कैद

अशिंका कक्षा 11 की परीक्षा पास करके कक्षा 12वीं में प्रवेश कर ही रही थी कि इतने में कोरोना महमारी का संकट बढ गया और लाॅकडाउन हो गया। समय का सद्पयोग करती हुई इस छात्रा ने एक कविता का सृजन किया, जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है। वैसे अशिका का गायन भी उम्दा किस्म का है और साथ-साथ शस्त्रीय संगीत भी सीख रही है।


||कैद||




कैद ना होकर भी कैदी हूं मैं
कुछ ना कर सकने को बंधी हूं मैं,
तमन्ना है कुछ कर जाने की
आसमान में उड़ जाने की,
पर क्या है जो मुझे रोक रहा है,
कुछ भी करने को टोक रहा है
उठे कदम गरमंजिल को,
तो कहीं अंधेरा घोर रहा है।
अजीब एक डर है मन में
कैसे उसे हटाऊं मैं ,
अपनी इन शंकाओं को, कैसे दूर भगाऊं मैं।
पर अब नहीं डरना मुझे, जितना डरना था डर चुके।
है अब नहीं रुकना मुझे ,जितना रुकना था रुक चुके।
बढ़ाकर कदम मंजिल की ओर
खोल पंख अंबर की ओर,
आजाद पंछी हूं मैं खुले गगन की
मत रोको,
जाने दो मुझे मेरे गंतव्य की ओर।
अब ना कैदी हूं और ना बंधी हूं मैं
उड़ने दो मुझे मेरे सपनों की ओर।