नजरबन्दी में रहकर ही छोड़ा मलारी ने प्राण


||नजरबन्दी में रहकर ही छोड़ा मलारी ने प्राण||


कहानियों का अपना एक अद्भुत संसार है, इसलिए दर्शक हो या श्रोता, दोनो को ही कहानी में ग्लैमर का तड़का चाहिए। दुनियां में इस प्रकार की बहुत सारी कहानियां लिखी गई, जिन्हें समय समय पर पुनर्प्रकाशन करवाया जाता है। ये वे कहानियां हैं, जिसमें प्यार-मुहब्बत की असीमित संघर्षगाथा है। ऐसी ही एक लोक कथा को नाटक का रूप दिया है प्रसिद्ध साहित्यकार महाबीर रवांल्टा नें। हालांकि कहानी सजीव है, पर अब तक उसे लिपिबद्ध नहीं किया गया था। 


यमुना-टौंस घाटी में गजू भेड़ाल या गजू मलारी के नाम से ख्यात कहानी आज तक लोक गीतो में ही सुमार रही है, जिसे लोक कलाकार अपने अपने ढंग से प्रस्तुत करते आये है। अर्थात इस कहानी पर सौ से भी अधिक प्रकार के गीत एवं छोड़े आदि गाये जा चुके हैं। यानि गजू-मलारी पर आधारित इस लोक गीत के बेसुमार श्रोता भी है।


गजू-मलारी पर आधारित कहानी के लोक गीतों को अब शब्दांे में गढा गया है, वह भी एक सम्पूर्ण नाटक के रूप में। अब यह लोक कहानी ‘‘एक प्रेम कथा का अन्त’’ के नाम से नाटक के रूप में देखी जा सकती है। श्री रवांल्टा ने नाटक को लिखने से पहले यथा स्थान का भी भ्रमण किया है। गजू-मलारी से संबधित प्रमाणक एकत्रित भी किये है। इस नाटक में प्रेम की वह पराकाष्टा बताई गई है कि जिसमें एक तरफ नायिका के पिता यानि मलारी के पिता बेटी के मोह माया में कटिबद्ध है, तो दूसरी तरफ समाज की उन्हे बड़ी परवाह है। इस कशमकश में वे उम्र के अन्तिम पड़ाव में अपने को ठगा सा महसूस करता है। 


इस ‘‘प्रेम कथा का अन्त’’ नामक नाटक में लेखक प्रेम की उस डोर को शब्दो में ऐसे पिरोते हैं कि एक बारगी हर किसी के आंखों में आंसू छलक आते है। क्रोध आता है। दयाभाव प्रस्फुट होते हैं आदि। नाटक तब नया मोड़ लेता है जब मलारी के पिता को समाज की बेड़िया जकड़ लेती है। उसे क्या पता था कि मलारी जहां ब्याही गई, वहां उसका मन नहीं लग रहा है। लगता भी कैसे? क्योंकि मलारी के पति दूर जंगल से तीन या छः माह में एक बार घर आता था। क्योंकि वह तो शुद्ध रूप से भेड़ पालक ही था। जब वह घर आता था, तो उसे मलारी की कोई चिन्ता होती ही नहीं थी। वह तो अपने दुख-सुख की बातें अपनी भाभी या मां को बताता था। हालांकि कुछ दिन तक मलारी इन्तजार करती रही कि वह एक बार मलारी को मिलेगा ही, आखिर उसने मलारी से ब्याह रचाया है।


लेखक द्वारा नाटक में बताया गया कि उन दिनों मलारी की उस इलाके में ही नहीं वरन् दूर-दूर तलक सुन्दरता की काफी चर्चाऐं थी। होनी भी क्यों नही, सच में सुन्दरता की वह जीती जागती मूरत थी। एक अन्तराल में मलारी ने अपने मां-बाप को जता दिया था कि वह ससुराल में किसके सहारे रहेगी? अब तक वह अकेली ही कई राते गुजार चुकी है। यहां तक कि उसकी अपने पति से बातें तक नहीं हो पा रही है। इस सब को लेखक ने जिस तरह से कागज पर उतारा, मानो ऐसा लगता है कि मलारी अपनी जवानी के दिनों को मोम की तरह चिन्ता में पिघला रही है।


नाटक में लेखक अगले दृश्य में बताते है कि इस जद्दोजहद में मलारी की एक दिन अपने ही गांव के एक खास त्यौहार में गजू भेड़ाल से आंखे चार हो गई। इस मिलन में मलारी की छोटी बहन सलारी ने भी उसका साथ दिया। क्योंकि मलारी की मनोदशा को सलारी अच्छी तरह से जानती थी। वह भी चाहती थी, कि मलारी दीदी पर ब्याह का बट्टा तो लगा हुआ है, पर नाममात्र का। वह जिस घर में ब्याही गई थी, वहां भी मलारी की कोई अहमत नहीं थी सिवाय एक सदस्य के। इधर मलारी के पिता उस क्षेत्र के जाने-माने चेहरे थे, अर्थात थोकदार थे। गांव-क्षेत्र में उनका एकछत्र राज था। बड़ा नाम व रूतबा था उनका। इस लिहाज से उन्होने मलारी का ब्याह भी ऐसे ही थोकदारों के घर में करवाया। बेशक मलारी के ससुराल पक्ष थोकदारी होगा, मगर मलारी के लिए वह घर सदैव प्रश्नचिन्ह खड़ा करता था। इसलिए कि मलारी के पति ने कभी भी मलारी को जानने की कोशिश तक नहीं की। जबकि मलारी की सुन्दरता का उस क्षेत्र में कोई विकल्प ही नहीं था।
नाटक के अगले दृश्य चैंकान वाले है। सवाल खड़े करने वाले है। पुरूष प्रधानता के अमानवीय व्यवहार जैसे दृश्य समाज को फिर से कटघरे में खड़ा करते हैं।


मलारी और मलारी के पति का ना मिलना। मलारी को गजू भेड़ाल से प्यार हो जाना। मलारी के पिता को गजू-मलारी के प्रेम-प्रसंग से नागवार गुजरना। गजू भेड़ाल से पूरे क्षेत्र को नफरत होना। गजू-मलारी के प्रेम-प्रसंग की चर्चा गांव-गांव व धारा-पन्यारों तक में सरेराह होना। साथ-साथ समाज और परम्परा की बेड़िया मलारी के पिता को बार-बार जकड़ती जैसे दृश्यों को लेखक ने ऐसे शब्दो में बुना, जिसमें समाज की कई कुरूतियों का पर्दाफाश स्पष्ट दिखता है। यही नहीं प्रेम की वह डोर, जिस डोर ने तब सांसे ली जब मलारी का अन्तिम समय आया और वह गजू भेड़ाल के बिना अपने प्राण नहींे छोड़ पा रही थी। 


गजू-मलारी के प्रेम-प्रसंगो के इतने चर्चे थे कि गजू को मलारी से मिलने के लिए कई यात्नाऐं झेलनी पड़ती थी। सो उस वक्त के समाज को गजू-मलारी का प्रेम-प्रसंग बिल्कुल ही स्वीकार नहीं था। इसलिए वे कभी भी एक परिवार के रूप में नहीं बंध सके। अन्ततः मलारी को पाबन्दियों की बेड़ियां दे दी गई। कई वर्षो तक मलारी नजरबन्दी मे रही और आखिर वह गजू भेड़ाल के गम में प्राण त्याग देती है। यहां भी लेखक के शब्दशिल्प की अद्भुत मिशाल है। जब मलारी अन्तिम सांसे गिन रही होती है और मलारी के प्राण निकलने में गजू का इन्तजार कर रही होती है। जैसे गजू को मलारी के पास लाया जाता है, गजू को देखते ही मलारी इस मायावी दुनियां को अलविदा कह देती है।


नाटक में कई दृश्य ऐसे है, जो बार-बार समाज की कु-परम्परा पर सवाल खड़ा करते हैं। एक बार पूरा समाज गमगीन हो जाता है। एक बार मलारी के पिता इतने दुखी हो जाते हैं कि वे अपने प्राण त्यागने को तैयार हो जाते है। पर उनके सामने उनका बड़जात्य रूतबा आ जाता है। मलारी के दुख में उसकी बहन सलारी ने जो साथ देने का अदम्य साहस दिखाया उसीके बलबूते मलारी गजू के बिना कई वर्षो तक नजरबन्दी में जिन्दा रही।


इस नाटक में वियोग, हास्य, प्रेम-प्रसंग, संघर्ष और कूटनीतिक लड़ाईयों का बेजोड़ संगम दिखाने में लेखक ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। किन्तु जिस गजू भेड़ाल के बहाने मलारी पर पूरे समाज ने थू-थू की, हालांकि वह तो भीतरी के खसिया परिवार से ताल्लुक रखता था, जैसा लेखक ने नाटक में प्रस्तुत किया है। फिर भी थोकदारो को गजू का यह व्यवहार नागवार गुजरा। जबकि उस क्षेत्र में महिलाओं की स्वतन्त्रा पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। अन्ततः थोकदारो की नाक के सवाल पर मलारी मुहब्बत के प्रति शहीद हो गई। 


क्योकि नाटक में गजू का परिचय एक बहुत ही सुन्दर युवा, भेड़ पालक और योद्धा के रूप में करवाया गया है। फिर भी वहां का समाज मलारी और गजू के प्यार को स्वीकृति नहीं दे रहे थे। जबकि जहां मलारी ब्याही गई थी, वह परिवार थोकदारो के समकक्ष ही गिने जाते थे। नाटक कहता है कि मलारी और गजू के प्यार को समाज ने तिलांजलि इसलिए दी कि मलारी थोकदारो की बेटी थी और गजू थोकदारो का बेटा नहीं था। पर इसके अलावा गजू का अन्य परिचय क्या था जो आज भी पहेली बनकर रह गया है।


नाटक की इस पुस्तक में 67 पृष्ठ अंकित हैं, जिन्हे लेखक ने 14 दृश्यों में ढाला हैं। नाटक को संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड ने समय साक्ष्य से प्रकाशित करवाया है। यमुना-टौंस घाटी का यह पहला नाटक है जो किसी लोक कथा पर लिखा गया है। 


कुलमिलाकर पंजाबी कहानी हीर रांझा, सेक्सपियर की रोमियो जूलिट, अरब देश के प्रेमी लैला मजनू जैसी अमर प्रेम कहानियों में गजू मलारी की यह प्रेम गाथा कमतर नहीं कही जा सकती है।
पुस्तक - एक प्रेम कथा का अन्त (सम्पूर्ण नाटक)



लेखक - महाबीर रवांल्टा
समीक्षक - प्रेम पंचोली
प्रकाशक - समय साक्ष्य प्रकाशन, फालतू लाईन, देहरादून
सर्वाधिक सुरक्षित - संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड सरकार
मूल्य - 75 रू॰ मात्र