23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है। पुस्तकें हमारे जीवन का अनमोल उपहार हैं। विश्व पुस्तक दिवस पर प्रस्तुत है मेरी कविता , ’पुस्तकें मेरी सच्ची मित्र’
||मेरी सच्ची मित्र||
मेरे मन की हर शंका को, पल में दूर भगाती हो,
कठिनाई से हार न मानो, ये विश्वास जगाती हो
तुमसे ही मैं जान सकी हूं , अपनी हर बातें विचित्र।
सब कहते हैं पुस्तक तुमको, तुम हो मेरी सच्ची मित्र।।
पाठ्य-पुस्तकों ने तो हरदम अपना ज्ञान बढ़ाया,
कथा, कहानी, चुटकुलों में भी खूब आनन्द आया।
तुमसे ही सीखे गीत कई और देखे रंग-बिरगें चित्र,
तुम ही बनकर रही हमेशा मेरी सबसे प्यारी मित्र।
तुमसे ही मैं जान सकी हूं , अपनी हर बातें विचित्र।
सब कहते हैं पुस्तक तुमको, तुम हो मेरी सच्ची मित्र।।नज़र जहां भी तुम पर जाती ,झट से तुम्हें उठा ले आती,
भूख-प्यास सब दूर ही रहते, जब तक तुमको न पढ़ पाती।
तुम बन जाती, सखी सहेली, हल होती वो अबूझ पहेली।
सब प्रश्नों के उत्तर मिलते, तनिक न तुम करती विचलित,
तुम ही बनकर रही हमेशा मेरी सबसे प्यारी मित्र।
तुमसे ही मैं जान सकी हूं , अपनी हर बातें विचित्र।
सब कहते हैं पुस्तक तुमको, तुम हो मेरी सच्ची मित्र।।जब-जब सूनापन गहराया, तुमने हरदम साथ निभाया,
कोई अपना हुआ नहीं पर, तुम सदा बनी रही मेरा साया।
मेरे गिरते हौंसलों को तुम, ढाढ़स का मरहम रही लगाती,
अपनी उपस्थिति का सदैव, मुझको तुम अहसास कराती।
मन खाता रहता हिचकोले, कभी न होने देती चित्त,
तुम ही बनकर रही हमेशा मेरी सबसे प्यारी मित्र।
तुमसे ही मैं जान सकी हूं , अपनी हर बातें विचित्र।
सब कहते हैं पुस्तक तुमको, तुम हो मेरी सच्ची मित्र।।नोट-यह कविता काॅपीराइट के अंतर्गत आती है, कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखिका की संस्तुति आवश्यक है।