विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष // कहीं लुप्त न हो जाये हिमालयी जल स्रोतों// आज पृथ्वी दिवस है। पानी, पेड़ प्राणी के लिए आज के दिन की बड़ी महत्त है।


विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष // कहीं लुप्त न हो जाये हिमालयी जल स्रोतों (springs) की अनमोल सभ्यता और संस्कृति???





 

क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम शरीरा ।





रामचरित मानस के इस चौपाई के अनुसार जीवन के लिए पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु पाँच तत्वों की आवश्यकता होती है| एक जल वैज्ञानिक होने के नाते जल दूसरे नंबर पर होने के वाबजूद में थोड़ा सा पक्षपाती हो जाता हूँ उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ| जल मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास का प्रतीक रहा है| इतिहास गवाह है कि विश्व की शुरुवाती संपन्न सभ्यताएं जल के इर्द-गर्द ही विकसित हुई है चाहें वह सिंधु घाटी की सभ्यता या नील नदी की सभ्यता हो|

 

सिंधु घाटी की सभ्यता में प्राप्त अवशेषों से पता चला है की ये सभ्यता आज के नगरों की भांति ही विकसित थी| लेकिन इतनी संपन्न सभ्यता का लुप्त होना बड़ा ही दुखद था| सेटेलाइट चित्रों एवं फील्ड सर्वे से स्पष्ट है की सिंधु घाटी की सभ्यता के प्रमुख नगर सिंधु नदी के बजाय घग्गर नदी के किनारे बसे हुए थे| उस समय घग्गर नदी सिंधु एवं गंगा से भी बड़ी नदी हुआ करती थी| ये वही घग्गर नदी है जिसे वेदो में सरस्वती नदी के नाम से उल्लिखित किया गया है| यह भी मानना है की यह नदी सतुलज एवं यमुना के जल से सदानीरा बनी रहती थी| परन्तु यह मानना है की जलवायु प्रवर्तन और किसी बड़े भूकंप के कारन यह नदी सुख गयी और फलती फूलती यह सभ्यता ढेर सारे सवालों के साथ इतिहास के पन्नो में सिमट गयी|

 

भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में देखे तो अधिकांश जनजीवन यहाँ के छोटे छोटे जलश्रोतों (स्प्रिंग) के आस-पास छोटे-छोटे गाँवो के रूप में बसा हुआ है| ये छोटे-छोटे जलश्रोत जिन्हे स्थानीय भाषा में धारा, नौला, चस्मा, नाग, पनिहार, नाडु, बावड़ी आदि नामों से जाना जाता है लोगों के लिए केवल पानी के श्रौत ही नहीं है वरन एक धार्मिक स्थान के रूप में भी है | इन क्षेत्रों के प्रत्येक जलश्रोत के आस-पास आप एक मंदिर या भगवान विष्णु की मूर्ति तो पा ही लेंगे| शायद यह इन जल स्रोतों को किसी प्रकार के अतिक्रमण एवं प्रदुषण से बचाने का यह एक नायाब तरीका था| यही नहीं गांव में आने वाली हर नई दुल्हन सबसे पहले इन जलस्रोतों की पूजा करती थी और इनसे जल भर कर घर लाती थी|

 

पहाड़ के लोगों का इन जलश्रोतों से एक आत्मीय सम्बन्ध था| लेकिन पिछले कुछ दशकों से ये प्राकृतिक जलश्रौत हमारी उपेक्षा के कारण सुख रहे है क्योंकि हमारी निर्भरता नल से निकलने वाले जल पर ज्यादा बढ़ गयी है शायद नल के जल को हम अपने रिमोट कण्ट्रोल की तरह प्रयोग कर सकतें है लेकिन हम यह भूल जातें है नल से निकलने वाले जल भी तो इन्हीं स्रोतों से आता है| ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी ही है की हिमालयी जलश्रोतों की यह सभ्यता हमारे लालचीपन और उपेक्षा के कारण लुप्त न हो जाये तो कोई आश्चर्य न हो| महात्मा गाँधी जी ने ठीक कहा है की:

“Earth provides enough to satisfy every man’s needs, but not every man’s greed”

 



यह आलेख सोबन सिंह रावत की फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।

फोटो साभार: नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट, राष्ट्रीय जलविज्ञान संसथान, रूड़की