शिक्षा में सृजनशीलता, बदलाव के लिए शिक्षा

||शिक्षा में सृजनशीलता, बदलाव के लिए शिक्षा||

 

इन दिनों कवि, आलोचक, संवेदनशील शिक्षक मित्र महेश पुनेठा की किताब ' शिक्षा के सवाल' पढ़ने का अवसर मिला।जिसे लोकोदय प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।



 

मौजूदा दौर में शिक्षा दशा और दिशा को उजागर करती ये पुस्तक कई आयाम खोलती है। विभिन्न सवालों और अनुभवों पर पुस्तक में 29 लेख हैं। इन लेखों में जहां एक ओर व्यवस्था, तंत्र,बच्चे,अभिभावक, शिक्षक,समाज के विभिन्न संगठनों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी महेश जी ने की है। वहीं दूसरी ओर सकारात्मकता के साथ रास्ते क्या हो पर भी अपनी बात कही है।



 

मौजूदा दौर की शिक्षा पर टिप्पणी करते हुए लेखक पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं कि "शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है बढ़ते बाजारीकरण के चलते शिक्षा में सृजनशीलता के अवसर क्षरित होते जा रहे हैं।वह सामाजिक सरोकारों से दूर होती जा रही है।"



 

इस पुस्तक में है शिक्षा में सृजनशीलता, बदलाव के लिए शिक्षा, समान शिक्षा,वाऊचर प्रणाली के खतरे,लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक चेतना का विकास के सवाल,शिक्षा की असफलता, बच्चे स्वभावतः वैज्ञानिक अप्रोच,शिक्षा को जीवनोन्मुखी बनाने की आवश्यकता, भयमुक्त वातावरण, पाठ्यपुस्तकों के विभिन्न पहलुओं पर लेख,आपराधिक प्रवृत्तियाँ गलत परिवेश का परिणाम, शिक्षण का माध्यम परिवेशीय भाषा हो पर गम्भीरता से चर्चा की है।



 

लेखक शिक्षकों को अपने अनुभव दर्ज कराने के साथ ही शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए यात्राएं कितनी सहायक होती हैं पर भी अपनी बात करते हैं।रचनात्मक गतिविधियों में भाषायी दक्षता में दीवार पत्रिका की भूमिका और विभिन्न कार्यशालाओं की भूमिका को भी यहां रेखांकित किया है। लेखक पढने लिखने की संस्कृति के अभाव के साथ ही शिक्षकों की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए शिक्षक को अपने काम करने दिया जाय के सवाल को मजबूती से रखते हैं।



 

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के अहम दस्तावेज की उपेक्षा पर चिंताजनक लेख में महेश जी इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हैं। पुस्तक में उन्होने कुछ डायरी के पन्नों को भी शामिल किया है। जिनके माध्यम से 'मीना स्कूल' और दीवार पत्रिका के अनुभवों को साझा किया है। अंत में प्रथमिक शिक्षा में गुणवत्ता के लिए शिक्षकों पर दोष मढ़ने सवाल पर लेखक ने इसके विभिन्न आयामों को सामने रखते हुए सवाल उठाया है कि इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है?



 

मौजूदा दौर की शिक्षा की स्थिति पर यह पुस्तक महत्वपूर्ण चिंतन मनन करने के साथ ही रास्ता भी दिखाती प्रतीत होती है। सभी शिक्षक एवं शिक्षक संगठनों के पदाधिकारियों को यह पुस्तक जरुर पढ़नी चाहिए।


महेश जी का आभार इस पुस्तक को मुझे भेजने के लिए।