||ऑनलाइन पढ़ाई : दिखावा ही दिखावा||
कोरोना के मामले सामने आने के बाद से देश भर में टीचिंग पैटर्न बदलने की चर्चा हो रही है। जोर-शोर से कहा।जा रहा है कि भविष्य में ऑनलाइन माध्यमों के जरिए ही पढ़ाई होगी। इस वक्त मजबूरी में उन लोगों को भी इस माध्यम को अडॉप्ट करना पड़ रहा है जो न तो इसके अभ्यस्त हैं और न ही उनके आसपास ऑनलाइन माध्यमों के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। शिक्षक तो फिर भी तैयार है या हो जाएगा, लेकिन स्टूडेंटस का कनेक्ट होना बड़ी चुनौती है।
मैं अपने कॉलेज का उदाहरण देना चाहता हूं, जो कि एक ग्रामीण इलाके में स्थित है। लगभग एक महीने से कॉलेज बंद है। इस अवधि में 30 सहायक प्रोफेसर लगातार इस कोशिश में लगे हैं कि स्टूडेंट्स को ऑनलाइन माध्यमों के जरिए पढ़ा सकें। चूंकि ज्यादातर शिक्षक रुड़की, हरिद्वार, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर तथा देहरादून आदि जगहों पर रहते हैं इसलिए ऑनलाइन टीचिंग माध्यम उनकी पहुंच में है और वे इनके जरिए पढ़ाने को उत्सुक भी हैं, लेकिन असली चुनौती यह है कि जिन स्टूडेंट्स को पढ़ाया जाना है, वे दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। छात्र-छात्राओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि या तो उनके पास स्मार्ट फोन-लैपटॉप नहीं है और यदि है भी तो नेट कनेक्टिविटी ऐसी नहीं है कि वे अपने प्रोफेसर के साथ जुड़ सकें।
इन सभी शिक्षको की तमाम कोशिश के बावजूद कुल संख्या के 10 प्रतिशत छात्र-छात्राओं से भी ऑनलाइन जुड़ पाना संभव नहीं हो पा रहा है। यहाँ देखने वाली बात यह है कि कॉलेज इस नई पद्धति को स्वीकार करने को तैयार है, शिक्षक इसके लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वह माध्यम गायब है जिसके जरिए छात्रों को जोड़ा जाना है। ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग करके टीचिंग मैटेरियल उपलब्ध कराना, नोट्स उपलब्ध कराना, वेबसाइट-वेबलिंक या ऑडियो वीडियो शेयर करना नगरीय क्षेत्रों में ज्यादा बड़ा काम नहीं है, लेकिन जब दूरदराज के क्षेत्रों के बारे में सोचते हैं तो यह बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है।
अब सवाल यह है कि यदि कोरोना जैसी स्थितियां बहुत जल्द नियंत्रण में ना आई तो पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्र की संस्थाओं में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के सामने दूसरा विकल्प क्या होगा ? यह विकल्प ऑनलाइन माध्यमों के जरिए पढ़ाई नहीं हो सकता। मौजूदा हालात में इसका सबसे बेहतर पैटर्न यह हो सकता कि ऐसे सभी कॉलेजों के छात्र-छात्राओं को इग्नू तथा देश की अन्य ओपन यूनिवर्सिटीज के ओपन रिसोर्सेज के साथ जोड़ा जाना चाहिए। इसमें दोनों तरह की पद्धतियों को उपयोग में लाया जाना वांछित और अपेक्षित है। जो छात्र-छात्राएं शहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं, उनके लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्टडी मैटेरियल दिया जाए, जबकि जो दूरदराज के क्षेत्रों में हैं, उन्हें पुरानी पद्धति के अनुरूप छपा हुआ स्टडी मैटेरियल उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
मौजूदा हालात में यदि मानक, परिष्कृत और स्व-व्याख्या वाली सामग्री छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराई जानी है तो उसका सबसे बेहतरीन फॉर्मेट छपी हुई सामग्री के रूप में ही हो सकता है। यह ठीक है कि इस वक्त ऑनलाइन माध्यमों पर लाखों किताबें, ऑडियो-वीडियो तथा अन्य स्टडी मैटीरियल उपलब्ध है, लेकिन इसमें से ज्यादातर सामग्री अंग्रेजी भाषा में है। दूरदराज के छात्रों के लिए भाषा-बंधन के कारण भी यह सामग्री ज्यादा उपयोगी नहीं हो पाती। यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध टीचिंग मैटेरियल की प्रकृति मूल रूप से शहरी और अंग्रेजी माध्यम छात्रों और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप ही है।
जब तक माध्यम का बंधन खत्म नहीं होगा, चाहे वह माध्यम तकनीक से जुड़ा हो अथवा भाषागत, इसका कोई उपयोग ग्रामीण के छात्रों के लिए नहीं हो सकेगा। यह संभव है कि तकनीकी अथवा व्यवसायिक उपाधियों में पंजीकृत छात्र-छात्राएं, भले ही वे ग्रामीण क्षेत्र के भी हो, तकनीकी माध्यमों के उपयोग में ज्यादा सिद्धहस्त हों। लेकिन परम्परागत उपाधियों वाले बहुसंख्य छात्र इससे अनभिज्ञ हैं।
इन दिनों उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए ऑनलाइन माध्यमों से पढ़ाई का दबाव जिस प्रकार बढ़ा है, वह पिछड़े क्षेत्र के छात्र-छात्राओं, जो बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके लिए बड़ी चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है। न केवल आज, बल्कि आने वाले वर्षों में भी इन छात्र-छात्राओं के लिए सबसे बेहतर यही होगा कि कक्षा शिक्षण के साथ-साथ इनके लिए उस तरह का स्टडी मैटेरियल भी तैयार किया जाए, जिस तरह का स्टडी मैटेरियल इग्नू ने अपने लाखों छात्र-छात्राओं के लिए तैयार किया है। यह ठीक है कि क्लासरूम टीचिंग और डिस्टेंस एजुकेशन के तौर-तरीकों में कुछ अंतर है, लेकिन दोनों का अंतिम लक्ष्य एक ही है। इसी बात को आधार मानते हुए कह सकते हैं कि किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय से नियमित छात्र के रूप में स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाले और इग्नू या किसी अन्य ओपन यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस मोड में स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाले युवा की शैक्षिक योग्यता में कोई अंतर नहीं समझा जाएगा। तो इस वक्त ऑनलाइन माध्यमों के साथ-साथ डिस्टेंस मोड की छपी हुई सामग्री भी छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। अन्यथा की स्थिति में पिछड़े क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर छात्र-छात्राएं कोरोना के कारण पैदा हुई चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करने की स्थिति में नहीं होंगे।
इस विमर्श का यह अर्थ नहीं है कि रेगुलर पढ़ाई को डिस्टेंस मोड में बदल दिया जाए। इसका सीधा अर्थ यह है कि जिस प्रकार परम्परागत और ऑनलाइन माध्यम कन्वर्ज होते दिख रहे हैं, कन्वर्जेन्स की इस प्रक्रिया में पिछड़े इलाकों के लिए पूर्व से तैयार प्रकाशित सामग्री भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इस सामग्री का स्थान सामान्य किताबें नहीं ले सकती हैं। कुछ लोगों को ये कदम अधोगामी लग सकता है, लेकिन जिन्हें जमीनी सच्चाई का पता है, वे जानते हैं कि ऑनलाइन पढ़ना-पढ़ाना अभी फैशन का मामला ज्यादा है।
साभार - डा॰ शुशील उपाध्याय जी की फेसबुक वाल से