब्दों अर्थ मत खोनाअर्थ खोने सेअर्थ का अर्थ नहीं रह जाएगावह फिर अक्षर रह जाएगाअकेले नितांत अकेलेअकेले का अकेलापनओढ़े रहता हैं मैली कुचेली चादरमानाकिसी अक्षर का कोई अर्थ निकलता भी होलेकिन शब्द बने बिनावह भी प्रकाशमान नहींप्रकाशित होना चाहते हो तोअक्षर अक्षर मिलकरबनाओं कोई नया वाक्यनए वाक्यों से बनाओंएक नई कविताएक नई कहानीएक नई किताब
उसमें ही जिंदा रहेंगेअक्षर शब्द और उनके अर्थयही अर्थ देगाजीवन में नया उजाला